कुछ की आत्मा जाग रही है
*कुछ की आत्मा जाग रही है*
उठो और तुम चेतो जनता,
कुछ की आत्मा जाग रही है।
आवाज स्वयं सुनकर बेचारी,
इधर उधर वह भाग रही है ।
इधर उधर वह भाग रही है,
तोड़ रही है अपने सारे बंधन।
यदि जगे नहीं अब भी तुम,
तो करते रहोगे करुण क्रंदन।
लेकर के मत बहुमूल्य तुम्हारा
बदल रही वह अपना अभिमत।
तुम भी आत्मा की आवाज सुनो,
पेंडुलम जैसों में मत रहो रत।।
– हरी राम यादव
7087815074