*वीरगति दिवस विशेष*
माधव संदेश संवाददाता
*नायक जदुनाथ सिंह (परम वीर चक्र, मरणोपरान्त)*
हमारा देश भारत सैकड़ों साल की परतंत्रता के बाद 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ, लेकिन यह स्वतंत्रता अपने साथ विभाजन की भीषण विभीषिका लेकर आयी और दो राष्ट्र बने – भारत और पाकिस्तान। पाकिस्तान के हुक्मरान इस स्वतंत्रता को पाकर भी खुश नहीं थे वह प्रतिदिन खयाली पुलाव पकाते रहते थे। इसी खयाली पुलाव का परिणाम था की उन्होंने अक्टूबर 1947 में अपनी सेना को घुसपैठियों के भेष में हमारे देश में अघोषित युद्ध के लिए भेज दिया।
इस युध्द में नायक जदुनाथ सिंह की यूनिट को नौशेरा के उत्तर में स्थित तेनधार के इलाके की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गयी थी । नायक जदुनाथ सिंह तेनधार की दो नम्बर पिकेट पर एक अग्रिम चौकी की कमान संभाल रहे थे। । 6 फरवरी 1948 को 6:40 बजे पाकिस्तानी सैनिकों ने इनकी टुकड़ी पर धावा बोल दिया। इनकी उस चौकी पर मात्र 27 भारतीय जवान थे। इनकी टुकड़ी ने पाकिस्तानी सैनिकों का जोरदार मुकाबला किया। इन्होंने अपनी टुकड़ी का बेहतरीन नेतृत्व किया। पाकिस्तानी सैनिक उस समय घातक हमला होते देख भाग खडे हुऐ। इस हमले में इनकी टुकड़ी के चार जवान घायल हो गये।
नायक जदुनाथ सिंह ने धैर्य से काम लिया और अपने सैनिकों का मनोबल बढाते रहे। इन्हें यह अनुमान था कि पाकिस्तानी सैनिक दुबारा हमला जरूर करेंगे। इनकी आशंका सही साबित हुई। पाकिस्तानी सैनिकों ने इनकी चौकी पर दुबारा हमला कर दिया। यह हमला काफी घातक था। इस हमले में इनके सभी साथी घायल हो गये। इनका दांया हाथ जख्मी हो गया। किन्तु नायक जदुनाथ सिंह ने हार नहीं मानी और अपने घायल गनर की ब्रेन गन लेकर दुश्मन पर टूट पड़े । इनके साहस को देखकर पाकिस्तानी सैनिक उल्टे पांव भाग खड़े हुए।
चौकी पर हुए दो आक्रमण में इनके ज्यादातर सैनिक घायल हो गये थे लेकिन नायक जदुनाथ सिंह अपने साहस और वीरता के बल पर बचे हुए साथियों के साथ डटे रहे । इसी बीच पाकिस्तानी सेना ने इनके ऊपर तीसरा हमला बोल दिया । नायक जदुनाथ सिंह और उनके जवानों ने तीसरे आक्रमण का जोरदार मुकाबला किया। इस हमले में चौकी पर तैनात 27 जवानो में से 24 जवान या तो बीरगति प्राप्त कर चुके थे या बुरी तरह घायल हो गये थे। फिर भी यह अपनी चौकी पर डटे रहे। सिर तथा छाती पर दो गोलियां लगने के कारण भारत माता का यह बीर सपूत लड़ते लड़ते चिर निद्रा में लीन हो गया। इनकी बीरता, अपूर्व साहस और नेतृत्व क्षमता को देखते भारत सरकार द्वारा इन्हें मरणोपरान्त देश के सबसे बड़े वीरता सम्मान “परमवीर चक्र” से सम्मानित किया गया।
नायक जदुनाथ सिंह के सम्मान में उनके पैतृक गांव खजुरी में और जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास कार्यालय शाहजहांपुर में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है तथा उनकी याद में हथौड़ा बुर्जग में एक स्टेडियम का निर्माण भी कराया गया है। उनकी वीरता और बलिदान की याद में प्रत्येक वर्ष 6 फरवरी को नौशेरा सेक्टर में एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
नायक जदुनाथ सिंह का जन्म 21 नवम्बर 1916 को उत्तर प्रदेश के शाहजहॉंपुर के गॉंव खजुरी में हुआ था। इनके पिता का नाम बीरबल सिंह राठौर तथा माता का नाम यमुना कंवर था। वह छह भाइयों और एक बहन के साथ आठ बच्चों के परिवार में तीसरे थे। प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के पश्चात वह 21 नवम्बर 1941 को ब्रिटिश भारतीय सेना की राजपूत रेजिमेंट में भर्ती हो गये। प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात उन्हें 1 राजपूत रेजिमेंट में तैनात किया गया।