फादर्स डे स्पेशल: एडिशनल एसपी दिगंबर सिंह ने बताई अपने बारे में और अपने पिताजी के बारे में

फादर्स डे स्पेशल: एडिशनल एसपी दिगंबर सिंह ने बताई अपने बारे में और अपने पिताजी के बारे में

 

औरैया में तैनात पीसीएस दिंगबर सिंह कुशवाह ने बताया की एक पिता की चिट्ठी ने बदल दी उनकी दुनिया 

रिपोर्ट – आकाश उर्फ अक्की भईया संवाददाता 

दिगंबर कुशवाह कहानी -:-   मै पोस्टग्रजुएट की परीक्षा दे कर ज्योहि फुरसत पाया,उसके तत्काल बाद बाबूजी का आदेश हुआ की तुम गोरखपुर छोड़ दो और बनारस,इलाहाबाद,दिल्ली या लखनऊ में से जो तुमको अच्छा लगे, कंपटीशन की तैयारी के लिए वहां चले जाओ,क्योंकि तुम 5 साल से गोरखपुर में रह रहे हो मित्र मंडली तुम्हारी अब तक केवल पढ़ाई के लिए थी,अब प्रतिस्पर्धा लायक नही है।

उपरोक्त आदेश के अनुपालन मैं काफी सोच विचार के बाद अपने कपड़े,एक चादर,स्टोव,छोटा सा मेज,कुछ किताबे और जरूरी सामान ले कर बस से इलाहाबाद के लिए चल दिया।वैसे गोरखपुर व इलाहाबाद जाने के बीच एक और रोचक एवन मेरे लिए दुखद घटना है ,जो कुभी टाइम मिला तो जरूर पोस्ट करूंगा।

उच्च दिन बाद ही मैं गोरखपुर से मय जरूरी सामान लाद कर बस से इलाहाबाद सुबह पांच बजे ही पहुंच गया ,और एक नेक दिल इंसान श्री मनोज भैया की मदद से दारागंज में उनके एक रिश्तेदार के यहां शरण लिया, वैसे वहां पहले से कोई मकान या कमरा बुक नही था, न ही कोई मुझको जानता था,मनोज भैया के रिश्तेदार संजय भैया का पता पूछते हुए ,दारागंज पहुंच गया,।उनके द्वारा मेरी मदद करते हुए आश्रय देने के साथ ही साथ एक कमरा किराए पर दिलवा दिया गया। यहां पर गोरखपुर के पढ़ाई संबंधी सामान्य माहौल की तुलना में मुझको इलाहाबाद का माहौल समझने में दिक्कत महसूस होने लगी।उच्च दिन के बाद सबसे मिलना जुलना शुरू हुआ ।इस दौरान एक बात लगभग सभी में कॉमन लगी की ज्यादातर अभ्यर्थी तीन चार वर्षो से तैयारी कर रहे थे,और उसमे से भी ज्यादातर वही से स्नातक एवन पीजी कर रहे थे।जिससे पुछु की कब से आप तैयारी कर रहे है ? तो सभी एक ही बात बताए की की वर्षो से तैयारी कर रहा हूं।लेकिन मेरी कुछ आर्थिक सीमाएं थी जो अन्य लोगो से भिन्न थी।s प्रकार कुछ दिन तक मिलने एवन तैयारी करने वाले लोगो से मिलने जुलने का कार्यक्रम चलता रहा।

मै जब भी किसी से मिलता था ,सभी मुझसे ज्ञान में ज्यादा महसूस होते थे।दिन तो दिन ,यहां तक जब भी रात में जागता था तो ज्यादातर छात्र लेट नाइट पढ़ाई करते दिखते।मुझको महसूस हुआ की मैं तो इन अभ्यर्थियों को अपेक्षा कम ज्ञान रखता हु, और दूसरा मैं इतना मेहनत शायद नहीं कर पाऊंगा,साथ ही साथ बाबू जी की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी भी नही है की मुझको पांच छह साल तक पढ़ा सके।ये बाते सोचकर मैं निराश हो गया ,और सोचा की इतने वर्षो तक बाबूजी मुझको पढ़ा नहीं कर पाएंगे,और जो लोग इतने सालो से यहां रह कर तपस्या कर रहे है,शायद मैं मैं उनसे कंपीट नहीं कर पाऊंगा। कई राते व दिन यही सोचते हुए निकल गए। अंत में मेरे दिल ने फैसला किया की कि दिगंबर ये नीली बत्ती आपके वश के बाहर है आप अपने बाबू जी का पैसा व अपना टाइम बेवजह खर्च करेंगे जिसका कोई धनात्मक रिजल्ट नही आने वाला है।बहुत सोच विचार व मनन करने के उपरांत जो मुझको अच्छा लगा उसके अनुसार एक निर्णय ले लिया।भविष्य के बहुत ऊंचे सपने को तोड़ते हुए उसी रात बाबूजी को एक लम्बा पत्र लिखा की बाबू जी अपने कुछ बनने के लिए मुझको इलाहाबाद भेज दिया है लेकिन यहां पर तैयारी करने वालो की संख्या लाखों में है,और ज्यादातर अभ्यर्थी काफी दिनो से तैयारी कर रहे है,जो मुझसे काफी तेज व आर्थिक रूप से आगे है। pcs बनने में टाइम और पैसा बहुत लगेगा,और इतना समय और पैसा खर्च करने के वावजूद भी जहां चार लाख अभ्यर्थी फार्म भरते हो और पोस्ट केवल दो सौ के करीब हो ,कोई गारंटी नहीं है की मैं ये कंपटीशन निकाल भी पाऊंगा।और इतने साल के बाद यदि असफलता हाथ लगेगी तो आपको एवन मुझको जिंदगी भर पछतावा एवन अफसोस होगा।साथ ही साथ ura परिवार,रिश्तेदार व गांव वाले भी आपके ऊपर हसेंगे की इतना पैसा बर्बाद कियाऔर कुछ बन भी नही पाया ,बल्कि इस पैसे को खेत में लगा देता तो कुछ काम बन जाता।अतः मैं गांव आ रहा हु और जो कुछ खेती है,उसको करूंगा ,लगता ही अधिकारी बनना मेरे वश का नही है।इस तरह का पत्र का मजनून लिख कर लिफाफा बंद कररात में ही जा कर पोस्ट कर दिया।और इसके बाद जरूरी सामान खास तौर पर किताबे पैक कर शकून भरी नींद में सो गया।और पढ़ाई लिखाई बंद करके बाबू जी के जवाब का बेसब्री से इंतजार करने लगा की ज्योंही जवाब आए की ,बेटा तुम गांव आकर खेती करो ,मैं बिना वक्त गवाएं अपने गांव लौट जाऊं।पढ़ाई लिखाई पूर्णतः बंद कर दिया और निश्चिंत भाव से बाबूजी के अनुमति पत्र की प्रतीक्षा करने लगा।

करीब आठ दिन बाद बाबू जी का मोटा बंद लिफाफा प्राप्त हुआ। मै पूर्णतः आश्वस्त था की पिता जी गांव आने की अनुमति जरूर दे दिए होंगे,लेकिन पत्र का जवाब कुछ और ही निकला जो इस प्रकार था....

प्रिय दिगंबर

आपका पत्र मिला।मैं बहुत पढ़ा लिखा नही हूं,लेकिन आपसे ज्यादा अनुभव है।पहली बात तो ये है की मैं आपको अधिकारी बनाने नही भेजा हु,आपके हाथ में केवल मेहनत है,अतः जब तक आपका मन करे चिंतामुक्त हो कर परिश्रम करिए हो जायेगा तो बहुत अच्छा नही होगा तो मैं आपसे कभी इस बारे में दोष नही दूंगा।दूसरी बात पैसे की है तो जो मुझसे बन पड़ेगा और जब तक जिंदा हु अपीलीय करता रहूंगा।

तीसरी बात घर आकर खेती करने का है तो जो खेती है वो वही रहेगी, नही होने के बाद आप खुशी से कर लीजिएगा,कोई नही रोकेगा।

अंतिम बात की रिश्तेदार,गांव वाले कुछ नही बनने पर ताने मार कर हसेंगे,तो मैं उसका जवाब दे लूंगा।

आप मन लगाकर अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सभी संदेह को हटाकर ,अच्छी नियत से परिश्रम करिए ।पत्र तो काफी बड़ा था,लेकिन पढ़ते पढ़ते मेरी सिसकियां प्रारंभ हो गई थी, और आंखों से आंसू अविरल निकलने शुरू होगी थे।

मेरे बाबूजी उस समय के केवल पांचवी पास थे ,लेकिन उनके विचार बहुत ही अच्छे थे।

पत्र पढ़ने के बाद सभी सामान पुनः अपने आप खुल गए।और उत्साह इतना था की मैं सुबह पांच बजे उठ जाता था और रात के 11बजे तक कुछ घंटे का आराम लेते हुए, कभी भी 12 घंटे से कम नहीं पढ़ा। परिणाम यह रहा की पहले वर्ष से ही चयन होना प्रारंभ हो गया।और कई बार फाइनल सलेक्शन भिन्न भिन्न पदों पर हुआ। आज उनकी बदौलत मैं पुलिस अधिकारी हूं और अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा हु। उनका त्याग,आदेश एवन सलाह आज भी याद है। उस महान व्यक्ति की आज प्रथम पुण्यतिथि है।जिनको मैं हमेशा नमन एवन याद करता हु।

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