रावण को केवल पूजते ही नही,यहां उसके नाम पर एक मार्केट भी बना
*दशहरे पर विशेष रिपोर्ट*रावण के पुतले के टुकड़ों की बनी ताबीज भी पहनाते*जसवंतनगर की रामलीला है ख्यातिप्राप्त

फोटो:रावण की आरती करते लोग,स्टेशन रोड पर रावण के नाम का मार्केटजसवंतनगर,5अक्तूबर। दशहरा के दिन लंकाधिपति रावण को जसवंतनगर में पूजे जाने की चर्चा सर्वत्र जोरशोर से होती है। रावण का पुतला यहां रामलीला में फूंका नहीं जाता और रावण के पुतले के निर्माण में लगने वाली बांस की खपच्चे,कपड़ा, कागज आदि चीजें लोग रावण -बध के बाद बीनकर अपने घरों में ले जाते हैं। यहां के लोग ही नही, बल्कि इनके रिश्तेदार भी इन्हें पाने को लालायित रहते हैं।
बहुत सारे अफसर ,जो यहां तैनात रहे है और जिनका ट्रांसफर अन्यत्र हो गया ,वह भी रावण के पुतले की चीजें अपने परिचितों से मगाना नही भूलते। दशहरा को रावण जब युद्ध के लिए निकलता, तो जो दस सिरों वाला पीतल या टीन का मुखौटा वह पहनता है। इस मुखौटे पर लगे उसके 10 चेहरों के भी युद्ध दौरान उखड़कर गिरने पर उन्हे अपने पास सहेजकर रखने को लोग लालायित रहते हैं। इसलिए यहां की रामलीला में रावण तीन मुखौटे हैं।
चेहरों के उखड़कर गिरने से जब रावण का मुखौटा दो चार शीश वाला रह जाता तो रामलीला समिति का लीला मंडल झट पात्र का मुखौटा बदलते हैं।
लोगों में यह अंध विश्वास है कि रावण के पुतले का कोई टुकड़ा या कटे शीश अपने घरों में रखने से बीमारी आफत ,व्याधि,बच्चों को नजर नही लगती। बहुत लोग तो खुद और अपने बच्चों को इन टुकड़ों के हिस्सों को भरवाकर ताबीज बनवाकर भी पहनते हैं।यहां की कोतवाली में 20 वर्ष पूर्व प्रभारी रहे अशोक कुमार सिंह, जो बाद में यहां से जाते ही प्रमोट।होकर वाराणसी में डी एस के रूप में तैनात हुए थे। अब सेवानिवृत हो गए है, वह तो पुतले के टुकड़े या शीश आज भी हर वर्ष जसवंतनगर के अपने परिचितों से मंगवाते हैं।
दशहरे के दिन राम से युद्ध करने नगर की सड़कों से गुजरते रावण की आरती किए जाने की प्रथा यहां के जैन मोहल्ला में 45 वर्ष पूर्व शुरू हुई थी , वह न केवल निरंतर जारी है बल्कि अब कम से कम आधा दर्जन स्थानों पर रावण की जय जयकार के साथ बड़ी परातों में खूब कपूर जलाकर और लंकेश की जय के साथ की जाती है।
अयोध्या संस्थान और संस्कृति विभाग उ.प्र. में डायरेक्टर रहे स्व. डॉक्टर वाई.पी सिंह ने सन 2007 में यहां की रामलीला के रावण, मेघनाद, कुंभकर्ण आदि के तांबे के मुखौटों पर त्रिपुंड लगा देख और इ नके एक शताब्दी से ज्यादा पुराने होने, रावण की आरती उतारे जाने और रावण के पुतले को न फूंके जाने की प्रथाओं आदि को लेकर कहा था कि मध्य भारत में जसवंतनगर की मैदानी रामलीला इकलौती ऐसी रामलीला है,जो दक्षिण भारत शैली से प्रभावित है।इसके संस्थापकों में कोई न कोई जरूर दक्षिण भारतीय रहा होगा। इसकी उन्होंने शोध भी शुरू कराई थी मगर श्री सिंह के कोरोना से मौत के मुंह में चले जाने से अब यह शोध फाइलों में ही दबकर रह गई।
इधर जीवन भर मंचीय रामलीलाओं में रावण का पात्र बनकर देश में खूब में नाम कमाने वाले सुरेंद्र सिंह यादव, जो रावण नाम से भी प्रसिद्ध हैं, ने यहां नगर के स्टेशन रोड पर ‘रावण मार्केट’ बनवाकर रावण का नाम चिरंजीवी किया है,उनके मार्केट की खूब चर्चाएं होती हैं।
रिपोर्ट~वेदव्रत गुप्ता
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