इटावा की ऐतिहासिक धरोहर बिलैया मठ मन्दिर देख रहा जीर्णोद्धार की राह
सुबोध पाठक / प्रेम कुमार शाक्य
इटावा। स्वाधीनता संग्राम क्रांति का गवाह जसवंतनगर का बिलैया मठ अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है। दिन-ब-दिन खस्ता होते इस मठ में आजादी के बाद से अब तक किसी भी सरकार ने एक ईंट लगाना मुनासिब न समझा है।
जसवंतनगर के पश्चिमी छोर पर बना यह बिलैया मठ 10 मई 1857 में मेरठ से उठी प्रथम स्वाधीनता संग्राम की क्रांति का गवाह है जिस पर गोलियों के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। 12 मई को यहां क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी फौज के छक्के छुड़ा दिए थे। यहां नौ नंबर सैनिक टुकड़ी और आठ नंबर सवार सेना के कुछ सिपाही तैनात थे। क्रांति की जानकारी मिलते ही इन सैनिकों में भी चर्चा शुरू हो गई।
कलेक्टर एलन ऑक्टोवियम ह्यूम को वस्तुस्थिति भांपते देर नहीं लगी। उन्होंने सैनिकों को जिले के प्रमुख राजमार्गों पर पहरा देने के लिए तैनात कर दिया और आदेश दिया कि इधर से कोई भी संदिग्ध व्यक्ति गुजरता मिले तो गिरफ्तार कर लिया जाए। 16 मई की आधी रात को सात हथियार बंद सिपाही इटावा की सड़क पर शहर कोतवाल ने पकड़े। ये मेरठ के पठान विद्रोही थे और अपने गांव फतेहपुर लौट रहे थे।
ह्यूम को सूचना दी गई तब उन्हें कमांडिंग अफसर कार्नफील्ड के सामने पेश किया गया। विद्रोहियों ने कार्नफील्ड पर गोली चला दी। कार्नफील्ड तो बच गया लेकिन उसके आदेश पर चार को गोली मार दी गई और तीन क्रांतिकारी भाग निकले। क्रांतिकारी सैनिकों के साथ स्थानीय जनता भी हो गई थी। अंग्रेजों की जान को हर तरफ खतरा बढ़ चुका था।
अमर शहीद मंगल पांडेय के साथी सैनिकों को पता चला था कि कलकत्ता से मेरठ के विद्रोह को कुचलने के लिए गोला बारूद व अन्य सैन्य सामग्री भेजी जा रही है तब इसे रोकने के लिए उन क्रांतिवीरों ने इटावा-आगरा शेरशाह सूरी मार्ग के किनारे जसवंतनगर में आम के घने बाग स्थित बिलैया मठ शिवालय को ठिकाना बनाया। 19 मई 1857 की सुबह एक बैलगाड़ी में बैठकर सशस्त्र सैनिक बिलैया मठ की तरफ आ रहे थे तब गश्ती पुलिस ने उनसे हथियार डालने को कहा।
क्रांतिकारियों और गश्ती पुलिस में मुठभेड़ हुई। एक सिपाही मारा गया, बाकी भाग खड़े हुए। यह खबर जब कलेक्टर ह्यूम को लगी तो उन्होंने ज्वाइंट कलेक्टर डेनियल व वफादार सैनिकों को साथ लिया तथा जसवंतनगर की ओर चल पड़े। तब तक क्रांतिकारी सैनिक बिलैया मठ में सुरक्षित प्रवेश कर चुके थे। ह्यूम ने मठ को घेर लेने का आदेश दिया। अंग्रेज सरकार के सिपाही घेराबंदी करने लगे। दफादार मठ की ओर आगे बढ़ा तो एक गोली उसका सीना चीरती हुए निकल गई। कुछ और सिपाही मठ की ओर बढ़ते दिखे तो गोलियां खाकर गिरने लगे। यह देख तैश में आए ज्वाइंट कलेक्टर डेनियल ने अपना रिवॉल्वर निकालना चाहा तो एक गोली ने उसका सिर उड़ा दिया।
मठ के अंदर क्रांतिकारी सैनिक हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ गोली चला रहे थे और जसवंतनगर के लोग थोड़ी दूरी पर जवाब में उद्घोष कर उनका हौसला बढ़ा रहे थे। अंग्रेजी सरकार के अफसरों व सिपाहियों के पीछे हटते जाने पर भीड़ उनकी खिल्ली भी उड़ा रही थी। कलेक्टर ह्यूम ने स्थिति को भांपकर भाग निकलना बेहतर समझा था।
बताते हैं कि यहां से ह्यूम को एक मुस्लिम महिला के वेश में अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा था। उसने अपने गोरे शरीर को काले रंग से पुतवाया। पतलून उतारकर साड़ी पहनी और बुर्का ओढ़कर अपना भेष परिवर्तित कर लिया। रात के अंधकार में वह गोरे सिपाहियों के साथ वहां से बच कर भागा। उसे हिंदुस्तानी सिपाहियों से भी प्राण संकट था। जैसे तैसे वह अंग्रेज आगरा पहुंचा था।
बिलैया मठ में रहने वाली पुजारी पंडित मुन्नालाल बताते हैं कि यहां 10 अंग्रेजों को क्रांतिकारियों ने गोली मारी गई थी। वयोवृद्ध समाजसेवी ब्रह्म शंकर गुप्ता बताते हैं कि कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी क्रांतिकारियों की उस समय हौसला अफजाई कर रहे थे।