गधा और उसकी माँ दोनों चमत्कारी
गधा और उसकी माँ दोनों चमत्कार
मैंने सुना है एक सूफी फकीर अपने शिष्य से बहुत प्रसन्न था। जब यह
यात्रा पर जा रहा था, तो जिस गधे पर बैठकर वह यहाँ-वहाँ
जाता था, उसे अपने शिष्य को दे दिया।
फकीर चला गया। अब शिष्य में सोचा कि यह गुरु का गया
कोई साधारण गधा तो है नहीं, अतः इसकी सेवा करनी चाहिए। तो यह
उस गधे की सेवा करता था। संयोग की बात, गया मर गया। ज्यादा सेवा
को होगी। गधों को सेवा की आदत होती भी नहीं। लगता था कि कुछ
ज्यादा ही सेवा कर दी। ज्यादा नहलाया-धुलाया होगा, रगड़-रगड़कर। जब
गधा भर गया, तो उसने उसकी समाधि बनाई और वहीं बैठकर रो रहा
था। क्योंकि गुरु एक दान दे गए थे, एक भेंट कर गए थे। पता नहीं क्या
राज था उसमें और यह पर गया। अब जो कर सकते थे, समाधि बना
दी संगपरयर की, उस पर बैठा रो रहा था फूल चढ़ाकर।
गाँव के लोग आए। उन्होंने देखा और सोचा कि जरूर किसी महापुरुष
की समाधि है। अतः कोई फूल चढ़ा गया, कोई पैसे चढ़ा गया। चढ़ोत्तरी
बढ़ने लगी। वह शिष्य यही बैठे-बैठे चढ़ोतरी इकट्ठी करने लगा। धीरे-धीरे
उसने यहाँ एक मंदिर बना लिया। गधे की तो बात ही भूल गया वह। काफी
भीड़-भाड़ इकट्ठी होने लगी वहाँ। लोग मनोतियाँ करने लगे। मनौतियाँ
पूरी भी होने लगी। मनीतियों का बड़ा मजा है। अगर सी आदमी मनौती
करें, चाहे गधे की कब ही हो, तो भी पचास की तो गणित के नियम से
ही पूरी हो जाने वाली है। जिनकी पूरी हो गई, वे तो चढ़ोत्तरी चढ़ाने आएँगे
ही और जिनकी पूरी नहीं हुई, ये किसी और गधे की कब्र की तलाश करेंगे।
धीरे-धीरे जिनकी मन्नतें पूरी होंगी, उनकी भीड़ बढ़ती जाएगी। फिर जब , हजारों लोग कहेंगे कि हमारी मनौती पूरी हुई, तो नए आने वाले लोग भी
सम्मोहित होते हैं। वे सोचते हैं कि जब इतने लोगों की पूरी हुई, तो हमारी
भी होगी; क्यों नहीं होगी? अरे, श्रद्धा का तो फल मिलता ही है।
कुछ दिनों बाद गुरु काबा से वापस लौटा। इधर तो मंदिर बन गयाऐ
था, समाधि लग गई थी। गुरु को देखकर शिष्य को याद आया कि अरे,
यह मैंने क्या किया? एकदम गुरु के पैर पकड़ लिए, कहा, “क्षमा करिए,
माफ करिए! मगर आप बड़ा चमत्कारी गधा दे गए थे। लोगों की मनौतियाँ
पूरी हो रही हैं और लोगों की हों या न हों, मेरे तो भाग्य खुल गए। धन
की वर्षा हो रही है। झरत दसहुँ दिस मोती! मेला ही लगा रहता है यहाँ।”गुरु ने कहा, “तू फिक्र मत कर, यह गधा था ही चमत्कारी। इसकी माँ
भी बड़ी चमत्कारी थी।” शिष्य ने पूछा, “इसकी माँ के संबंध में कुछ
समझाइए।” गुरु ने कहा, “समझाना क्या। अरे, जैसे तू इसकी कब्र का
मजा ले रहा है, वैसे ही हम इसकी माँ की कब्र का मजा ले रहे हैं। अपने
गाँव में इसकी माँ की हमने कब्र बनवा दी है। यह खानदानी चमत्कारी
था। यह कोई साधारण गधा नहीं था, बड़ा पहुँचा हुआ गधा था।”
ओशो
सौजन्य से दिव्य जीवन जागृति मिशन इटावा ( उत्तर प्रदेश)