जनवरी 1921 को उन्डवा में उठी थी किसान आन्दोलन की चिंगारी – पी.एल. पाल

- बाबा रामचन्द्र के किसान आन्दोलन को तोड़ने की अंग्रेजों ने की थी साजिश - उन्डवा गांव के 123 व्यक्ति जिसमें महिलाएँ बच्चे शामिल थे की हुई गिरिफ्तारी

माधव संदेश/ ब्यूरो चीफ जय सिंह यादव रायबरेली                                                              जनपद के अधिवक्ताओं ने सिविल कोर्ट परिसर रायबरेली में एक बैठक कर उन्डवा ग्राम के किसानों के संघर्ष को याद किया। बैठक की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एल. पाल ने कहा कि 6 जनवरी 1921 को बाबा रामचन्द्र द्वारा चलोय जा रहे किसान आन्दोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने उन्डवा ग्राम को किसानों पर अंग्रेजों के चाटुकार सरदार निहाल सिंह के जिल्ला फूंकने व फसल नष्ट करने का झूठा मुकदमा दर्जकर 123 व्यक्तियों को जिसमें महिलायें व बच्चे भी शामिल थे, जेल भेज दिया, वहीं से ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध किसान आन्दोलन की चिंगारी उठी थी। वरिष्ठ अधिवक्ता विमलेश अवस्थी ने कहा कि इस आन्दोलन के बाद से उन्डवा ग्राम के लोग किसानों की याद में किसान यात्रा निकाल कर 7 जनवरी किसान शहीद स्मारक पर पुष्प अर्पित करते हैं। अधिवक्ता नागेश सिंह एडवोकेट ने कहा कि इस आन्दोलन में एक ही परिवार के सद्धू प्रसाद यादव, पत्नी इन्दिरा यादव व 9 वर्षीय पुत्र बद्री प्रसाद यादव की गिरिफ्तारी हुई थी। सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष ओपी यादव, बद्री प्रसाद यादव के कनिष्ठ पुत्र है। सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के पूर्व महामंत्री रविशंकर त्रिवेदी ने कहा कि 7 जनवरी 1921 को बद्री प्रसाद यादव के ससुर महाबीर यादव मुन्शीगंज गोलीकाण्ड में घायल हुए थे। गोलीकाण्ड की घटना के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू व गणेश शंकर विद्यार्थी जिला जेल आये थे, वहीं से अगला सिलसिला बढ़ा और श्रीमती उमराई यादव का विवाह बद्री प्रसाद यादव के साथ हुआ। उमराई यादव 12 वर्ष की आयु में इन्दिरा गांधी के साथ वानर सेना में शामिल होकर जेल गयी थीं। गोष्ठी का संचालन वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व प्रधान राजेन्द्र यादव ने किया। इस अवसर पर राम बहादुर यादव, रामनरेश यादव, अंकित सौरभ, अतुल वैभव, अमित गौरव, अजय आकाश, अंकुर विवेक, अरविन्द कुमार बाजपेयी, उमानाथ पाल, कु0 हिमजी एडवोकेट, डी.एन. पाल, आशीष पाण्डेय, के.के. सिंह, संदीप यादव, जय सिंह, सौरभ यादव, सुरेश चन्द्र यादव, आर.पी.सिंह, रामसजीवन चौधरी, सत्यदेव राजपूत, रामशंकर वर्मा, आलोक विक्रम आदि लोगों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये।

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