सुप्रीम कोर्ट ने कल एक अखिल भारतीय करदाता संगठन बनाने के लिए एक समिति गठित करने का फैसला किया, जो दुनिया का

सबसे बड़ा निकाय होगा।

कोई भी सरकार इस निकाय की मंजूरी के बिना मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त वितरण या कर्जमाफी की घोषणा नहीं कर सकती है, भले ही कोई भी सरकार शासन कर रही हो।
चूँकि पैसा हमारे करदाताओं का है, इसलिए करदाताओं को इसके उपयोग की निगरानी करने का अधिकार होना चाहिए।
राजनीतिक दल वोट के लिए मुफ्त उपहार देकर जनता को लुभाते रहते हैं। जो भी परियोजनाओं की घोषणा की जाती है, सरकार को पहले उनका खाका प्रस्तुत करना चाहिए और इस निकाय से अनुमोदन प्राप्त करना चाहिए। यह सांसदों और विधायकों के वेतन और उन्हें मिलने वाले अन्य गैर-विवेकाधीन लाभों पर भी लागू होना चाहिए।
क्या लोकतंत्र सिर्फ मतदान तक ही सीमित है? उसके बाद करदाताओं के रूप में हमारे पास क्या अधिकार हैं?
करदाताओं को संसद के कामकाज में बाधा डालने के लिए सांसदों, विधायकों को जवाबदेह ठहराने और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का अधिकार होना चाहिए। वे सभी “नौकरों” के बाद करदाताओं द्वारा भुगतान किए जाते हैं।
ऐसे किसी भी “मुफ्त उपहार” को वापस लेने का अधिकार भी जल्द ही लागू किया जाना चाहिए।
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https://www.nationalheraldindia.com/india/sc-forming-panel-to-examine-issue-of-freebies-by-political-parties-is-burial-by-committee-experts
*एक बहुत अच्छी खबर जिसका लंबे समय से इंतजार था।*
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