गौरी पुत्र “गजानन” की विसर्जन यात्राओं में जमकर उड़ा रंग-गुलाल

 फोटो:- अपने-अपने गणपति को विसर्जित करने ले जाते लोग
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  जसवंतनगर(इटावा)। गणपति स्थापना के अंतिम दिन अनंत चतुर्दशी पर गुरुवार को गौरी पुत्र गणेश की विदाई बड़े पैमाने पर क्षेत्र भर में हुई।

     अपने घर विराजे सिद्ध विनायक को विदा करते हुए लोगों की आंखें नम थी। बैंड बाजो ,ढोल ताशों और  रंग गुलाल बरसाते लोगों ने “गणपति बप्पा मोरिया अगले बरस तू जल्दी आ’ के नारों के साथ अपने-अपने  गौरी पुत्र की विदाई शुरू की।एक एक और दो किलोमीटर यात्रा कर लंबे जुलूस  के साथ भोगनीपुर नहर पुल के सिरहौल घाट पर पहुंचे और नम आंखों से उनका जल प्रवाहन किया।
 प्रशासन द्वारा बारह वफात के कारण गणेश विसर्जन का समय  दोपहर 2:00 बजे के बाद गुरुवार के लिए निश्चित किया गया था ,इसलिए गणेश विसर्जन यात्राएं यहां नगर में दोपहर बाद ही शुरू हो सकी।  यह शाम होने  और सूर्य अस्त तक  जारी रही। नहर पुल पर प्रशासन ने सख्त इंतजाम किए थे।  भारी फोर्स लगाया  गया था। प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस अधिकारी बड़ी संख्या में तैनात थे ,ताकि कोई अप्रिय घटना न घट सके। मूर्तियों के विसर्जन के लिए सिरहौल और आसपास गांव के  कई तैराक नहर पुल पर मौजूद थे, जो श्रद्धालुओं की मूर्तियों को अपने हाथों में लेकर जल विसर्जन कर  रहे  थे। 
   देर शाम तक कितनी मूर्तियां विसर्जित हुई?.. यह उप जिला अधिकारी कौशल कुमार वहां स्वयं मौजूद होने के बावजूद  खुद बताने को तैयार नहीं थे, बल्कि उन्होंने कहा कि रजिस्टर में दर्ज की जा रही है। उसी रजिस्टर से ही पता चल सकेगा कि कुल कितनी मूर्तियां विसर्जित हुई है। 
   रेल मंडी के राजा गणपति की विदाई में भारी भीड़ आई थी। विजय कुमार यादव ने बताया कि राजा की विदाई में रेल मंडी का हर शख्स श्रद्धा के साथ शामिल हुआ। नगर और क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों से बड़ी संख्या में गणेश मूर्तियां विसर्जित की गई ।भोगनीपुर नहर के अलावा कुछ वक्त अपनी मूर्तियों को लेकर कचौरा घाट यमुना पर भी पहुंचे और यमुना जल में मूर्तियों की विदाई की। बताया गया है कि भोगनीपुर नहर पुल पर 50 के आसपास देर शाम 6 बजे तक  मूर्तियां विसर्जित की गई थी, जो प्रशासन के रजिस्टर में दर्ज हुई। वहां पिछले 7- 8 दिनों मे कुल मिलाकर डेढ़ सौ से ज्यादा  मूर्तियों का विसर्जन किया गया। इस बार बहुत से लोगों ने नहर और यमुना पर विसर्जन करने की वजह है अपने घरों में कुंड बनाकर मूर्तियों का विसर्जन किया गया।
*वेदव्रत गुप्ता
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