कंपनी हवलदार मेजर यशवीर सिंह, वीर चक्र, (मरणोपरान्त)

जयंती विशेष (04 जनवरी)

माधव संदेश संवाददाता

उत्तर प्रदेश के जनपद मेरठ की धरती जिसके कण कण में आत्मसम्मान की भावना और पानी की बूंद बूंद में देशभक्ति भरी हुई है उसी मेरठ की धरती पर कंपनी हवलदार मेजर यशवीर सिंह का जन्म 04 जनवरी 1960 को जनपद मेरठ के गांव सिरसली में श्रीमती तारावती तथा श्री गिरवर सिंह के यहाँ हुआ था। यह उसी मेरठ की धरती है जिसकी मिट्टी में 1857 की क्रांति की चिंगारी फूटी और ज्वाला बन गई तथा बाद में देश की आज़ादी की आंधी में परिवर्तित हुई। इसी मेरठ की 1857 क्रांति की ज्वाला ने अंग्रेंजों के साम्राज्य को जला कर राख कर दिया। यदि हम मेरठ की भूमि को क्रांति धरा कहें तो अतिशयोक्ति न होगी।कंपनी हवलदार मेजर यशवीर सिंह ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गाँव से और उच्च शिक्षा शाहमल इंटर कालेज से पूरी की और 29 जून 1979 को भारतीय सेना की राजपूताना राइफल्स में भर्ती हो गये । राजपूताना राइफल्स सेंटर में प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात 2 राजपूताना राइफल्स में पदस्थ हुए।सन 1999 के ऑपरेशन विजय के दौरान 2 राजपूताना राइफल्स को द्रास सेक्टर में तैनात किया गया था । इसी 2 राजपूताना राइफल्स की चार्ली कंपनी तोलोलिंग टॉप पर देश के दुश्मनो को खदेड़ने के लिए जी जान से आक्रमण कर रही थी । इन हमलों के दौरान 2 राजपूताना राइफल्स के कई अधिकारी और जवान घायल हो चुके थे । दोनों तरफ से हो रही भीषण लड़ाई में कंपनी पहले ही प्लाटून कमांडर और कंपनी कमांडर को खो चुकी थी लेकिन 2 राजपूताना राइफल्स की चार्ली कंपनी के जोश के आगे पाकिस्तानी सैनिकों की एक न चली। तोलोलिंग टॉप पर मौजूद लगभग सभी पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सेना के हांथों मारे जा चुके थे और तोलोलिंग टॉप पर 2 राजपूताना राइफल्स की चार्ली कंपनी ने पुनः कब्जा जमा लिया था । कंपनी हवलदार मेजर यशवीर सिंह को तोलोलिंग टॉप पर कंपनी के हमले के दौरान हताहतों की निकासी का काम सौंपा गया था।तोलोलिंग टॉप पर कंपनी के बचे हुए सैनिकों को दुश्मन द्वारा घेरे जाने का खतरा था। 12-13 जून 1999 को तोलोलिंग टॉप पर अपने सैनिकों की गंभीर स्थिति और उनके लक्ष्य की सफलता में छिपे हुए खतरे को देखते हुए कंपनी हवलदार मेजर यशवीर सिंह ने अपनी कंपनी के बचे हुए सैनिकों को इकट्ठा किया और तोलोलिंग टॉप पर पहुंचे। टॉप पर पहुंचने के बाद उन्होंने ओने सैनिकों को तुरंत एक सेक्शन के रूप में संगठित किया और उसकी कमान संभाल ली। कंपनी हवलदार मेजर यशवीर सिंह ने देखा कि तोलोलिंग टॉप पर दुश्मन का एक बंकर बचा हुआ था जो कि चार्ली कंपनी के लिए खतरा था, इसलिए उन्होंने सभी जवानों के पास बचे हुए ग्रेनेड को एकत्रित किया और दुश्मन के बंकर की ओर दौड़ पड़े। आगे बढ़ते हुए उन्होंने पाकिस्तानी सेना के बंकर में ग्रेनेड फेंकने शुरू कर दिए। उनके इस साहसिक निर्णय को देखकर दुश्मन आवाक रह गया। इस दौरान बंकर में मौजूद दुश्मन ने उन पर भीषण फायरिंग करना शुरु कर दिया । कंपनी हवलदार मेजर यशवीर सिंह द्वारा उस बंकर में कुल 18 ग्रेनेड फेंकने के बाद वह बंकर पूर्ण रूप से ध्वस्त हो गया।इस वीरतापूर्ण कार्य में कंपनी हवलदार मेजर यशवीर सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए और अत्यधिक रक्त बहने के कारण वह सदा सदा के लिए चिर निद्रा में लीन हो गए । उनके इस साहसिक निर्णय और दुश्मन पर इस आखिरी निर्णायक प्रहार के कारण ही तोलोलिंग टॉप पर तिरंगा लहराया। कंपनी हवलदार मेजर यशवीर सिंह ने युद्ध में दुश्मन के सामने अनुकरणीय साहस और वीरता का प्रदर्शन किया और राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। 15 अगस्त 1999 को उनके साहस और वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत देश के तीसरे सबसे बड़े वीरता सम्मान वीर चक्र से सम्मानित किया गया। इस सम्मान को उनकी वीरांगना श्रीमती मुनेश देवी ने ग्रहण किया।कंपनी हवलदार मेजर यशवीर सिंह की स्मृति में उनके गांव सिरसली में एक स्मृति द्वार का निर्माण करवाया गया है जहाँ पर उनकी प्रतिमा लगाई गई है तथा इनके नाम पर एन एच 58 पर सरकार द्वारा आवंटित पेट्रोल पम्प का भी नामकरण किया गया है। कंपनी हवलदार मेजर यशवीर सिंह कबड्डी के नेशनल प्लेयर भी रहे हैं। इनके परिवार में इनकी पत्नी श्रीमती मुनेश देवी और दो पुत्र उदय पंकज तथा इनके बच्चे हैं।

-हरी राम यादव
7087815074

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