*तोलोलिंग के महावीर : मेजर विवेक गुप्ता*

पाकिस्तान से लगती हमारी सीमा की लम्बाई 814 किलोमीटर है जो कि कच्छ के रण, राजस्थान के मरुस्थल और जम्मू-कश्मीर की गगनचुंबी पहाड़ों और गहरी खाइयों से होकर गुजरती है। ऐसे में सीमा की निगरानी बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है। कश्मीर के पहाड़ों पर साल के कई महीनों तक बर्फ जमी रहती है और तापमान शून्य से नीचे रहता है। ऐसी स्थिति में इन पहाड़ों पर रहना मुश्किल का काम है। वर्ष 1999 से पहले दोनों देशों की सेनाएं सर्दियों में ऊंचाई पर स्थित सीमा चौकियों को खाली कर पीछे चली जाती थी और तापमान बढ़ने के बाद पुनः उन सीमा चौकियों पर वापस आती थीं।

इसी स्थिति का फायदा उठाकर पाकिस्तान की सेना ने 1999 में कारगिल, द्रास, मश्कोह, बटालिक आदि अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना ठिकाना बना लिया था। उनका मकसद एन एच 1 पर नियंत्रण कर आपूर्ति व्यवस्था को काटना और हमारी सीमा चौकियों पर कब्जा जमाना था। 03 मई 1999 को पहली बार इस घुसपैठ की सूचना एक स्थानीय चरवाहे ने दी। तत्काल सेना ने एक्शन लिया और सेना मुख्यालय और प्रधानमंत्री को स्थिति से अवगत कराया। उस समय देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेई।

सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को शीघ्र मार भगाने का फैसला लिया। इसी क्रम में 2 राजपूताना राइफल्स को तोलोलिंग चोटी पर फतह हासिल करने का जिम्मा सौंपा गया। महावीर चक्र विजेता मेजर विवेक गुप्ता इसी यूनिट का हिस्सा थे।

मेजर विवेक गुप्ता का जन्म 02 जनवरी 1970 को देहरादून में हुआ था। उनके पिता कर्नल बी आर एस गुप्ता भी सेना में थे। इनकी स्कूली शिक्षा आर्मी पब्लिक स्कूल धौलाकुआं, नई दिल्ली में हुई। 13 जून 1992 को भारतीय सेना की 2 राजपूताना राइफल में कमीशन लिया। कारगिल युध्द के समय इनकी यूनिट 2 राजपूताना राइफल द्रास सेक्टर में तैनात थी। मेजर विवेक गुप्ता 2 राजपूताना राइफल की चार्ली कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे। 13 जून 1999 को उनकी यूनिट को द्रास सेक्टर में स्थित तोलोलिंग चोटी पर हमला करने का आदेश मिला। पाकिस्तान की तरफ से तोपखाने और स्वचालित हथियारों से लगातार फायरिंग हो रही थी। बिना परवाह किए हुए मेजर विवेक गुप्ता का दल आगे बढ़ता रहा। उनका दल जैसे ही आड़ से बाहर आया दुश्मन ने चारों ओर से फायर करना शुरू कर दिया। उनकी अग्रिम टुकड़ी के तीन सैनिकों को गोलियां लगीं। इसी कारण कुछ देर के लिए आगे बढ़ना रूक गया।

मेजर विवेक गुप्ता ने सब कुछ ठीक जानकर ज्यादा देर तक वहां रूकना उचित नहीं समझा क्योंकि वहां पर दुश्मन भारी गोलीबारी कर रहा था। मेजर गुप्ता ने मौका देखकर एक राकेट लांचर दुश्मन की तरफ दाग दिया। दुश्मन को संभलने का मौका दिए बिना मेजर गुप्ता ने दुश्मन के ठिकाने पर हमला बोल दिया। शत्रु के पास पहुंचते ही दुश्मन से आमने सामने भिड़ गये। बिना खुद के कुछ नुकसान के उन्होनें तीन पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया।

मेजर गुप्ता की इस बहादुरी को देखकर उनके साथी पाकिस्तानी सैनिकों पर टूट पड़े और वहां पर कब्जा जमा लिया। इसी बीच दूसरी तरफ बैठे पाकिस्तानी सैनिकों ने मेजर गुप्ता के ऊपर अंधाधुंध गोलियां चला दीं। मेजर गुप्ता गंभीर रुप से घायल हो गए। घायल होने के बाद भी मेजर विवेक गुप्ता अंतिम सांस तक दुश्मनों से लडते रहे। रण क्षेत्र में पराक्रम और असाधारण वीरता प्रदर्शित करने के लिए मेजर विवेक गुप्ता को 13 जून 1999 को मरणोपरांत देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान “महावीर चक्र” से सम्मानित किया गया ।

मेजर विवेक गुप्ता का पार्थिव शरीर जब दिल्ली पहुंचा तो उनके अंतिम दर्शनों के लिए आम लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। पूरी दिल्ली तोलोलिंग के नायक को अंतिम विदाई देना चाहती थी। मेजर विवेक गुप्ता की पत्नी कैप्टन जयश्री भी सेना की ड्रेस में वहां पहुंची थीं, उन्होंने जब अपने वीरगति प्राप्त पति को सैन्य धुन पर सलामी दी तो पूरी भीड़ की आंखों से आंसू बह निकले। पूरा क्षेत्र “विवेक गुप्ता अमर रहे” के नारों से गूंज उठा।

– हरी राम यादव

7087815074

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