संस्कृति विवि में हुई महिला सशक्तिकरण पर विस्तार से चर्चा राष्ट्रीय संगोष्ठी का दूसरा दिन
चित्र परिचयः आत्मनिर्भर भारत और पं. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्ममानववाद’ विषय कोलेकर संस्कृति विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन मुख्य अतिथि डा. अलका गूजर के साथ विवि के चांसलर डा. सचिन गुप्ता, शोधार्थीएवं विद्यार्थी।
रिपोर्ट /- प्रताप सिंह
मथुरा। आत्मनिर्भर भारत और पं. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद’विषय को लेकरसंस्कृति विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिनतकनीकि सत्रों में महत्वपूर्ण शोधपत्र पढ़े गए। के दूसरे दिन तकनीकि सत्रों में महत्वपूर्णशोधपत्र पढ़े गए। इन सत्रों में नारी की स्वतंत्रता और उसकी निर्णय क्षमता सेजुड़े महत्वपूर्ण शोधपत्र में महिलाओं की मानसिक दशा का उनकी स्वतंत्रता और निर्णयक्षमता पर विस्तार से बात कही गई। नारी शक्ति के महत्व और विभिन्न क्षेत्रों मेंउसकी भागीदारी पर किए गए शोधों से भी कई निर्णय निकलकर सामने आए। राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन जे.एस. विश्वविद्यालय के प्रो वाइसचांसलर प्रोफेसर वेद प्रकाश त्रिपाठी और संस्कृति स्कूल आफ एग्रीकल्चर के प्रोफेसरएन.एन. सक्सैना की अध्यक्षता में हुए प्रथम सत्र के दौरान छह शोध पत्र प्रस्तुतकिए गए। बिहार की शोधार्थी किरन कुमारी ने महिला स्वयं सहायता समूह की उपयोगिताआर्थिक विकास के परिदृश्य में उनका योगदान बताया। अपने शोध पत्र में उन्होंनेजीविका सहायता समूह का हवाला देते हुए कहा कि बिहार की महिलाओं ने नर्सरी स्थापितकर स्वयं को तो आत्मनिर्भर बनाया ही साथ ही अपने पर्यावरण को भी सुदृढ़ किया।उन्होने बताया कि स्वयं सहायता समूह ने आर्थिक परिदृश्य को बदला है। सम्राट सिकदरने अपने शोधपत्र में शक्ति के विकेंद्रीयकरण की एक अवधारणा को प्रस्तुत करते हुएबताया कि शक्ति का विकेंद्रीयकरण होना जरूरी है। इससे वंचित वर्ग भी विकास की ओर अग्रसरहो पाएगा। डा. उर्वशी शर्मा ने अपने शोधपत्र में महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य परविस्तार से प्रकाश डाला। उन्होने बताया कि गृहणी के मानसिक स्वास्थ्य का प्रभावउसकी निर्णय क्षमता और उसकी स्वतंत्रता पर पड़ता है। उन्होंने बताया कि मथुरा जनपदकी गृहणियों पर किए गए इस शोध में यह पाया गया कि खराब मानसिक स्वास्थ्य उनकीनिर्णय क्षमता को घटाता है और उनकी स्वयं की स्वतंत्रता को भी प्रभावित करता है।उन्होंने बताया कि शोध में यह भी स्पष्ट हुआ कि परिवार की पृष्ठभूमि, एकल परिवार,संयुक्त परिवार का प्रभाव भी महिला की निर्णय क्षमता और स्वतंत्रता को प्रभावितकरता है। इस महत्वपूर्ण तकनीकि सत्र में प्रोफेसर सरस्वती घोष ने ‘महिला विकास मेंसमाज की भूमिका’ पर प्रकाश डालते हुए बताया कि समाज में महिला द्वारा किए गए अनपेडकार्य की सराहना नहीं की जाती, जिसे अच्छे ढंग से सराहा जाना चाहिए। कु. प्रज्ञासिंह ने भी सहायता समूह की भूमिका को महिला उत्थान में महत्वपूर्ण बताया। संस्कृतिविवि की छात्रा साक्षी कुमारी तथा कनिका द्वारा भी एक उपयोगी शोध पत्र प्रस्तुतकिया गया। वहीं कल संपन्न हुए दो सत्रों में से प्रथम सत्र में आईइए के चीफकान्फ्रेंस कोर्डिनेटर डा. एके तौमर, डा. प्रिया मित्तल, डा. अजय त्यागी, कवि कपिलकुमार की मौजूदगी में 12 शोध पत्र पढ़े गए। दूसरे सत्र में आईइए के जनरल सेक्रेटरीडा. एके अस्थाना, डा. मोनिका वार्ष्णेय की मौजूदगी में नौ शोधपत्र प्रस्तुत किएगए। सभी ने आत्मनिर्भर भारत के परिप्रेक्ष्य में उपयोगी जानकारियां दीं। तकनीकिसत्रों के बाद हुए सांस्कृति कार्यक्रम में दिल्ली से आए कलाकारों ने अपने गीतोंसे दिनभर चले गंभीर चिंतन की थकान मिटाने में दवाई का काम किया। विद्यार्थियों नेभी इसमें बढ़चढ़कर भाग लिया और देर रात तक भरपूर मनोरंजन किया।