रावण की बहन “सूर्पनखा” का रोल अदा कर  जसवंतनगर में कइयों ने नाम कमाया

 फोटो:- जसवंतनगर की रामलीला में सूर्पनखा दूध की बोतल पिलाकर हंसने हंसाने का उपक्रम करती हुई, समाचार में फोटो बैंड की ध्वनि पर नृत्य करती और युद्ध को  जाती सूपर्णखा 

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      जसवंतनगर (इटावा)। यहां की सुप्रसिद्ध  मैदानी रामलीला में सदैव से ही स्थानीय लोग विभिन्न पात्रों की भूमिका निभाते रहे है। खास बात तो यह है कि राम,लक्ष्मण,सीता,हनुमान जैसे पात्र, जिन्हें रामलीला महोत्सव की शुरूआत से ही भूमिका निभानी पड़ती हैं और लंकाधिपति रावण के कुनबे के बनने वाले पात्र भी किसी पारश्रमिक या मानदेय के मोहताज नहीं होते। वह अपने नगर की रामलीला में समर्पण भाव से लीलाओं में अदाकारी करते हैं।

       
रामलीला में सबसे खराब पात्रों में रावण की बहन सूर्पनखा की भूमिका निभाना है, क्योंकि एक तो सूर्पनखा बनना महिला पात्र  बनने की भूमिका निभाना होता है। दूसरी बात सूपर्णखा रावण की बहन थी और उसके नाक कान लक्ष्मण द्वारा काटे जाने से राम- रावण के युद्ध की नींव पड़ी थी।
     इसलिए सूर्पनखा बनना सबसे  कलंकित है। फिर भी जसवंतनगर की रामलीला में सूर्पनखा बनकर कई स्थानीय लोगों ने न केवल नाम कमाया,बल्कि अपनी अदाकारी  की ऐसी मिशालें पेश की कि लोग आज भी उन्हे याद करते है। कइयों का नाम तो जीवन भर के लिए सूर्पनखा यानि भट्टी पड़ गया। यहां के लोग सूर्पनखा को भट्टी नाम से भी पुकारते हैं।
           
रामलीला महोत्सव समिति के पास बाकायदा सूर्पनखा का मुखौटा है। इसका पात्र बनने वाला महिलाओ की ड्रेस पहनकर और सूर्पनखा का मुखौटा लगाकर लीलाएं करता है।            पहले सूर्पनखा बनने वाल मैदानी रामलीला में केवल नाक-कान कटने के दिन और रावण वध के दिन ही दिखाई पड़ते थे, मगर इधर सन1975 के बाद कुछ पात्र बनने वालों ने इस सूर्पणखा के रोल को रोचक, रोमांचक और हंसने- हंसाने का पात्र  बना दिया।
    बताते हैं कि ऑल इंडिया के उपनाम  से  मशहूर नगर के महलई टोला में रहने वाले राम भरोसे गुप्ता ने 1980 से पहले सूर्पनखा की भूमिका निभाकर दर्शकों को खूब आकर्षित किया था। वह कई वर्ष तक यह पात्र बनते रहे। उनकी मृत्यु के बाद हिंदू विद्यालय इंटर कॉलेज में हेड क्लर्क रहे और डील-डौल से काफी भारी भरकम शरीर रखने वाले महेश चंद्र जैन ने यह  भूमिका अदा करके खूब नाम कमाया। वह जब इस भूमिका में रामलीला मैदान में घूमते और लीला करते थे ,तो दर्शक लीलाओं से ज्यादा उनकी तरफ मुखातिब रहते थे। वह रोज महिलाओं के नए परिधान पहनकर  और  खूब सजकर सेक्सी स्टाइल में आते थे और हंसा हंसा कर लोगों को लोटपोट करते थे।रावण दल के किसी योद्धा के युद्ध में मारे  जाने पर उनका करुण  विलाप भी देखने के काबिल होता था। महेश जैन की मृत्यु के बाद जैन मोहल्ला के ही निवासी और वस्त्र व्यवसाई  शरद जैन ने  दासियों वर्षों तक  रामलीला में यह भूमिका निभाकर अपना रुतबा गालिब किया। खराब स्वास्थ्य और उम्र दराज होने के कारण  अब वह सूर्पनखा नहीं बनते। 
अन्य कई लोग भी रामलीला में  सूपर्णखा  का पात्र बने और नाम कमाया। इनमें दिलीप सविता का भी एक नाम उल्लेखनीय है ।अब कई वर्षों से केला देवी मंदिर के पास मसाले का काम करने वाले “संजू मसाले वाले” सूपर्णखा की भूमिका निभाते हैं। नाक- कान कटने वाले दिन रामलीला कमेटी को उनकी बेहद जरूरत होती है। –          *वेदव्रत गुप्ता 
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