मातृ-शिशु मृत्यु दर को न्यूनतम स्तर पर ले जाना है – सीएमओ

*प्रसव के दौरान की जटिलताओं पर 21 दिवसीय प्रशिक्षण में पांच दिन चली थ्योरी *50 शैय्या जिला अस्पताल में प्रशिक्षणार्थी का शुरू हुआ 16 दिवसीय प्रैक्टिकल *सुरक्षित प्रसव के सिखाए जा रहे गुण 

रिपोर्ट – आकाश उर्फ अक्की भईया संवाददाता 

औरैया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से स्किल बर्थ अटेंडेंट (एसबीए) का 21 दिवसीय प्रशिक्षण शुरू किया गया है । पांच दिनों तक थ्योरी के बाद अब सोमवार से 16 दिनों तक प्रशिक्षणार्थियों को एफआरयू (फर्स्ट रिफरल यूनिट) में प्रसव के दौरान उत्पन्न होने वाली जटिलताओं से निपटने के विषय में विस्तृत रूप से प्रशिक्षित किया जाएगा।

प्रशिक्षण कार्यक्रम के विषय में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अर्चना श्रीवास्तव का कहना है कि इस प्रशिक्षण का उद्देश्य मातृ-शिशु मृत्यु दर को न्यूनतम स्तर पर ले जाना है। आज जनपद की स्थिति इस मामले में बेहतर हुई है, मगर सुधार की गुंजाइश अभी भी है। गर्भवती को प्रसव पूर्व जांचों के लिए प्रेरित करें, उन्हें उसके फायदे बताए जाएं। अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. शिशिर पुरी ने बताया कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में चुनौतियां बहुत हैं। प्रसव कार्य से जुड़े स्वास्थ्य कर्मियों को सजग होकर अपनी जिम्मेदारी को निभाना है ताकि मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सके। 16 दिवसीय प्रशिक्षण के पहले दिन प्रशिक्षणदाता स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. कीर्ति ने उपस्थित स्टाफ नर्सों और आयुष मेडिकल अफसरों को प्रसव के दौरान उत्पन्न होने वाली जटिलताओं की जानकारी दी और इससे बचाव के तरीके बताए। गर्भावस्था से लेकर प्रसव तक आने वाली गंभीर स्थितियों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी और कहा कि प्रसव पीड़ा और प्रसव के चौबीस घंटे के दौरान होने वाली मृत्यु रोकने के लिए स्टाफ को दक्ष होना चाहिए। सबसे जरुरी है कि प्रसव पूर्व की गई जांचों का अध्ययन किया जाए और उसी के अनुरुप गर्भवती का इलाज कराया जाए। यदि प्रसव के दौरान गर्भवती को किसी तरह की समस्या है तो इसके लिए विशेषज्ञ की मदद भी ली जानी चाहिए। स्टाफ नर्स, एएनएम का मरीज से सीधा जुड़ाव होता है, इसके लिए उसे मानसिक संबल भी दिया जाए।यूपीटीएसयू से मास्टर ट्रेनर व नर्स विशेषज्ञ ने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में चुनौतियां बहुत हैं। प्रसव कार्य से जुड़े स्वास्थ्य कर्मियों को सजग होकर अपनी जिम्मेदारी को निभाना है ताकि मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सके। लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या कानूनन अपराध है, इस बारे में लोगों को जागरूक करें। अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान उनकी जांचें सुनिश्चित की जाए और सभी प्रकार के टीकें भी लगाने का काम किया जाए। घर जाने के बाद प्रसूता को देखभाल संबंधी जानकारी दी जाए और खानपान और स्वच्छता के बारे में भी समझाया जाए। उन्होंने बताया कि प्रथम चरण में 100 शैय्या जिला अस्पताल सहित ब्लॉक अजीतमल , सहार व बिधूना की स्टाफ नर्स और एएनएम को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इन सभी को प्रसव के दौरान उत्पन्न होने वाली जटिलताओं की जानकारी दी गई और इससे बचाव के तरीके बताए गए।

Related Articles

Back to top button