रक्षाबंधन पर्व: ‘राखी’ के धागों और ‘घेवर’ दोनो पर मंहगाई हावी

 *बहने फिर भी बरसाएंगी भाई पर प्यार 

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फोटो:- राखी की सजी एक दुकान पर खरीद फरोख्त करती महिलाएं तथा घेवर की बिक्री होती हुई
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जसवंतनगर(इटावा)। वर्ष भर इंतजार के बाद रक्षाबंधन का त्यौहार आ गया।अब भाइयों की कलाइयों में राखी बांधने के लिए  बहनें बेताब हैं, जिन बहनों की शादियां हो गई हैं, वह अपनी ससुराल से भाइयों के घर राखियां बांधने के लिए पहुंच चुकी या पहुंच रही हैं।

     उत्तर प्रदेश सरकार ने महिलाओं और बहनों को अपने भाइयों के घर पहुंचने के लिए राजकीय रोडवेज बसें निशुल्क कर दी हैं। उन पर किराया नहीं लगेगा। मगर महंगाई की मार से राखियां और ब्रज क्षेत्र में रक्षाबंधन के दिन भाइयों को मिठाई के रूप में भेंट किया जाने वाला घेवर बहनों के बटुए को ढीला कर रहा है।
    दरअसल में बाजारों में भाई बहन के परस्पर प्रेम के प्रतीक का बंधन  माने जाने वाली राखियां इस वर्ष गत वर्षो की तुलना में काफी महंगी है। जो राखी बहनें 10- 15 रुपए में  आसानी से खरीद लेती थी,इस बार वह अब 20 – 25 रुपए  से कम की उपलब्ध नहीं है। यदि ज्यादा क्वालिटी की राखी खरीदी जाएं ,तो वह भी 40- 50 रुपए  से ऊपर कीमत की है, जबकि बाजारों में 200 और 500 रुपए की कीमत वाली राखियां भी बिकने को आई है।
चंदन ,रुद्राक्ष और अन्य तरह की विशेष राखियां काफी महंगी है। पहले बहुत सी अमीर महिलाएं अपने भाइयों को चांदी और सोने की राखियां भी बांधती थी, मगर अब हल्की से हल्की चांदी की राखी 1000 कीमत रुपए से ऊपर  कीमत की है।
हर वर्ष तरह इस बार भी राखियां बेच रहे सतीश कुमार ने बताया है कि इस वर्ष आगरा, दिल्ली, मुंबई, कानपुर और लखनऊ से राखियां आई है। जिनकी कीमतें पिछले वर्षों की तुलना में 30 से 40 परसेंट तक महंगी हुई है। उन्होंने बताया कि पहले हम लोग बिना जीएसटी के राखी खरीद कर लाते थे, मगर अब बड़े शहरों में बिना जीएसटी भुगतान किये राखी निर्माता राखियां नहीं देते। इस वजह से भी राखियों पर महंगाई  बढ़ी है।       
    उन्होंने बताया कि बावजूद इसके बहनों में अपने भाइयों की कलाई पर बांधने के लिए बेस्ट से बेस्ट राखी खरीदने की होड़ है। अब बहुत कम बहनें चमकदार राखियां खरीदती हैं, बल्कि ‘सोबर’ राखियां खरीदने में उनका ज्यादा उत्साह रहता है। इस वजह से हम लोग बाहर की बनी हुई अच्छी से अच्छी राखियां लाते हैं।
     ब्रज क्षेत्र में रक्षाबंधन के दिन हर घर में मिठाई के रूप में “घेवर” लाना बहुत ही शुभ माना जाता है, मगर चीनी, मैदा, दूध,डालडा, देसी घी, और रिफाइंड के साथ गैस सिलेंडर के भाव ऊंचे होने के कारण तथा घेवर पर सजाया जाने वाला खोया(मावा) 300 और 350 रुपए प्रति किलो के भाव में बिकने के कारण इस बार घेवर का डालडा रिफाइंड के बने का भाव ढाई सौ रुपए किलो की वजाय  300 और 350 रुपए किलो है।  देसी घी का मलाई और मेवा लगा घेवर 500 और 600रुपए किलो के ऊपर बिक रहा है। 
जसवंतनगर के प्रमुख हलवाई जैन स्वीट्स और महावीर स्वीट्स के मालिकों पिंटू जैन और निक्का जैन ने बताया है कि रक्षाबंधन के अवसर पर खोया की डिमांड बढ़ने के कारण खोया जो अभी तक200रुपए प्रति किलो के भाव यहां मिल रहा था, अब  वह 300 से ऊपर के भाव पर उन्होंने खरीदा है।
    इस हालत में उन्हें ढाई सौ रुपए किलो भाव वाला घेवर 300रुपए किलो भाव पर बेचना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि उन पर लोग शुद्धता को लेकर बहुत ही विश्वास के साथ घेवर खरीदने आते हैं, इसलिए वह शुद्ध डालडा और शुद्ध खोया से अच्छी क्वालिटी की मेवा सजाकर घेेवर बेचते हैं।300 प्रति किलो के भाव में भी बेचने में उन्हें कोई फायदा खास नहीं हो रहा है।
     इसी प्रकार शुद्ध देसी घी का घेवर बनाने वाले यहां के प्रख्यात  मिष्ठान विक्रेता ‘ब्रज मिष्ठान’ के मालिक आलोक गांगलस ने बताया है कि वह जसवंतनगर में घेवर 500 से लेकर600रुपए किलो तक बेच रहे हैं, जबकि आगरा, मथुरा आदि में शुद्ध देसी घी का मलाई लगा घेवर700 रुपए किलो भाव पर ही उन्हें उपलब्ध है, जिनकी पहले से बुकिंग है।
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*वेदव्रत गुप्ता
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