डब किए गए, क्षेत्रीय ब्लॉकबस्टर फिल्म उद्योग को और भी विविध बना रहे हैं:"

 

आनंद पंडित

वरिष्ठ निर्माता का कहना है कि फिल्मों की विविधता बढ़ी है क्योंकि अब दर्शक विभिन्न भाषाओं और क्षेत्रीय

सीमाओं की परवाह नहीं करते

वरिष्ठ फिल्म निर्माता आनंद पंडित फिलहाल अपनी गुजराती और मराठी फिल्मों को पूरा करने में व्यस्त हैं। पंडित ने
फिल्म उद्योग को बहुत करीब से जाना  है और उसे कोवीड और ओटीटी चैनलों से उत्पन्न हुई चुनौतियों से जूझते हुए
भी देखा है.  लेकिन उनका कहना है की आज सिनेमा एक रचनात्मक विविधता के दौर से गुज़र रहा है जहाँ दर्शक
भाषा और क्षेत्र की सीमाओं से परे, फिल्मों को सिर्फ उनकी श्रेष्ठता के आधार पर देख और पसंद कर रहे हैं.
वे कहते हैं, "हिंदी और क्षेत्रीय सिनेमा ने हमेशा ही से प्रतिभा और कहानियों का आदान-प्रदान किया है, लेकिन यह
पहली बार है जब डब की गई फिल्मों ने पूरे देश में  सफलता के नए आयाम कायम किये हैं। 'आरआरआर', 'पुष्पा',
और 'केजीएफ' ने  न केवल भारत में बल्कि वैश्विक  स्तर पर भारतीय सिनेमा को एक नयी पहचान दी है. डब किए
गए, क्षेत्रीय ब्लॉकबस्टर फिल्म उद्योग को और भी विविध बना रहे हैं।"
वह इस बदलाव का श्रेय ओटीटी प्लेटफार्मों को देते हैं, जिन्होंने न केवल कई भारतीय भाषाओं में बल्कि फ्रेंच,
स्पेनिश, कोरियाई और इतालवी  भाषाओँ में फिल्में और शो प्रस्तुत करके दर्शकों को रिझाया है. वे कहते हैं, "अगर
कोरियाई शो दुनिया भर में ख्याति प्राप्त कर सकते हैं, तो कोई कारण नहीं है कि  मलयालम, तेलुगु, तमिल, मराठी,
गुजराती या पंजाबी कहानियाँ  इतनी ही प्रसिद्धि हासिल न कर पाएं.  हालांकि हिंदी फिल्में  राज कपूर के समय से ही
विदेशों में लोकप्रिय रही हैं  पर अब अधिक से अधिक क्षेत्रीय फिल्मों को वो सफलता और लोकप्रियता मिल रही है
जिसकी वो हमेशा ही से हकदार थीं ।"

पंडित के  अनुसार एक उद्योग की प्रशंसा करके दूसरे को कोसने की प्रवृत्ति व्यर्थ है और कहते हैं, "तथाकथित क्षेत्रीय
विभाजन की बात निरर्थक है क्योंकि आज भी  दोनों तरफ के सबसे बड़े निर्माता और सितारे एक दूसरे  के साथ
सहयोग कर रहे हैं और फिल्मों का सह-निर्माण कर रहे हैं. हम सभी का लक्ष्य है भारतीय सिनेमा को मिल जुल कर नए
आयाम देना और उसे  वैश्विक मंच पर सशक्त करना.  एक साथ चलने से ही ये मंज़िल हमें प्राप्त होगी और इसीलिए
हमें  हमेशा सहयोग और तालमेल की भाषा बोलनी चाहिए

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