जैन धर्म के10वें तीर्थंकर शीतलनाथ का जैनानुयाईयो ने मनाया “मोक्ष कल्याणक”

 *संसार में इष्ट-अनिष्ट कुछ भी नहीं:सुमत प्रकाश *पंडित चर्चित भैया ने बताया मोक्ष कल्याणक का मर्म

फोटो:- जैन धर्म के 10वें तीर्थंकर शीतल नाथ भगवान के मोक्ष कल्याणक पर पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में विशेष पूजा चलती हुई तथा स्वाध्याय करते पंडित चर्चित
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जसवंतनगर(इटावा)। जैन बाजार स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर भगवान श्री शीतलनाथ का मोक्ष कल्याणक “निर्वाण दिवस”  पूरे धार्मिक भाव और धूमधाम से मनाया गया।
      इंद्र स्वरूपौ ने  सवेरे सर्वप्रथम तीर्थंकर भगवान को विराजमान कर  उनका अभिषेक किया गया। भक्ति भाव से अर्घ समर्पित करते हुए उनकी विशेष पूजा एवं कल्याणक अर्घ समर्पित किए। मोक्ष कल्याणक प्रसंग पर तीर्थंकर भगवान के जयकारों से  मंदिर जी  गूंज उठा। जय घोष करते  सभी ने उनकी भक्ति की।
      मंदिर की में चल रहे  तीन दिवसीय युवा  संस्कार  शिविर  के मौके पर मोक्ष कल्याणक प्रसंग पर प्रकाश डालते प्रख्यात जैन विद्वान और पंडित चर्चित भैया ने कहा कि मोक्ष कल्याणक प्रसंग हम सबके लिए  हर्ष का विषय भले है मगर इसके साथ्यः  चिंतन का भी गूढ़ विषय है हम सबको विचार करना चाहिए कि किस तरह  अष्ट कर्मों का क्षय कर  शीतलनाथ भगवान और अन्य तीर्थंकरों ने मोक्ष को प्राप्त किया था। शीतलनाथ भगवान भी हम सब की  तरह ही एक मानव के रूप में इस धरा पर आए थे। त्याग तपस्या व निज आत्मा के बल से  उन्होंने केवल ज्ञान  प्राप्त व प्रकट किया और तीर्थंकर पद  हासिल किया। 
    उन्होंने कहा कि हमें भी अपनी आत्मा पर दृढ़ श्रद्धन करते हुए पुरुषार्थ के साथ धर्म मार्ग में लगे रहते हुए एक न एक दिन मोक्ष पद को प्राप्त करना है।
      जैन समाज के मीडिया प्रभारी आराध्य जैन ने बताया है कि मंदिर जी  में चल रहे तीन दिवसीय युवा संस्कार जागृति शिक्षण शिविर के अंतिम दिन बाल ब्रह्मचारी सुमत प्रकाश ने प्रवचन के दौरान कहा इस संसार में इष्ट-अनिष्ट कुछ भी नहीं है। व्यक्ति अपनी कल्पना के अनुसार वस्तुओं एवं भावों को ऐसा मानता है। इसका सबसे बड़ा कारण अपने अंदर इष्ट न देखकर बाहरएमअनिष्ट की कोरी कल्पना करना है। वास्तव में तो अपना निज आत्म ही इस जग में परम इष्ट है। इसके आश्रय के बल से ही हम जन्म मरण का अभाव कर परम पद मोक्ष को पा सकते हैं।
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*वेदव्रत गुप्ता*
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