*रेजांगला के वीर बलिदानी*
ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी। जो शहीद हुए हैं उनकी,जरा याद करो कुर्बानी। ….देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली, जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली।
देशभक्ति की भावना से भरा यह गीत हमें विभिन्न राष्ट्रीय पर्वों तथा सैन्य वीरता से संबंधित कार्यक्रमों में सुनाई देता है। इस गीत को सुनकर शरीर के रोम रोम में देशभक्ति की भावना हिलोरें मारने लगती है। इस गीत को कवि प्रदीप जी ने लिखा था और भारत रत्न, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर जी द्वारा गाया गया था। इस गीत के लेखन की प्रेरणा रेजांग ला के वीर ही थे। इस गीत में वर्णित “दस-दस को एक ने मारा” रेजांग ला की सच्चाई है। इस गीत की हर पंक्ति उन रणबांकुरों की शौर्य गाथा कहती है, जिन्होंने रेजागं ला के युद्ध में दीपावली के समय चीन के साथ मुकाबला करते हुए 18000 फीट की ऊंची बर्फीली चोटी पर शहादत की अमर गाथा लिखी थी।
18 नवंबर 1962 को रात में साढ़े तीन बजे बर्फीले तूफान के बीच चीनी सैनिक इलाके में घुस चुके थे। सुबह के 4:35 बजे जब मौसम थोड़ा ठीक हुआ तब अचानक चीनी सैनिकों ने 13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के ऊपर हमला करना शुरू कर दिया था। चीनी सेना के पास उस समय के अत्याधुनिक हथियार थे, और 13 कुमाऊं रेजिमेंट के जवानों के पास। .303 राइफल, 2 इंच मोर्टार जैसे छोटी मारक क्षमता वाले हथियार और 1000 गोले थे। चीन की सेना की योजना लेह और चुशूल रोड लिंक जो कि दुंगती होकर जाता था, उसको अवरूद्ध करने की थी। मेजर शैतान सिंह और चार्ली कंपनी के जवानों ने इस हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया।
मेजर शैतान सिंह अपने संख्या बल और हथियारों की मारक क्षमता से परिचित थे। उन्होंने अपने सैनिकों को निर्देश दिया कि कारगर रेंज में आने पर ही फायर खोला जाए। रेंज में आते ही चार्ली कंपनी के वीरों ने राइफल, मोर्टार और मशीन गन से हमला बोल दिया। एकाएक हुए इस हमले से चीनी सैनिक घबराकर इधर उधर भागने लगे। देखते ही देखते पहाड़ी की तलहटी चीनी सैनिकों की लाशों से पट गयी। चीनी सैनिकों ने भारतीय सेना की एक कंपनी की दस गुना ज्यादा शक्ति से हमला किया था लेकिन भारतीय सेना के शौर्य के आगे उन्हें पीछे हटना पड़ा। लेकिन कुछ समय बाद ही उन्होंने कंपनी को घेरकर चौतरफा और ज्यादा तीव्रता से हमला किया। मोर्टारों से हो रहे इस हमले में चार्ली कंपनी के बंकर, हथियार बर्बाद होने लगे लेकिन भारतीय सैनिक पीछे हटने को तैयार नहीं हुए।
गोला बारूद खत्म होने लगा था लेकिन भारतीय सैनिकों का जोश सातवें आसमान पर था। भारतीय सैनिक बंकरों से बाहर आ गये और संगीनों, राइफलों के बटों तथा हाथों से गुत्थम गुत्था का युद्ध आरम्भ हो गया। इसी बीच मेजर शैतान सिंह को गोली लग गयी और वह गंभीर रूप से घायल हो गए। हवलदार हरफूल सिंह उन्हें वहां से सुरक्षित स्थान पर ले जाना चाहते थे लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने अपनी बेल्ट को कमर से निकाल कर हवलदार हरफूल सिंह को पकड़ा दिया और कहा कि मैं अंतिम सांस तक लड़ूंगा। उन्होंने हवलदार हरफूल सिंह को कहा कि आप छावनी में जाकर बता दो कि चार्ली कंपनी का हर जवान लहू की आखिरी बूंद और आखिरी गोली तक लड़ा। इसी बीच मशीनगन का एक ब्रस्ट मेजर शैतान सिंह की जांघ, पेट और सीने को पार कर गया। इस हमले में मेजर शैतान सिंह और उनके 114 जवान वीरगति को प्राप्त हो गये।
लद्दाख के रेजांग ला में 13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के कुल 124 जवान थे। उन्होंने अपने अदम्य शौर्य और पराक्रम के बल पर 1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया और लगभग तीन हजार सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। इस युद्ध में 13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के 114 जवान लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये थे। इस टुकड़ी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे। मेजर शैतान सिंह के साहस और वीरता के सम्मान के लिए उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान “परमवीर चक्र” से सम्मानित किया गया और उनकी रेजिमेंट के आठ जवानों को वीर चक्र, चार को सेना मेडल तथा एक को मैंशन इन डिस्पैच प्रदान किया गया। यह लड़ाई भारतीय सैन्य इतिहास में इसलिए महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि चीन ने इस लड़ाई में भारतीय सैनिकों के पराक्रम को देखकर युद्धविराम की घोषणा की थी।
रेजांग ला के उन वीरों के शौर्य, पराक्रम, साहस और वीरता को देखकर चीनी सैनिक भी नतमस्तक हो गए थे। उन्होंने रेजांग ला के उस युद्ध स्थल पर एक पट्टी पर ‘ब्रेव’ लिखकर वीर सैनिकों के शवों के पास सम्मानपूर्वक रख दिया था और उन वीरों के सम्मान में जमीन पर संगीन को गाड़कर उस पर कैप लटकाकर चले गए थे।
13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के 120 जवान हरियाणा के रेवाड़ी, गुरुग्राम, नारनौल और महेंद्रगढ़ जिलों के निवासी थे। रेज़ांग ला की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त करने वाले सैनिकों की याद में भारतीय सेना द्वारा लद्दाख के चुशुल में युद्ध स्मारक बनाया गया है। उस स्मारक पर अंग्रेजी में उन वीर सैनिकों के नाम लिखे गये हैं जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी सांसें कुर्बान कर दी थीं। इस स्मारक में एक शिलालेख लगाया गया है जिसमें पहली चार पंक्तियां कविता “होरेशियस” से उद्धृत हैं :-
” How can a Man die Better than facing Fearful Odds,
For the Ashes of His Fathers and the Temples of His Gods,
To the sacred memory of the Heroes of Rezang La,
114 Martyrs of 13 Kumaon who fought to the Last Man,
Last Round, Against Hordes of Chinese on 18 November 1962.”
– Built by All Ranks 13th Battalion, The Kumaon Regiment.
इस स्मारक के ठीक सामने ही समाधि के रूप में “अहीर धाम” स्मारक का निर्माण किया गया है। उल्लेखनीय है कि 13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के सभी जवान अहीर (यादव) ही थे।
हरियाणा में रेजांग ला शौर्य समिति द्वारा अहिरवाल क्षेत्र के रेवाड़ी शहर में धारूहेड़ा चौक के पास रेजांग ला पार्क के अंदर रेजांग ला युद्ध स्मारक का निर्माण किया गया । इस स्मारक में अपने फर्ज पर जीवन को होम कर देने वाले जवानों के नाम अंकित हैं। समिति द्वारा जिला प्रशासन के सहयोग से वार्षिक स्मारक समारोह आयोजित किया जाता है, इसमें कुमाऊं रेजिमेंट और रेजांग ला में वीरगति पाने वाले वीर अहीरों के परिवारों के सदस्य भाग लेते हैं।
भारतीय सेना अपने इस शौर्य और पराक्रम के इतिहास को “रेजांग ला दिवस” के रूप में मनाकर अपने वीरों की वीरता को नमन करती है। वास्तव में रेजांगला का वह युद्ध वीरता और साहस की पराकाष्ठा है जिसमें कुमाऊं रेजिमेंट के वीरों ने अपने से दस गुना ज्यादा सैनिकों को मुंहतोड़ जबाव दिया। किसी बात की विशेषता का उत्कृष्ट मापदंड वही है जब विरोधी भी उसका कायल हो, रेजांगला के युद्ध में यही हुआ। चीनी सेना भी भारतीय सेना की इस वीरता को अभूतपूर्व मानती है। रेजांगला का युद्ध भारतीय सेना की वीरता का इतिहास है और भविष्य के लिए पराक्रम का वह मापदंड है जिसको प्रत्येक सैनिक स्थापित करना चाहेगा।
– हरी राम यादव
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