रामलीला मैदान में साधुवेशधारी लंकेश ने किया सीता का अपहरण

*बहन की नाक काटने का लिया बदला*स्वर्णमृग बने मारीच का बध*शबरी के जूठे बेर राम ने खाए

फोटो:सीता हरण करता रावण, खुश होती सूपर्णखा, मारीच का बध करते राम

जसवंतनगर(इटावा)। यहां की 162 वर्ष पुरानी मैदानी रामलीला में शनिवार को मारीचवध, सीता हरण, कबंध वध एवं सुग्रीव मित्रता की लीलायें का आयोजित हुई।

रावण जब मारीच से सीता हरण के छल कपट से अपहरण करने की बात करता और उसे स्वर्ण मृग बन पंचवटी जाने की कहता तो मारीच रावण को बहुत समझाता मगर रावण उल्टा मारीच को कायर व डरपोक बोलकर मारने को दौड़ता है। मारीच कहता कि मेरी मृत्यु ही निकट है तो मैं रावण के हाथों की बजाय भगवान राम के हाथों मरकर अपना उद्धार कराना पसन्द करूंगा। इसके बाद मारीच स्वर्ण मृग बनकर पंचवटी के चारों ओर घूमने लगता है। सीता की दृष्टि इस स्वर्ण मृग पर पड़ती तो वह राम से उसका आखेट कर मृगछाला लाने की कह तीं हैं। बार बार समझाने पर भी सीता नहीं मानती तब लक्ष्मण को पंचवटी में ही रहने का आदेश देकर राम स्वर्णमृग रूपी मारीच के पीछे गहन वन में चले जाते हैं।

उधर रामवाण से घायल मारीच “हे राम, हे लक्ष्मण” चिल्लाता है, तो सीता व्याकुल होकर लक्ष्मण से लक्ष्मण से कहतीं हैं कि शायद तुम्हारे भैया संकट में हैं।

जब लक्ष्मण भ्राता राम के आदेश के कारण सीता को अकेला छोड़कर पंचवटी से नहीं जाते, परन्तु सीता के तीखे वचनों से विवश लक्ष्मण पंचवटी के चारों ओर रेखा खींचकर वन चले जाते हैं।

इसी के तुरंत बाद साधुवेश धारण कर रावण पंचवटी में सीता से भिक्षा लेने आजाता है।

सीता लक्ष्मण रेखा के बाहर नहीं आती है तब साधु रूपी रावण कटु वचन बोलकर पंचवटी से जाने लगता है। साधु अपमान समझ जैसे ही सीता लक्ष्मण रेखा से बाहर आतीं हैं वैसे ही रावण अपने असली रूप में आकर सीता को पुष्पक विमान में जबरन बैठाकर लंका ले जाने के लिए निकल पड़ता है।

रास्ते में उसका जटायु से युद्ध होता है लेकिन वृद्ध जटायु रावण के चंगुल से सीता को नहीं छुड़ा पाता और युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाता है। जब राम लक्ष्मण वन से वापस पंचवटी लौटते हैं तो उन्हें वहां सीता नहीं मिलतीं, वह वन में सीता की खोज में निकलते हैं। उन्हें घायल जटायु बताता है कि एक रोती बिलखती स्त्री को रावण पुष्पक विमान में लेकर लंका की ओर गया है मैंने रोकने की कोशिश की लेकिन मुझे मूर्च्छित कर रावण लंका की ओर चला गया है।राम की गोद मे ही जटायु प्राण त्याग देता है तो राम लक्ष्मण पिता की भांति जटायु का अंतिम संस्कार कर आगे बढ़ते हैं।

तब उन्हें कबंध राक्षस अपनी विशाल भुजाओं में जकड़ लेता है। राम लक्ष्मण उसके दोनों हाथ काट देते हैं। तब कबंध करता है कि मैं तनु नामक गंधर्व हूँ ऋषि स्थूलशिला के श्राप से मेरा सुंदर शरीर व विज्ञान दोनों ही लुप्त हो चुके हैं। आप दोनों मेरे इस शरीर का दाह संस्कार कर देंगे तो मैं अपने वास्तविक रूप में आ जाऊंगा। फिर मेरा दिव्य ज्ञान भी वापस आ जाएगा और मैं तुम्हें रावण की लंका का सही पता और सीता को वापस पाने का उपाय बता सकूंगा। दाह संस्कार के बाद वास्तविक रूप में आने के बाद गंधर्व तनु बताता है कि रावण देवताओं के कोषाध्यक्ष महागंधर्व कुबेर का छोटा भाई है और ऋषि विश्रवा का पुत्र है। ब्रह्मा से वर पाकर वह दिग्विजयी हो चुका है, वह दानवों का राजा है। वही आपकी भार्या को लेकर दक्षिण दिशा में गया है। दक्षिण की ओर जाने पर आपको वानरों के राजा सुग्रीव मिलेंगे उनसे आपकी मित्रता होगी वो सीताजी की खोज करने में आपकी मदद करेंगे। सुग्रीव इस समय ऋष्यमूक पर्वत पर रहते हैं और अंत मे आप रावण पर विजय प्राप्त करेंगे।

कबंध का उद्धार कर आगे बढ़ने पर सदियों से राम प्रतीक्षा रत मतंग के आश्रम में शबरी की कुटिया में पहुंचते हैं। शबरी कहती आज कुटिया पवित्र हो गयी, राम लक्ष्मण को शबरी अपने जूठे बेर खाने को देती , उसके निश्छल प्रेम पर राम बेर खाते हैं। शबरी कुटिया से आगे बढ़ने पर राम लक्ष्मण को पम्पासुर नामक सुंदर सरोवर,उसके दक्षिण तट की ओर ऋष्यमूक ओर माल्याद्रि नाम के दो पर्वत दिखाई देते हैं ।वहीं सुग्रीव अपने चार मंत्रियों सहित मिलते हैं। हनुमान नामक राम का एक परमभक्त , जिसके सहयोग से राम-लक्ष्मण की सुग्रीव से मित्रता होती है। सुग्रीव राम को आभूषण दिखाते हैं ।उन्हें देख राम सजल हो उठते । लक्ष्मण को आभूषण दिखाते हैं तो लक्ष्मण सिर्फ पायल पहचानते हुए कहते हैं कि मैंने भाभी को सदैव मां माना मैंने तो सिर्फ उनके चरणों को ही देखा है। सुग्रीव मित्रता के साथ ही लीला सम्पन्न होती है। साधुवेशी रावण की भूमिका में आज इटावा के विशाल गुप्ता थे।

लीला में प्रबंधक राजीव गुप्ता बबलू, संयोजक अजेंद्र सिंह गौर मंत्री हीरालाल गुप्ता, लीला संचालक रतन पांडे, निखिल गुप्ता, तरुण कुमार मिश्रा के अलावा रामनरेश पप्पू, अनिल गुप्ता अन्नू, पप्पू माथुर, के पी सिंह चौहान, पंडित राम कृष्ण दूबे,पंडित उमेश चौधरी का सहयोग रहा।

रिपोर्ट ~वेदव्रत गुप्ता

 

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