भोजेश्वरी देवी पर झंडे और घंटे चढ़ाने दूर-दूर से आते हैं ,श्रद्धालु
*जसवंतनगर के नगला भीखन में है, ये देवी मंदिर *कई फुट ऊंची है, देवी प्रतिमा *स्वप्न देखने पर खंडहर में मिली थी देवी
फोटो:- नगला भीखन में स्थित देवी भोजेश्वरी का मंदिर, इनसेट में देवी प्रतिमा
जसवंतनगर(इटावा),27 मार्च। (वेदव्रत गुप्ता)।यहां इलाके में कई सुप्रसिद्ध देवी मंदिर हैं,जिनमें शक्तिपीठ के रूप में ब्रह्माणी देवी मंदिर का सर्वोच्च स्थान है ,साथ ही धरवार गांव में स्थित देवी मैया मंदिर और जसवंतनगर कस्बे की केला त्रिगमा देवी के प्रति भी लोगों की अटूट आस्था है। क्योंकि यह मंदिर काफी पुराने हैं।
इनके अलावा जसवंतनगर मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम भतौरा के मजरा नगला भीखन में एक शताब्दी से अधिक।प्राचीन मां भोजेश्वरी उर्फ भुजंग देवी का मंदिर लोगों में अनेकानेक मान्यताओं के चलते क्षेत्र भर में बहुत ही प्रसिद्ध और लोगों की आस्था का केंद्र है।
भोजेश्वरी देवी के मंदिर में स्थापित आठ फीट लंबी देवी की प्राचीन प्रतिमा अपने आप में विहंगम है। इस तरह की देवी प्रतिमा अयंत्र कम ही दर्शन को उपलब्ध है।
आसपास के लोगों में मान्यता है कि वह यहां भोजेश्वरी देवी के दर्शन बगैर कोई भी शुभ काम या धार्मिक पर्व व त्यौहार नहीं मनाते। शुभ कार्यों की शुरूआत भी यहां पूजा करके करते हैं।
इन दिनों यहां चैत्र नवरात्रि के मौके पर आसपास इलाकों के ग्रामीण श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां जुट रहे हैं। पूजा अर्चना कर घंटे, झंडे और जवारे चढ़ा रहे है।साथ ही वह देवी दर्शनों के बाद मन्नते मांग रहे हैं। इस लिए यहां का वातावरण भक्तमय है। बताया गया है कि चैत्र मास की नवरात्रि के 9 दिनों इस मंदिर पर जो भी श्रद्धालु जवारे व झंडा चढ़ा कर पूजा-अर्चना व आरती वंदना करते हैं ,उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
मंदिर में अद्भुत नक्काशी से बनी देवी भोजेश्वरी की विशाल प्रतिमा के साथ-साथ, अन्य देवी-देवताओं की छोटी-छोटी और भी प्रतिमाएं है। शताब्दी पुरानी परंपरा के तहत वहां नवरात्रियों में वृहद मेले का आयोजन किया जाता है।
इस मंदिर तक जिले से गुजरने वाले हाइवे के जरिए, इटावा-जसवंत नगर के मध्य स्थित ग्राम मलाजनी गांव के चौराहा से दक्षिण दिशा में 1 किलोमीटर चलकर पहुंचा जा सकता है।
बताते हैं की भोजेश्वरी देवी मंदिर के आसपास की खुदाई में पाषाण काल की बड़े आकार की इंटे निकलती हैं। जिससे बने घरों को देखने से प्रतीत होता है कि यहां किसी जमाने में कोई बड़े गांव या नगर का अस्तित्व रहा होगा।
भतौरा गांव के निवासी प्रदीप बबलू शाक्य ने बताया है कि अट्ठारहवीं शताब्दी में भतौरा, मलाजनी स्टेट के करीब का गांव था, जिसके राजा लक्ष्मी नारायण प्रताप सिंह हुआ करते थे। राजा को सपने में यहां कटीली झाड़ियों के बीच खंडहर में माता भुजंग देवी की प्रतिमा दबी होना दिखाई दी थी। बाद में राजा ने ग्रामीणों की मदद से उन झाड़ियों को कटवा कर उस खंडहर की खुदाई कराई,तो वहां देवी माता भुजंग की प्रतिमा निकली। प्रतिमा को वही एक मंदिर बनवा कर उन्होंने स्थापित करा दिया। बाद में राजा नंगे पांव चलकर देवी पूजा करने आने लगे थे। इसी दौरान राजा को देव योग से एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। तब से अब तक अन्य गांवों के लोग यहां लोग पूजा अर्चना करते हैं। राजा का राजपाट समाप्त होने और उनके निधन के बाद मंदिर की देखरेख भतौरा निवासी जगन्नाथ प्रसाद शाक्य करने लगे थे।
मंदिर के निर्माण के बाद काफी वर्ष बीत जाने के कारण मंदिर जर्जर हो गया था। 19वीं शताब्दी में जगन्नाथ प्रसाद ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। उनके निधन के बाद मंदिर की देखरेख जगन्नाथ प्रसाद के जेष्ठ पुत्र रामसिंह पेशकार करने लगे।
मंदिर के निकट ही 1979 में मां देवी भोजेश्वरी शिक्षा संस्थान का गठन कर एक विद्यालय की स्थापना भी की गई। इससे मंदिर पर लोगों का आवागमन बढ़ गया।
ग्राम भतौरा से ही जुड़े मजरे का नाम बाद में नगला भिखन रख दिया गया।
90 के दशक के शुरुआत में पेशकार राम सिंह शाक्य के निधन के बाद से अब तक मंदिर व स्कूल की देखरेख उनके परिजन करते रहे । दूसरी बार जीर्णोद्धार वर्ष 1998 में पेशकार की पत्नी स्व सुशीला देवी शाक्य ने कराया था। उसके बाद से पूर्व जिला पंचायत सदस्य व प्रदीप शाक्य बबलू कर रहे हैं।वेदव्रत गुप्ता
*वेदव्रत गुप्ता