पार्श्वनाथ मंदिर में जलधारा  आयोजित,’क्षमावाणी’पर्व पर एक दूसरे को”क्षमा”

* गले लगा और बड़ों के पैर छूकर मांगी क्षमा 

फोटो – पार्श्वनाथ भगवान को जलधारा तथा क्षमा वाणी पर्व पर एक दूसरे से क्षमा
जसवंतनगर(इटावा) नगर के  जैन मंदिरों में  दशलक्षण महापर्व के समापन पर शनिवार को जलधारा महोत्सव के साथ-साथ क्षमावाणी पर्व  मनाया गया। प्राचीन जैन मंदिर श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर, जैन मोहल्ला में प्रातः से ही श्रद्धालुओं द्वारा दैनिक पूजन, अभिषेक,शांति धारा आदि विशेष पूजा अर्चनाएं की गईं। 
 दोपहर में जलधारा आयोजित हुई, जिसमें पीत बस्त्रधारी इन्द्रो ने 5 प्रकार की धारा जिनेन्द्र भगवान के समक्ष डाली। इस दौरान पूरा प्रांगण भगवान की जय – जयकारो व जय घोष से गूंज उठा।
प्रत्येक विषय पर अपनी ज्ञानवर्धक सोच रखने वाले जैन युवा और समाज के मीडिया प्रभारी आराध्य जैन ने क्षमावाणी पर्व के विषय में वार्ता करते  कहा कि मानव जीवन में परस्पर गलतियां होना और गलतियां करना मनुष्य के स्वभाव का हिस्सा है। 
मगर क्षमा मांगने या किसी को माफ करने  से कभी भी सम्मान घटता नहीं है। सामने वाले को क्षमा करने वाला सदैव ही महान कहलाता है।अहंकार, क्रोध, झूठ आदि के द्वारा यदि मन को परेशानी होती है, तो उस परेशानी को दूर करने का नाम क्षमा वाणी पर्व है।
   इस पर्व पर अपनी आत्मिक  शुद्धि के लिए सबसे अपने भूलों की क्षमा याचना की जाती है। यहां माफी मांगने का मतलब यह नहीं कि आप गलत हैं और दूसरा सही।
    गुरु सेवक आशीष जैन ने कहा कि जीवन में हम अनेक व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं और हमें बहुत से रिश्ते निभाने पड़ते हैं।  हम सबको खुश नहीं रख पाते हैं। ऐसे में इस पावन पर्व पर क्षमा याचना के माध्यम से आत्मशुद्धि और मन का मैल दूर करने का बड़ा अवसर प्राप्त होता है।
 मुमुक्षु अभिषेक जैन कहते हैं कि जैन धर्म के इस पावन पर्व पर क्षमा केवल व्यक्ति से ही नहीं बल्कि संसार के सभी जीव-जंतुओं से मांगी जाती है। साथ ही प्रकृति से भी क्षमा याचना की जाती है कि अनजाने में प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक प्रयोग या दुरुपयोग किया हो तो उसके लिए वह हमें क्षमा करे।
स्वाध्यायी लता जैन और लुधपुरा की जैन धर्मश्वी अंजली जैन कहती हैं कि जैन पुराणो के अनुसार दशलक्षण पर्व के अंतिम दिन क्षमावाणी दिवस पर सभी एक-दूसरे से उत्तम क्षमा कहकर क्षमा मांगते हैं। क्षमावाणी, अहिंसा और मैत्री का पर्व है। क्षमा से हृदय में शांति और मैत्री भाव उत्पन्न होता है। मन की शुद्धि से व्यक्ति का भय दूर हो जाता है।
युवा गुरु भक्त मोहित जैन ने बताया कि जीवन में गलती को स्वीकार करना सबसे मुश्किल काम होता है। ऐसा करने में अक्सर व्यक्ति का अहम आड़े आता है, लेकिन जब इसके लिए कोई खास दिन होता है तो पूरा वातावरण क्षमा मांगने और क्षमा करने के लिए अनुकूल हो जाता है।
समाजसेवी शिवकांत जैन ने बताया कि दसलक्षण पर्व के दिनों में किया गया त्याग और उपासना हमें जीवन की सच्ची राह दिखाते है। जैन धर्म में ‘क्षमा’ भाव को वीरों का आभूषण कहा गया है। क्षमा भाव धर्म का आधार है और यह सभी के लिए हितकारी होता है। क्रोध- कषाय सदा सभी के लिए अहितकारी माना गया है।
युवा साधर्मी निकेतन जैन ने कहा हमें चाहे छोटा हो या बड़ा क्षमा पर्व पर सभी से दिल से क्षमा मांगी जानी चाहिए। क्षमा कभी भी सिर्फ उससे नहीं मांगी जानी चाहिए, जो वास्तव में हमारा दुश्मन है। बल्कि हमें हर छोटे-बड़े जीवों से क्षमा मांगनी चाहिए।
 सेंट पीटर्स स्कूल की शिक्षिका अनीता जैन ने कहा कि हमें तन, मन और वचन से चोरी, हिंसा, व्याभिचार, ईर्ष्या, क्रोध, मान, छल, गाली, निंदा और झूठ इन दस दोषों से दूर रहना चाहिए । यही इस पर्व की सीख हैं। दसलक्षण पर्व के दिनों में किया गया त्याग और उपासना हमें मोक्ष के मार्ग पर ले जाती है।
कार्यक्रमों के पश्चात संध्या में आरती भक्ति एवं क्षमावाणी पर्व पर कुछ और विशेष वक्ताओं ने अपने विचार रखें एवं पुरस्कार वितरण कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम को सफल बनाने में सकल दि. जैन समाज एवं  जैन  महिला मंडल तथा लुधपुरा दिगंबर मंदिर जसवंतनगर  में आयोजित शनिवार के समस्त कार्यक्रमों  सकल जैन साधार्मियों का बढ़चढ़कर  पूर्ण सहयोग रहा।
फोटो – पार्श्वनाथ भगवान को जलधारा तथा क्षमा वाणी पर्व पर एक दूसरे से क्षमा
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