रामलीला में रावण,मेघनाद और कुंभकरण के मुखौटे पहनकर होता है ,जीवंत युद्ध
*तांबा,पीतल आदिधातुओं के बने हैं,ये मुखौटे हैं काफी बजनी *अपने पीछे छिपाएं हैं,150 वर्षों से ज्यादा का इतिहास
Madhav SandeshOctober 22, 2023
फोटो:- जसवंत नगर की रामलीला में हैं,रावण मेघनाथ और कुंभकरण के यह मुखोटे
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जसवंतनगर (इटावा)।जसवंतनगर के रामलीला महोत्सव को मैदानी रामलीलाओं में मिली प्रसिद्धता के पीछे यहां की परंपराएं खास तौर से रावण का न फूंका जाना और राम लक्ष्मण और सीता को कहारों द्वारा अपने कंधों पर एक डोले पर बैठाकर रोजाना रामलीला मैदान लाना तो है ही, मगर यहां की लीलाओं में अभिनय करने वाले पात्रों द्वारा पहने जाने वाले मुखौटे विशिष्ट महत्व रखते हैं।
उ.प्र.में बहुत ही कम रामलीलाए हैं, जिनमे पात्र लोग मुखोटे पहनकर अभिनय करते हैं। बनारस के रामनगर की रामलीला में मुखौटे पहनकर अभिनय करने की प्रथा सैकड़ो वर्ष पुरानी है। बताते हैं कि जसवंतनगर की रामलीला में यह प्रथा वहीं से ही आई।1857 के दौरान जसवंतनगर के कुछ लोग रामलीला देखने बनारस गए हुए थे। वहां उन्होंने जब रामलीला देखी ,तो उन्हें जसवंतनगर में भी रामलीला कराने की प्रेरणा हुई। वह वहां से रावण, मेघनाथ, कुंभकरण, हनुमान और काली आदि के मुखौटे अपने साथ लेकर आए थे। यह सभी मुखौटे तांबे, पीतल और मिश्रित धातुओं के बने थे।
बाद में इन्ही लोगों ने तत्कालीन जसवंत।नगर के रहीस दुर्गाप्रसाद गुप्ता के सहयोग से रामलीला शुरू कराई। लाए गए मुखौटे पहनकर रामलीला का शुभारंभ किया गया। वही मुखोटे आज भी यहां की रामलीला में प्रयोग किये जा रहे हैं।बताते हैं कि मेघनाथ और कुंभकरण के मुखौटे काफी बजनी है। इनका वजन 10 से 15 किलो तक है। इसी प्रकार रावण का मुखौटा भी 10 सिरों युक्त और वजनी है। हनुमान का मुखौटा भी कुंभकरण और मेघनाथ के मुखौटे के साइज का ही है।
उ. प्र. सरकार के अयोध्या शोध संस्थान के तत्कालीन डायरेक्टर वाई.पी. सिंह सन 2005 में जसवंतनगर की रामलीला में आए थे। उन्होंने जब यहां की रामलीला में प्रयुक्त होने वाले मुखौटों को देखा तो हतप्रभ रह गए थे। इन्हे देखकर उन्होंने कहा था कि यह मुखोटे दक्षिण भारतीय शैली के हैं और इनका पुरातात्विक महत्व है।
जसवन्तनगर की रामलीला में मेघनाथ, कुंभकरण और रावण के मुखौटे लगाकर तीर तलवार, ढाल,बरछी, भाला आदि प्राचीन अस्त्र शस्त्रों से राम-लक्ष्मण से जीवंत युद्ध किया जाता है। इन मुखौटो को पहनना और फिर दो- दो, तीन- तीन घंटे तक अभिनय और युद्ध करना अपने में काफी कठिन काम है। फिर भी यहां के लोग अभिनय करने और मेघनाथ कुंभकरण और रावण बनने की होड़ में लगते है।
रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के मुखौटे पहनकर यहां के कई लोगों ने रामलीला में अपना नाम कमाया है । रामलीला में बने रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पात्र इतने ख्याति पा गए कि उन्हें उनके अपने असली नाम की वजाय रावण, मेघनाथ, कुंभकरण आदि नामों से पुकारा जाने लगा था। यहां तक उनके यहां निमंत्रण की जो चिट्ठियां आती थी उनमें उनके नाम की जगह रावण मेघनाथ और कुंभकरण उपनाम लगे होते थे।इनमें से कई तो अब दुनिया में नहीं है, जिनमे स्वर्गीय शारदा प्रसाद गुप्ता, विपिन बिहारी पाठक, मुकुट बिहारी लाल गुप्ता , रामाधार फौजी आदि को आज भी याद किया जाता है। इनमें कई तो हाथी पर सवार होकर और रावण मेघनाथ और कुंभकरण बनकर सड़कों पर युद्ध करने आते थे।
यहां रामलीला कमेटी के पास सूपर्णखा, खरदूषण,अंगद,बालि, काली के अलावा राम और रावण की सेना के लोगों के अनेक मुखोटे है, जिन्हे कमेटी बहुत सहेजकर रखती है। रावण के मुखौटे के10 सिर दशहरा के दिन लोग युद्ध दौरान तोड़ कर ले जाते हैं और अपने पास सहेज कर रखते हैं। प्रबंधक प्रबंधक राजीव गुप्ता बबलू तथा व्यवस्थाओं के संयोजक अजेंद्र सिंह गौर ने बताया है कि यहां की रामलीला की मुखोटे वेश कीमती हैं, इनकी वजह से विदेश से आए लोग भी रामलीला देखकर प्रभावित होते रहे हैं।
*वेदव्रत गुप्ता
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Madhav SandeshOctober 22, 2023