रामलीला में युद्ध के दृश्य शुरू, भगवान राम ने इंद्रपुत्र “जयंत” की आंख फोड़ी

  *युद्धरत राक्षस विराध का हुआ वध

 फोटो :- इंद्र पुत्र जयंत की आंख फोड़ते श्री राम। राक्षस विराध माता सीता को उठाकर ले जाने का प्रयास करता, युद्ध करता विराध
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      जसवन्तनगर(इटावा)यहां की  मैदानी रामलीला में रविवार से युद्ध के दृश्य शुरू हो गए।वनवासी राम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ पंचवटी में बैठे कल अयोध्या से उन्हें मनाने आए भरत और अपनी माताओं की याद में तल्लीन थे और वन में प्रकृति के नजारे देख रहे थे।
     उस समय पंचवटी में ऋतुराज वसन्त का आगमन हो चुका था। पंचवटी चारों ओर से सुगंधित पुष्पों व सुंदर लताओं से सुशोभित थीं।
   देवलोक में इस बात की चर्चा हो रही थी कि कैसे स्वयं नारायण के रूप में अवतरित राम एक साधारण मानव के रूप में  वनवास के कष्टों को झेल रहे हैं।

इंद्र के पुत्र जयंत को जिज्ञासा जागी । उसे  विश्वास ही नहीं होता है कि क्या वो वनवासी राम क्या सचमुच में भगवान विष्णु ही हैं या कोई साधारण मनुष्य?

ऐसा सोचकर  इंद्र पुत्र जयंत भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने की  विचार लाता है। वह एक  कौवे का रूप धारण करके पंचवटी पहुंचकर माता जानकी के पैर में चौंच मारकर उड़ जाता है। ज्यों ही राम अपनी अर्धांगिनी सीता के पैर से रक्त बहते देखते हैं ,तो विचलित  होकर एक सरकंडे को कौवा रूपी जयंत की ओर उछलते हैं, जो कि ब्रह्मवाण में परिवर्तित होकर जयंत के पीछे पड़ जाता है।जयंत अपने प्राणों की रक्षा हेतु देवलोक भागता है और सभी देवताओं  को पूरा वृतांत बताता अपने प्राणों की भीख मांगता है।  देवताओं से निराश होने के बाद वह नारद मुनि के पास पहुंचता है। अपनी प्राणरक्षा का उपाय पूछता है तब नारद मुनि कहते हैं कि तुम्हारी रक्षा अब स्वयं माता सीता ही कर सकतीं हैं।

जयंत अपने वास्तविक स्वरूप में वापस पंचवटी पहुंचकर माता सीता के चरणों में गिरकर  अपने जीवन की भीख मांगने लगता है। माता सीता जयंत को मांफ कर देतीं हैं और प्रभु श्रीराम से ब्रह्मवाण वापस लेने के लिए कहतीं हैं। तब भगवान श्रीराम कहते हैं कि मैंने ब्रह्मवाण को जयंत को दंड देने का आदेश दिया है तो यह बिना दंड दिए तो वापस नहीं हो सकता, इसलिए जयंत को अंगभंग का दंड अवश्य ही मिलेगा।दंड स्वरूप श्रीराम जयंत की एक आंख फोड़ देते है ।

इंद्र पुत्र जयंत जो कि उस समय कौवे के स्वरूप में था ,वह एक आंख फूट जाने के बाद काना हो गया ,जो कि आज तक काना ही है।

इसके बाद की लीला में बिराध राक्षस वन में घूमता हुआ पंचवटी में आ जाता है । ऋषि भेष रूपी भगवान श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण को देखकर कहता है कि मैं विराध राक्षस हूँ और मैं वन में आने वाले ऋषियों और तपस्वियों को अपना भोजन बनाता हूँ। आज मैं तुम दोनों को खाकर मैं अपने पेट की भूख शांत करूंगा और माता सीता की ओर इशारा करते हुए कहता है कि तुम दोनों को खाने के बाद इस सुंदर स्त्री को अपनी भार्या(पत्नी) बनाऊंगा। जैसे ही बिराध माता सीता की ओर हाथ बढ़ाता है, तो लक्ष्मण  तुरंत  ही उसके दोनों हाथ काट देते हैं और प्रभु श्रीराम के हाथों बिराध राक्षस का वध होता है।

     रविवार से रामलीला मैदान में  बैंड से युद्धक ध्वनि गूंजनी शुरू हो गई। दर्शकों के रोंगटे खड़े होने लग गए। राम और लक्ष्मण के  कंधों पर पड़े रहने वाले पटके युद्ध रत दृश्य के तहत कमर पर  बांधे जाने लगे। लीला समिति की दशासन छावनी में भी हल चल शुरू हो गई।  विवेक (रतन) पांडे, निखिल गुप्ता, प्रभाकर दुबे आदि व्यवस्था में तल्लीन हो गए, क्योंकि अब आगे के हर दिन की लीला युद्ध से ओतप्रोत होने वाली है।
       रामलीला समिति के प्रबंधक राजीव गुप्ता बबलू, संयोजक/उपप्रबंधक एवं विधायक प्रतिनिधि अजेंद्र सिंह गौर ने बताया कि सोमवार को रामलीला महोत्सव की प्रमुख लीला “सुपर्णखा” की नाक काटे जाने की लीला आयोजित होगी। रामलीला समिति कार्यकारी अध्यक्ष हीरालाल गुप्ता ,व्यवस्थापकों में  शुमार अनिल गुप्ता अन्नू, राजेंद्र गुप्ता एडवोकेट, राजीव माथुर, रामनरेश पप्पू,भोलू मिश्रा, शुभ गुप्ता, प्रभाकर दुवे आदि भी उपस्थित रहे।
      सोमवार की लीला में सूर्पणखा के नाक-कान कटना, खर-दूषण वध एवं रावण-मारीच वार्ता की लीला का आयोजन किया जाएगा।
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 ∆वेदव्रत गुप्ता

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