*सत्ता, सुन लो सैनिक की बातें*
*सत्ता, सुन लो सैनिक की बातें*
जिस देश के सैनिक हों सड़कों पर,
और सत्ता न सुन रही हो उनकी बात।
उनके सम्मान की बातें मुंह से करना,
यह है जैसे दिन को कहना रात ।
त्यौहारों के मौकों पर मिलना,
खाना और खिलाना मिठाई।
यह पलझाने की हैं सब बातें,
यह ही है यारों कडुई सच्चाई ।
जिन जे सी ओ और जवानों ने दी,
देश को अपनी सम्पूर्ण जवानी।
ओ आर ओ पी में उन्हीं के संग,
सत्ता ने कर ली सह पर बेईमानी ।
जो लड़ते आगे सीमा पर सैनिक,
उनको मिला न इसका कोई लाभ।
उल्टे घट गयी उनकी पेंशन,
जिनका सेना में था कभी रुआब।
वीर नारियों की पीड़ा न समझा,
उनमें भी कर डाला भारी अंतर।
एक को इतना ज्यादा दे डाला,
दूसरे का हिस्सा कर डाला छू मंतर।
हिम अंचल में चला सैनिकों का जादू,
सारा का सारा मैजिक ध्वस्त हुआ।
जिसे समझते थे तुम अभेद्य किला,
वह किला भी तुम्हारा पस्त हुआ।
सत्ता, सुन लो सैनिक की बातें,
नहीं तो समय गये पछताओगे।
दो हजार चौबीस में खुद को,
चिराग ले, नहीं ढूंढ़ने से पाओगे।
सैनिक शक्ति को कम आंकने की,
न कर बैठना तुम भारी भूल ।
ऐ वही धीर वीर मत वाले हैं,
जिन्होंने हिलायी दुश्मन की चूल।
सैनिक कभी न बूढ़ा होता,
वह रहता जीवन भर जवान।
सदा श्रेष्ठ समाज में रहता,
दुनिया करती उसका जय गान।
जब आती विपदा देश पर,
तुम देखते पूर्व सैनिकों की ओर।
आज जब वह हक मांग रहे,
तब तुम बन रहो हो मुंह चोर।।
– हरी राम यादव