आत्मादि की शुद्धि और सख्त नियमों के पालन का पर्व  है,”दशलक्षण पर्व” 

*जैन मंदिरों में हुई विशेष तैयारियां *धूप दशमी और क्षमा वाणी पर्व भी आयोजित होते

फोटो:- दसलक्षण पर्व के लिए जैन मंदिर में चल रही तैयारी और इंसेंट में आराध्य जैन
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जसवन्तनगर(इटावा) ।मंगलवार से शुरू  हो रहे दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व  के  लिए नगर के पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर जैन मोहल्ला और दिगंबर जैन मंदिर  लुधपुरा में तैयारियां पूरी कर ली गईं है। जैन समाज के सबसे महत्वपूर्ण पर्व पर मंदिरों में अधिक से अधिक जैन जैन अनुयाई  पूजन अर्चन, अभिषेक आदि के लिए 10 दिन तक पहुंचेंगे। दशलक्षण पर्व के दौरान सख्त  नियमों का पालन करना पड़ता है।
दशलक्षण पर्व का जैन धर्म में  सर्वाधिक महत्व है, इसे  श्वेतांबर जैन अनुयाई पर्यूषण पर्व भी कहते हैं।
      जसवंत नगर जैन समाज के मीडिया प्रभारी आराध्य जैन ने बताया है कि ईश्वर की आराधना कभी और कहीं भी की जा सकती है। दशलक्षन पर्व में आराधना की सहज प्रेरणा मिलती है,वह अद्भुत है। ज्ञानी और चरित्रवान होना ही पर्याप्त नहीं। जिस मनुष्य की दृष्टि संपन्न न हो, वह न तो सच्चा ज्ञानी हो सकता है और न सच्चा चरित्रवान। इसलिए ज्ञान, दर्शन और चरित्र- इन तीनों की समन्वित आराधना ही हमें पूर्ण धार्मिक बनाती है। 
   इन तीनों विधि से आत्म-स्वरूप की प्रतीति-पूर्वक चरित्र (धर्म) के दस लक्षणों- उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन और ब्रह्मचर्य की आराधना करना ही दशलक्षण पर्व है।
धर्म के दशलक्षण  संप्रदायवाद, जातिवाद से कोसों दूर और आत्म-कल्याण चाहने वाले सभी लोगों के लिए ग्राह्य हैं। इनको जीवन में उतारने से मानव का विश्वबंधुत्व भरा स्वरूप निखरता  है। मनुष्य यदि धर्मक्षेत्र की सीमाओं  से परे होकर इन दशलक्षणों का पालन करे, तो  दुनिय कुरीतियों, विकृतियों  आदि से अवश्य मुक्त होगी।
आराध्य ने बताया कि 
भगवान महावीर  के अनुयाई  लोग इस दौरान कठिन व्रत रखते हैं और ज्यादा से ज्यादा समय 24 तीर्थंकरों (भगवान) की पूजा-आराधना में लगाते हैं। कुछ तो केवल पानी या दूध लेकर 10 दिन उपवास करते हैं। वहीं कुछ लोग दिन में एक बार भोजन करके दसलक्षण पर्व के व्रत करते हैं.। इस दौरान बेहद शुद्ध और सात्विक भोजन ही लिया जाता है।इस व्रत में जमीन में अंदर पैदा होने वाली चीजें और बाहर के खाद्य पदार्थ नहीं लिए जाते हैं। 
इन दिनों का खास महत्व यह है कि
जैन धर्म के अनुसार पर्युषण या दसलक्षण पर्व आत्माद की शुद्धि का पर्व होता है,ताकि व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा सके। इसलिए इन 10 दिनों में व्रत करने के साथ-साथ दस नियमों का पालन भी किया जाता है। दसलक्षण पर्व का हर दिन क्रमश: उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य्, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम अकिंचन एवं उत्तम ब्रह्मचर्य को समर्पित है,ताकि इन सभी को अपनाकर व्यक्ति क्रोध, लालच, मोह-माया, ईर्ष्या, असंयम आदि विकारों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर चल सके।
10 लक्षण पर्व के दौरान धूप दशमी पर्व तथा पर्व के समापन के एक दिन बाद क्षमावाणी पर्व मनाए जाते हैं।
*वेदव्रत गुप्ता
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