बेचारे कुम्हारों के दियों के सामने रेडिमेड दीपकों की चौनौती

     बेचारे कुम्हारों के दियों के सामने रेडिमेड दीपकों की चौनौती _______        *एक दिन में कुम्हार बना पता 500- 600        *रेडिमेड दीपक मशीनों से बनते हजारों

फोटो :- मशीनों से बने रेडिमेड दीपक बेचता एक दुकानदार
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     (वेदव्रत गुप्ता)
   जसवंतनगर (इटावा)।दीपावली के पर्व पर दिए जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है ।बताया जाता है कि भगवान राम, जब 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तो अयोध्या वासियों ने अपने घरों पर दीपकों का प्रज्वलन कर  उनकी जोरदार अगवानी  और अपनी खुशियां व्यक्त की थी।  राम के अयोध्या से वनवास से लौटने की खुशी में ही दीपावली का त्यौहार हर वर्ष अब मनाया जाता है।

      सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी जारी है। उस जमाने में कुम्हार के हाथ के बने ही दीपक तेल और घी  भरकर जलाए जाते थे। आज भी मिट्टी के दीपक दीपावली के दिन जलाना सर्वाधिक शुभ माना जाता है ।हालांकि  समय बदलने और वैज्ञानिक खोजों के  चलते तरह-तरह के दीपक अब बाजारों में आ गए हैं। इनमें विद्युत  चालित  और अब तो  पानी  डालने से जलने वाले भी दीपक भी ईजाद हुए हैं।
     मिट्टी के दीपक कुम्हार लोग वर्ष भर बनाकर एकत्रित करते  हैं और दीपावली को इन्हें बेचकर अपने जीवकोपार्जन के लिए महीनों की रोजी रोटी के लिए धन प्राप्ति  की आस लगाते रहे हैं। वैसे भी पॉलीथिन और प्लास्टिक के बने बर्तनों ने उनकी रोजी-रोटी छीन ली है।  
   दूसरी ओर अब मिट्टी के दीपक भी कुम्हार  के चाक पर  बनने की जगह ऑटोमेटिक मशीनों और सांचों द्वारा डिजाइन दार बनने लगे हैं। ऐसे दीपकों ने कुम्हारों के हाथ के बने दीपों को चुनौती दी है।
   मिट्टी के बने रेडीमेड दीपक देखने में न केवल आकर्षक होते है, बल्कि वह इतनी सुंदर-सुंदर डिजाइनो के बने होते हैं, कि लोग उन्हे खरीदना अब ज्यादा पसंद करने लगे हैं,हालांकि ऐसे रेडिमेड मिट्टी के दीपक  कुम्हार के चाक  पर बने दियों की तुलना में बिक्री में दुगने और तिगने तेज होते हैं।
    ग्रामीण क्षेत्रों में किसान और गरीब ज्यादातर कुम्हार के हाथों के बने दिए सरसों का तेल भरकर दीपावली को जलाते हैं, लेकिन बड़े शहरों और कस्बों में  लोगों की जेब अब ज्यादा सरसब्ज होने के कारण रेडीमेड दीपक ज्यादा खरीदे जाने लगे हैं।  इनसे बेचारे कुम्हारों और उनके चाक को जबरदस्त चुनौती मिली है।
      बाजारों में दीपकों की कीमतों का पता किया गया, तो कुम्हार के हाथ के बने दीपक काफी सस्ते थे। मसलन चाक पर बने दीपक जहां 10 रुपए के 10 और 15 बिक रहे थे। वहीं मिट्टी से रेडिमेड  बनाए गए दीपक साइज और डिजाइन के हिसाब से10  रुपए के पांच पांच,10 रुपए के दो और कई तो10  रुपए और 20 – 25 रुपए का एक मिल रहा था। कुम्हार  के हाथ का बना मानिक यानी कि बड़ा दिया दो या तीन रुपए का था, जबकि रेडीमेड मानिक 5 रुपए से लेकर 50  रुपए तक के बाजार में बिक रहे थे।  रेडीमेड बनाने वालों ने उन्हें रंग पोत व पैंट कर और आकर्षक बना दिया था।
       जानकारी मिली कि एक कुम्हार अपने  चाक को घुमाकर पूरे दिन में मुश्किल से 5 – 600 दीपक ही बना पाता है ,जबकि रेडीमेड  दिए मशीनों के सांचे में डालकर  फटाफट बनते हैं। लागत के हिसाब से ये रेडिमेड सस्ते पड़ते हैं, फिर भी तेज बिकते हैं ।बेचारे कुम्हार को इन रेडीमेड दीपों ने  जो जबरदस्त चुनौती दी है।, उससे हाथ के कारीगर परेशान हैं। कई कुम्हारों ने बताया कि पिछले वर्षों में उनके काफी संख्या में दीपक और मानिक नहीं बिके थे और दीपावली त्यौहार पर बिकने से बच गए थे, क्योंकि लोग रेडीमेड दीपों की ओर शहरों और कस्बों में ज्यादा आकर्षित थे।
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