रामलीला में युद्ध के दृश्य शुरू, भगवान राम ने इंद्रपुत्र “जयंत” की आंख फोड़ी
*युद्धरत राक्षस विराध का हुआ वध
इंद्र के पुत्र जयंत को जिज्ञासा जागी । उसे विश्वास ही नहीं होता है कि क्या वो वनवासी राम क्या सचमुच में भगवान विष्णु ही हैं या कोई साधारण मनुष्य?
ऐसा सोचकर इंद्र पुत्र जयंत भगवान श्रीराम की परीक्षा लेने की विचार लाता है। वह एक कौवे का रूप धारण करके पंचवटी पहुंचकर माता जानकी के पैर में चौंच मारकर उड़ जाता है। ज्यों ही राम अपनी अर्धांगिनी सीता के पैर से रक्त बहते देखते हैं ,तो विचलित होकर एक सरकंडे को कौवा रूपी जयंत की ओर उछलते हैं, जो कि ब्रह्मवाण में परिवर्तित होकर जयंत के पीछे पड़ जाता है।जयंत अपने प्राणों की रक्षा हेतु देवलोक भागता है और सभी देवताओं को पूरा वृतांत बताता अपने प्राणों की भीख मांगता है। देवताओं से निराश होने के बाद वह नारद मुनि के पास पहुंचता है। अपनी प्राणरक्षा का उपाय पूछता है तब नारद मुनि कहते हैं कि तुम्हारी रक्षा अब स्वयं माता सीता ही कर सकतीं हैं।
जयंत अपने वास्तविक स्वरूप में वापस पंचवटी पहुंचकर माता सीता के चरणों में गिरकर अपने जीवन की भीख मांगने लगता है। माता सीता जयंत को मांफ कर देतीं हैं और प्रभु श्रीराम से ब्रह्मवाण वापस लेने के लिए कहतीं हैं। तब भगवान श्रीराम कहते हैं कि मैंने ब्रह्मवाण को जयंत को दंड देने का आदेश दिया है तो यह बिना दंड दिए तो वापस नहीं हो सकता, इसलिए जयंत को अंगभंग का दंड अवश्य ही मिलेगा।दंड स्वरूप श्रीराम जयंत की एक आंख फोड़ देते है ।
इंद्र पुत्र जयंत जो कि उस समय कौवे के स्वरूप में था ,वह एक आंख फूट जाने के बाद काना हो गया ,जो कि आज तक काना ही है।
इसके बाद की लीला में बिराध राक्षस वन में घूमता हुआ पंचवटी में आ जाता है । ऋषि भेष रूपी भगवान श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण को देखकर कहता है कि मैं विराध राक्षस हूँ और मैं वन में आने वाले ऋषियों और तपस्वियों को अपना भोजन बनाता हूँ। आज मैं तुम दोनों को खाकर मैं अपने पेट की भूख शांत करूंगा और माता सीता की ओर इशारा करते हुए कहता है कि तुम दोनों को खाने के बाद इस सुंदर स्त्री को अपनी भार्या(पत्नी) बनाऊंगा। जैसे ही बिराध माता सीता की ओर हाथ बढ़ाता है, तो लक्ष्मण तुरंत ही उसके दोनों हाथ काट देते हैं और प्रभु श्रीराम के हाथों बिराध राक्षस का वध होता है।