राम के हाथों लंकाधिपति रावण सहित उसका पूरा कुनबा मौत की नींद सोया

*जसवंत नगर की रामलीला में 7 घंटे तक चला राम रावण युद्ध। *रावण की पुतले के अंजर-पंजर लोग उठा ले गए

        फोटो:- राम लक्ष्मण से भयावह संग्राम करता लंकेश रावण। विभीषण राम को रावण की नाभि में अमृत होने की बताता हुआ तथा कटरा पुख्ता मोहल्ले में  भोला शुक्ल  द्वारा रावण का माला डालकर स्वागत किया जाता हुआ।
जसवंतनगर (इटावा)।  प्रकांड विद्वान और और  लंकाधिपति रावण मंगलवार रात मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के हाथों मौत की नींद सो गया। उस समय पंचक मुहूर्त था और यहां के विख्यात रामलीला  मैदान में तिल रखने को जगह नहीं थी।
    अकेले लंकेश रावण की ही राम के हाथों मौत नहीं हुई, बल्कि उसके पूरे कुनबे का रामा दल ने सफाया कर दिया। 
    यहां की मैदानी रामलीला में दशहरा पर्व के अवसर पर प्राचीन जीवंत युद्ध कला के, जो  नजारे लोगों को देखने को मिले और रावण के पुतले को गिराकर उसके अंजर- पंजर लोगों द्वारा बीन कर ले जाए जाने का दृश्य जिसने भी देखा वह दंग रह गया। 
        राम और रावण की सेना के मध्य कुल मिलाकर 7 घंटे  से ज्यादा युद्ध चला और रावण का ठीक रात्रि 9.55 पर बध, जब हुआ उस समय हर तरफ राम की जय जयकार थी।
       रामलीला में सोमवार को दुर्मुख, कुंभकर्ण, अतिकाय और मेघनाद के  वध से बौखलाया रावण  दोपहर एक बजे ही दशानन सैन्य छावनी  से अपने युद्धक  डोले पर सवार होकर नगर की सड़कों पर युद्ध को निकल पड़ा। उसने पहले केला गमा देवी मंदिर पर देवी से वरदान मांगा। इसके बाद जब वह जैन मोहल्ला से गुजर रहा था, तो उसकी आरती और पूजा जैन मंदिर के सामने सबसे पहले चक समाज के लोगों ने अरविंद नेतू और बूटी चक के नेतृत्व में  की गई। 
   पिछले करीब 40 वर्षों से जैन मोहल्ला में साधु वाले चौराहे पर रावण की आरती किए जाने की परंपरा चल रही है, वहां जब रावण अपनी सेना के साथ पहुंचा, तो रावण राजा की जय, लंकेश की जय के नारों के साथ सैकड़ो लोगों ने बड़ी परात से रावण की आरती उतारी। नसैनी पर चढ़कर उसके गले में मालाएं पहनायीं ।
    बाद में रावण भगवान राम के श्रंगार स्थल नरसिंह मंदिर पर धावा  बोलता है और अपने साथ आये योद्धाओं और नारायणतक व अहिरावण के साथ राम दल से युद्ध छेड़ देता है। फिर वहीं से दोनों दलों में भयाबह युद्ध प्रदर्शन शुरू हो जाता है।इस युद्ध में उसकी बहन  सूपर्णखा  भी  अपने भाई के साथ तलवार और धनुष बाण चलाती देखी गई।                     नरसिंह मंदिर से शुरू हुआ राम रावण का युद्ध कटरा पुख्ता, लाल जी साहब की गोदाम ,महलई टोला, कटरा बुलाकी दास, बड़ा चौराहा  कोतवाली होते हुए रामलीला मैदान तक चलता है । रास्ते के इस युद्ध में दो घंटे से ज्यादा समय लगता है। बाद में  राम लीला मैदान में रावण पुत्र नारायन्तक राम लक्ष्मण से युद्ध करने पहुँचता है। लेकिन वहां सुग्रीव पुत्र दधिबल से नारायन्तक का युद्ध होता है और नारायन्तक अपने गुरुभाई दधिबल के हाथों मारा जाता है।            
       रामलीला प्रबंधक राजीव गुप्ता बबलू, व्यवस्थापक अजेंद्र सिंह गौर, ऋषि मिश्रा, डॉ पंकज सिंह, तरुण मिश्रा, अनुज जैन, विमल जैन , राजीव माथुर, अनिल गुप्ता, रतन पांडे निखिल गुप्ता विशाल गुप्ता आदि रास्ते की लड़ाई में व्यवस्था संभाले हुए थे, जो मैदान में भी डटे थे।
 नारायणतक के मारे जाने के बाद रावण पातालपुरी से अपने अतिप्रिय अहिरावण को बुलाता है और उसे पूरी घटना बताता है। अहिरावण क्रोधित होकर राम से युद्ध करने पहुंच जाता है और  वह युद्ध से पहले राम लक्ष्मण को पंचवटी से रातों-रात चुराकर अपहरण कर लेता है और देवी के मंदिर में ले जाकर उनकी बलि चढ़ाने का जैसे ही प्रयास करता है, पवन पुत्र हनुमान पहुंच जाते हैं, जिनसे1 घण्टे से अधिक चले भीषण संग्राम में अहिरावण हनुमान के हाथों मारा जाता है ।               अहिरावण वध के उपरांत लंकाधिराज, महापराक्रमी, दशानन लंकेश स्वयं राम से युद्ध करने मैदान में उतरता है। यहां पर लगभग 4 घण्टे तक चले महासंग्राम के बाद भी जब राम के हाथों रावण पराजित नहीं होता, तब विभीषण राम को बताते हैं कि रावण की नाभि में अमृत है, जब तक  नाभि से अमृत नहीं निकलेगा ,तब तक रावण को परास्त करना असंभव है। जब रावण अपनी नाभि को निशाना बनता देखता है, तो रावण का अंतिम किरदार निभा रहा पात्र अपने विमान पर जमकर आतंक मचाने लगता हैं और अपना अंतिम प्राणरक्षक वाण निकालता हैं, लेकिन राम के तीखे वाणों के प्रहार के आगे रावण ज्यादा समय नहीं टिक पाता और नाभि में वाण लगते ही धरती पर गिर धराशाही हो जाता है। रामलीला मैदान में उपस्थित हजारों लोगों की भीड़ जय श्रीराम का जयघोष करने लगती है। इसके बाद राम के हाथों रावण का पुतला गिराया जाता है। 
यहां की रामलीला में रावण का पुतला जलाया नहीं जाता। पुतला गिरते ही सैंकड़ों लोग उस पर टूट पड़ते हैं और कुछ ही देर में रावण के पुतले को तहसनहस करके उसकी अस्थियों को अपने साथ ले जाते हैं। 
   मान्यता है कि जिस घर में रावण की अस्थियां होंगी, वहां कोई भी भूत-प्रेतबाधा, टोना-टोटका काम नहीं करता। व्यापारी अपने व्यापार की उन्नति के लिए, तो वही जुआरी जुए को जीतने के लिए अपने साथ रावण की अस्थि रूपी बांस की लकड़ी साथ ले जाते हैं।
       राम की आज्ञा पाकर हनुमानजी लंका जाकर सीता को ले आते हैं और फिर सीता की अग्निपरीक्षा के उपरांत राम-लक्ष्मण सीता सहित अयोध्या वापसी की तैयारी करते हैं। विभीषण को राम लंका का राज्य सौंप देते हैं, लेकिन विभीषण राम के साथ ही रहने की बात कहते हैं। 
      दशहरा पर होने वाली भारी भीड़ के मद्दे नजर पुलिस का भारी बंदोबस्त था।स्वयं क्षेत्राधिकारी अतुल प्रधान, थाना प्रभारी मुकेश सोलंकी, चौकी इंचार्ज ध्यानेंद्र प्रताप सिंह के अलावा कई थानों के थाना प्रभारी भारी पुलिस बल के साथ जगह-जगह पहुंच रहे थे। इसके अलावा मेला मैदान और  मेला क्षेत्र में पुलिस की टुकड़ियों इंतेजामत में लगाई गई थी। इस वजह से कहीं से भी किसी भी अपनी घटना की खबर नहीं मिली।
*वेदव्रत गुप्ता
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