सैनिक से सांसद तक का सफरनामा – स्वर्गीय मित्रसेन यादव
(जयंती -11 जुलाई)
जब भी किसी देश, राज्य या समाज में अत्याचार, शोषण, भ्रष्टाचार बढ़ता है, तब एक सहन सीमा के बाद उस देश, राज्य या समाज में उस शोषण और अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए या तो वर्ग संघर्ष जन्म लेता है या तो कोई जननायक उत्पन्न होता है जिनके साथ असंख्य भीड़ नहीं, उनके साथ नीड़ का सैलाब उमड़ पड़ता है और वह सैलाब अपने साथ अत्याचारी और शोषणकारी को तिनके की भांति बहा ले जाता है। अत्याचारी और शोषणकारी बहुत हाथ पैर मारता है लेकिन उसको उकसाने, बढ़ाने और सदैव साथ देने का भरोसा देने वाले लोग तालाब की काई की तरह अपना सिर बचाते हुए बगल हो जाते हैं । और अन्याय , अत्याचार, शोषण के विरुद्ध खड़ा होने वाला समाज या व्यक्ति जन नायक के रुप में उभरता है। आज ऐसे ही एक जननायक की जयंती है, जिनका जन्म तब के संयुक्त अवध प्रांत के फैजाबाद (अब अयोध्या) में हुआ था।
समाज और सियासत में अपने संघर्षों की बदौलत सफलता की अमिट कहानी लिखने वाले 07 बार के विधायक और 03 बार के सांसद मित्रसेन यादव उर्फ बाबूजी का जन्म 11 जुलाई 1934 को संयुक्त अवध प्रांत के जनपद फैजाबाद (अब अयोध्या) की मिल्कीपुर तहसील के गांव भिटारी में हुआ था। इनके पिताजी का नाम श्री भगवती प्रसाद यादव तथा माताजी का नाम श्रीमती मुन्नी देवी था। इन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अहरन सुवंश, हाईस्कूल की शिक्षा बलदेव इंटर कॉलेज, सेवरा तथा इंटरमीडिएट की शिक्षा एम एल इंटर कॉलेज फैजाबाद से पूरी की। 10 मई 1949 को इनका विवाह श्यामली यादव से हुआ।
इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद मित्रसेन यादव भारतीय सेना में भर्ती हो गये। सेना में सर्विस करते हुए वह अवकाश पर जब भी घर आते तो क्षेत्र में सामन्तों द्वारा गरीबों पर किये जा रहे अत्याचारों को लोगों से सुनते तो उनका मन उद्वेलित हो उठता। उस समय इनके क्षेत्र में सामंतवादी सोच का बोलबाला था। वह मन ही मन गरीबों को अत्याचारों से निजात दिलाने का उपाय सोचते। इसी बीच उन्होंने पिता की मृत्यु हो जाने पर सेना की सर्विस छोड़ दी। इसके बाद क्षेत्र के सामन्तों के विरुद्ध गरीबों की लड़ाई को लड़ने का निश्चय किया।
सन् 1964 में मवई कांड हुआ जिसमें सामंतवादी सोच वाले लोगों के अत्याचारों से तंग आकर गांव के लोगों ने दो लोगों को मार दिया । इस दोहरे कत्ल के केस में 07 लोगों के साथ मित्रसेन यादव को आरोपी बनाया गया। इसके बाद मिल्कीपुर क्षेत्र में बदले की आग भड़क उठी और एक के बाद एक कई हत्याएं और जानलेवा मारपीट हुईं जिनमें जगन्नाथ हत्याकांड, पालपुर कांड, कृष्ण कुमार हत्याकांड, मुंगीशपुर कांड, ईंटगांव कांड, भवानीपुर कांड तथा चमरुपुर कांड मुख्य हैं। सन् 1966 में इस दोहरे हत्याकांड में श्री यादव को उम्र कैद की सजा सुनाई गई । लगभग पांच वर्ष की सजा काटने के पश्चात सन् 1972 में कांग्रेस पार्टी के नेता कमलापति त्रिपाठी ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल से इनकी सजा माफी की अपील की। 07 अक्टूबर 1972 को तत्कालीन कार्यवाहक राज्यपाल श्री शशिकांत वर्मा ने इन्हें जेल से रिहा करने का आदेश दे दिया।
मित्रसेन यादव सन् 1966 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में राजनीति में शामिल हुए। सन् 1977 में मित्रसेन यादव भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मिल्कीपुर निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए । वह 1977, 1980, 1985 और 2012 में बीकापुर से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए फिर से चुने गए।
मित्रसेन यादव 1991 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उम्मीदवार के रूप में अयोध्या निर्वाचन क्षेत्र से 9वीं लोकसभा के लिए चुने गए। इसके पश्चात वह 04 मार्च 1995 को समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। 1998 में, वह उसी निर्वाचन क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में 12वीं लोकसभा के लिए चुने गए । सन् 2004 में वह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए और 14वीं लोकसभा के लिए चुने गए । सन् 2009 में राजनीति ने फिर करवट बदली और वह फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये।
खांटी कम्युनिस्ट रहे स्व0 मित्रसेन यादव ने 1966 में राजनीति में प्रवेश किया था और फिर कभी पीछे मुडकर नहीं देखा, चाहे वह भगवा लहर ही क्यों न रही हो। इस लहर में भी वह लहरा कर निकले और भाजपा नेता विनय कटियार को पटकनी दे दी थी। जीवन के अंतिम समय में मिल्कीपुर विधानसभा सीट आरक्षित हो जाने के बाद श्री मित्रसेन यादव बीकापुर से विधायक चुने गए। फैजाबाद संसदीय सीट कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर 1989 में उन्होंने जीत दर्ज की। जिसके बाद 1998 और 2000 में भी फैजाबाद लोकसभा से निर्वाचित होकर दिल्ली पहुंचे।
राजनीति में एक लंबा समय बिताते हुए हमेशा गरीब, किसान, मजदूर, शोषित, पीड़ित के साथ खड़े होने के कारण और इनकी लड़ाई को अपनी लड़ाई समझकर लड़ने के कारण श्री यादव के ऊपर आपराधिक केसों की झड़ी लग गयी थी, लेकिन उनके कदम सैनिक जैसे ही अडिग रहे। वह सदैव शोषितों और वंचितों के साथ खड़े रहे। उन्होंने हमेशा सत्य और न्याय का साथ दिया, कभी जाति, धर्म के आधार पर किसी के साथ व्यवहार नहीं किया। उनके साथ समाज के हर जाति, धर्म और सम्प्रदाय के लोग थे । श्
मित्रसेन यादव ने सेना में सीखे सर्वधर्म समभाव की भावना को सदैव सर्वोपरि रखा। इसी सर्वधर्म समभाव की भावना के कारण ही उनकी छवि, सर्वमान्य नेता की बनी और वे किसी जाति धर्म और समुदाय के नेता नहीं बल्कि वह जननायक बने। उनके बारे में कहा जाता है कि वह जनपद अयोध्या के एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने सैनिक बनने से लेकर सांसद बनने तक का सफर तय किया है।
07 सितंबर 2015 को 81 वर्ष की उम्र में जननायक मित्र सेन यादव ने लखनऊ के डाक्टर राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में अंतिम सांस ली।
– हरी राम यादव
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