वीरगति दिवस पर विशेष : (28 जून 1999) लोलिंग के टाइगर कैप्टन विजयंत थापर, वीर चक्र
माधव संदेश/ संवादाता
वर्ष 1999, इतिहास का वह समय था जब हमारे धोखेबाज पड़ोसी ने हमारी मातृभूमि के कारगिल, द्रास, मश्कोह, बटालिक आदि की गगनचुंबी पहाड़ियों पर जबरन धोखे से कब्जा जमा लिया था और स्वयं को शूरवीर समझ बैठा था। उसे यह भान नहीं था कि भारतीय सेना के जांबाज और शेरदिल सैनिक कभी भी पहले किसी की संप्रभुता पर प्रहार नहीं करते और यदि कोई उनकी संप्रभुता पर वार करता है तो उससे आर-पार करते हैं। अकारण थोपे गये इस युद्ध में हमारे देश के वीरों ने वह रणकौशल दिखलाया कि दुनिया हक्की-बक्की रह गयी। पाकिस्तान द्वारा अजेय समझें जाने वाले इस युद्ध में हमारे देश के सैनिकों ने पाकिस्तान को भागने के लिए मजबूर कर दिया। आज ऐसे ही एक वीर योद्धा का वीरगति दिवस है जिनका नाम है – कैप्टन विजयंत थापर, वीर चक्र।
कैप्टन विजयंत थापर का जन्म नया नांगल पंजाब में 26 दिसंबर 1976 को एक सैन्य परिवार में कर्नल वी एन थापर और श्रीमती तृप्ता थापर के घर हुआ था। इनकी स्कूली शिक्षा डी ए वी कालेज, चण्डीगढ में हुई। इन्होंने 12 दिसम्बर 1998 को भारतीय सेना की सेना सप्लाई कोर में कमीशन लिया था। कैप्टन विजयंत थापर आपरेशन विजय के समय 2 राजपूताना राइफल्स में सम्बध्द थे।
वर्ष 1999 में 2 राजपूताना राइफल्स कुपवाड़ा में आतंक विरोधी अभियान चला रही थी। यूनिट को जंग के ऐलान के बाद घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए द्रास सेक्टर में लाया गया। 28 जून 1999 को कैप्टन विजयंत थापर अपनी यूनिट की अल्फा कम्पनी की एक अग्रिम प्लाटून का नेतृत्व कर रहे थे। उनकी यूनिट को थ्री पिम्पल्स, नॉल और लोन हिल क्षेत्र पर कब्ज़ा करने की जिम्मेदारी दी गयी। हमले की शुरुआत तब हुई जब कैप्टन विजयंत थापर की यूनिट पूर्णिमा की रात को बिना किसी छुपाव के सीधी चढ़ाई वाली पहाड़ी पर आगे बढ़ रही थी। दुश्मन की ओर से तोपखाने की भारी गोलाबारी हो रही थी। इस गोलाबारी में 2 राजपूताना राइफल्स के काफी सैनिक घायल हो गये जिससे हमला कुछ देर के लिए बाधित हो गया। अपने दृढ़ संकल्प के साथ कैप्टन थापर दुश्मन का सामना करने के लिए अपने सैनिकों के साथ आगे बढ़े। वह पूर्णिमा की रात थी और उस स्थान पर कब्जा करना बहुत कठिन था। दुश्मन की 6 नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री पहाड़ी के ऊपर बंकरों में थी।
रात 8 बजे हमला शुरू हुआ हमारे तोपखाने ने कवरिंग फायर देना शुरू किया। दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हो गई और आसमान तोप के गोलों और रॉकेटों की आवाज से कांप उठा। इस भीषण गोलीबारी में 2 राजपूताना राइफल्स के कैप्टन विजयंत थापर हमले का नेतृत्व करते हुए आगे बढ़ रहे थे। इसी बीच कैप्टन विजयंत थापर के रेडियो आपरेटर सिपाही जगमाल सिंह वीरगति को प्राप्त हो गये। कैप्टन थापर की कंपनी ने नॉल पर अपना कब्ज़ा जमा लिया। इस हमले में कंपनी कमांडर मेजर पी आचार्य वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। कैप्टन थापर ने मेजर पी आचार्य के वीरगति के समाचार से गुस्से से भर गये और दुश्मन को सबक सिखाने के लिए अपने साथी नायक तिलक सिंह के साथ आगे बढ़े। दोनों ने महज 15 मीटर की दूरी पर दुश्मन से दो दो हाथ करना शुरू कर दिया। दुश्मन की तीन मशीनगनें उनकी ओर गोलीबारी कर रही थीं। लगभग डेढ़ घंटे की भीषण गोलीबारी के बाद कैप्टन थापर को एहसास हुआ कि दुश्मन की मशीनगनों को चुप कराना होगा नहीं तो वह आगे नहीं बढ़ सकते।
नॉल से आगे की पहाड़ी बहुत संकरी और चढ़ाई वाली थी और केवल 2 या 3 सैनिक ही एक साथ चल सकते थे। यहां दुश्मन से खतरा बहुत ज्यादा था और इसलिए कैप्टन थापर ने नायक तिलक सिंह के साथ खुद आगे बढ़ने का फैसला किया। उन्होंने उत्तर की ओर से हमले का नेतृत्व करना चाहा लेकिन दुश्मन की मीडियम मशीन गनों से हो रही फायरिंग बाधा खड़ी़ कर रही थी। वे निडर होकर अपनी यूनिट की जयघोष की गर्जना के साथ दुश्मन पर फायर करते हुए और हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए दुश्मन पर टूट पड़े़।
इस कार्यवाही के दौरान वह गंभीर रूप से घायल हो गये लेकिन अपने साथियों को आगे बढ़़ते रहने के लिए प्रेरित करते रहे। उनके साहस और जोश को देखते हुए उनके साथियों ने दुश्मन पर दुगुने जोश से आक्रमण किया और दुश्मन पर हावी हो गये। इस कार्रवाई ने दुश्मन को अपनी स्थिति छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया लेकिन ज्यादा घायल हो जाने के कारण कैप्टन विजयंत थापर वीरगति को प्राप्त हो गये।
कैप्टन विजयंत थापर ने अपूर्व साहस, वीरता और नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन को नोल से भागने पर मजबूर कर दिया और सेना की उच्च परम्पराओं को कायम रखते हुए अपना सर्वोच्च वलिदान दिया। उनकी वीरता और साहस के लिए उन्हें 15 अगस्त 1999 को युद्ध काल के तीसरे सबसे बड़े सम्मान “वीर चक्र” से सम्मानित किया गया।
*कैप्टन थापर का वह आखिरी खत*
डियर पापा, मम्मी…जब तक आप लोगों को मेरा यह खत मिलेगा, मैं दूर ऊपर आसमान से आप लोगों को देख रहा होऊंगा। मुझे कोई शिकायत, अफसोस नहीं है। अगर, मैं अगले जन्म में फिर से इंसान के रूप में ही पैदा होता हूं तो मैं भारतीय सेना में ही भर्ती होने जाऊंगा और अपने देश के लिए लडूंगा, अगर हो सके तो आप जरूर उस जगह को आकर देखना, जहां आपके कल के लिए भारतीय सेना लड़ रही है।
जहां तक यूनिट की बात है नए लड़कों को इस शहादत के बारे में बताया जाना चाहिए। मुझे उम्मीद है मेरा फोटो मेरे यूनिट के मंदिर में करनी माता के साथ रखा जाएगा। जो कुछ भी आपसे हो सके करना, अनाथालय में कुछ पैसे देना, कश्मीर में रुखसाना को हर महीने 50 रुपए भेजते रहना। योगी बाबा से भी मिलना। बर्डी को मेरी तरफ से बेस्ट ऑफ लक।
देश पर मर मिटने वाले इन लोगों का ये अहम बलिदान कभी मत भूलना, पापा आप को तो मुझ पर गर्व होना चाहिए, मम्मी आप मेरी दोस्त से मिलना, मैं उससे बहुत प्यार करता हूं। मामा जी मेरी गलतियों के लिए मुझे माफ कर देना। ठीक है फिर, अब समय आ गया है, जब मैं अपने साथियों के पास जाऊं। बेस्ट ऑफ लक टू यू ऑल। लिव लाइफ किंग साइज।
– आपका रॉबिन
यह शब्द तोलेलिंग के टाइगर कैप्टन विजयंत थापर के उस आखिरी खत के हैं जिसको उन्होंने जंग में जाते समय अपने एक मित्र को इस हिदायत के साथ दिया था कि यदि मैं शहीद हो गया तो इसे मेरे घर पर पहुंचा देना और यदि वापस आया तो फाड़कर फेंक देना।
*सैनिक जीवन से हटकर जिन्दगी*
रूखसाना जम्मू और कश्मीर के कुपवाड़ा स्थित सैन्य शिविर के पास रहने वाले एक नागरिक की बेटी थी । आतंकवादियों ने उसके पिता की हत्या कर दी थी। सदमे और डर के कारण वह बच्ची हमेशा चुप रहती थी। एक दिन उस बच्ची पर कैप्टन थापर की नजर पड़ी तो उन्होंने उस बच्ची के चुप रहने के कारण को वहां के नागरिकों से जानने का प्रयास किया। जब उन्हें पता चला कि पिता की आतंकवादियों द्वारा की गयी हत्या से यह परेशान है तो उन्होंने उसे भरेसा दिलाया की सेना उसके साथ है। कैप्टन थापर उसे अपनी बेटी की तरह मानने लगे। उनके प्रयासों से वह बच्ची सामान्य होने लगी
कैप्टन थापर रूखसाना को सालाना पचास रुपये की पॉकेटमनी भी दिया करते थे। इसलिए कैप्टन थापर ने खत में कहा कि वह अगर नहीं रहे तब भी रुखसाना को 50 रुपये देते रहें। बेटे की चाहत पूरी करते हुए उनके पिता कर्नल वी एन थापर हर साल कारगिल युद्ध की वर्षगांठ पर द्रास सेक्टर की उन पहाड़ियों तक जाते हैं और रुखसाना से भी मिलते हैं।
– हरी राम यादव
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