बिल्ली मत पालना

  • बिल्ली मत पालन
    एक फकीर मर रहा था। उसने अपने शिष्य से कहा, “देख, एक बात
    का खयाल रखना, बिल्ली मत पालना।” वह फकीर मर गया इतना हा कहकर।
    इसकी व्याख्या भी न कर गया। शिष्य तो बड़ा परेशान हुआ। बिल्ली न पालना,
    आखिरी संदेश! कोई ब्रह्मज्ञान की बात करनी थी। जीवन भर इसकी सेवा की
    और मरते वक्त यह कह गया कि बिल्ली न पालनाः बिल्ली हम पालेंगे ही क्यों?
    बिल्ली से लेना-देना क्या है! हमने बिल्ली पाल भी ली, तो इससे मोक्ष में कौन-सी
    बाधा पड़ती है। किसी भी शास्त्र में नहीं लिखा है कि बिल्ली मत पालना। बड़े-बड़े
    आदेश दिए हैं ऐसा मत करना, वैसा मत करना; दस आज्ञाएँ हैं, मगर बिल्ली
    मत पालना; यह क्या है? चोरी मत करना, बेईमानी मत करना, झूठ मत बोलना
    तो समझ में आता है, मगर बिल्ली मत पालना, यह कौन-सा नैतिकता का आधार है।
    उसे हैरान देखकर एक बूढ़े आदमी ने कहा, “तू परेशान मत हो। मैं तेरे
    गुरु को जानता हूँ, वह ठीक कह गया है। मैं तुझसे भी कहता हूँ कि अगर उसकी
    बात मानकर चला, तो बच जाएगा। उसकी बात न मानी, तो मुश्किल में पड़ेगा।
    क्योंकि वह मुश्किल में पड़ा था।”
    शिष्य ने पूछा, “मुझे पूरी बात समझाकर कह दें, कैसी मुश्किल ? क्योंकि
    ने
    मेरी अकल में बात नहीं बैठती। मैंने बड़े शास्त्र पढ़े हैं, मगर बिल्ली मत पालना-यह
    मेरी समझ से बाहर है।”
    उसने कहा, “सुन, तेरा गुरु कैसी मुसीबत में पड़ा। तेरे गुरु ने संसार छोड़
    दिया डर से कि यहाँ फँस जाऊँगा; जैसे लोग छोड़ देते हैं डर से। शादी नहीं
    की, दुकान नहीं की, बाजार में नहीं बैठा, भाग गया। जंगल में जाकर रहने लगा।
    एक मुसीबत आई। सिर्फ दो लंगोटियाँ थीं उसके पास । वह लंगोटियाँ सूखने को
    डालता, रात को चूहे उन्हें काट देते। उसने गाँव के लोगों से पूछा कि क्या किया
    जाए? उन्होंने कहा कि एक बिल्ली पाल लो। बस वहीं से सारा उपद्रव शुरू हुआ,
    सारा संसार शुरू हुआ। बात जंची गुरु को, उसने बिल्ली पाल ली। बिल्ली सब
    चूह खा गई, लाकन अब वह क्या खाए? अगर वह मर गई, तो उसकी हत्या
    “फकीर ने लोगों से पूछा कि भाई यह तो तुमने ठीक सुझाव दिया, तुम्हारी
    बात काम कर गई, चूहे खत्म कर दिए बिल्ली ने। मगर अब बिल्ली का क्या
    हो उन्होंने कहा कि एक गाय पाल लो, तुम्हें भी दूध मिल जाएगा, बिल्ली को
    भी दूध मिल जाएगा। तुम यह जो रोज-रोज भीख माँगने जाते हो, इस झंझट
    से भी बचोगे। और गाय हम दे देते हैं, हमारी भी झंझट मिटेगी-तुम्हें रोज-रोज
    भिक्षा देना। गायें गाँव में बहुत हैं, हम एक गाय तुम्हें गाँव की तरफ से दे देते हैं।
    “फकीर को बात अँची, बात सीधी गणित की थी। गाय पाल ली, लेकिन
    झंझट-अब गाय के लिए घास चाहिए, भोजन चाहिए। गाँव के लोगों ने कहा कि
    जमीन तो यहाँ पड़ी ही है; थोड़ी खेती-बाड़ी करने लगो, बैठे-बैठे करते भी क्या
    हो। इससे चारा भी हो जाएगा, गेहूँ भी हो जाएँगे, तुम्हारी रोटी का भी इंतजाम
    हो जाएगा। बिल्ली भी मजा करेगी, गाय भी मजा करेगी, तुम भी मजा करो।
    “बेचारे फकीर ने खेती-बाड़ी शुरू की। अब खेती-बाड़ी करे कि भजन-कीर्तन
    करे? गाय को सँभाले कि बिल्ली को सँभाले कि शास्त्र पढ़े? फुर्सत ही न मिले
    भजन-कीर्तन की। वह शास्त्र इत्यादि भूलने लगा। उसने गाँव के लोगों से कहा
    कि तुमने तो यह झंझट बना दी। मुझे समय ही नहीं मिलता।
    “उन्होंने कहा कि गाँव में एक विधवा है, उसका कोई है भी नहीं, वह
    भी परेशान है। उसको हम रख देते हैं यहाँ, तुम्हारी सेवा भी करेगी, रोटी भी
    बना देगी। तुम मजे से भजन-कीर्तन करना। वह मजबूत विधवा है और किसान
    रही है, खेती-बाड़ी भी कर देगी।
    “यह बात भी ऊँची। गणित फैलता चला गया। विधवा भी आ गई! उसने
    खेती-बाड़ी भी शुरू कर दी, हाथ-पैर भी दबा देती। बीमारी होती, तो सिर भी
    दबा देती। फिर जो होना था, सो हुआ। विधवा से प्रेम लग गया। कुछ बुरा
    भी न था, आखिर इतनी सवा करती थी और उस पर प्रेम न उमड़े, तो क्या
    हा! गाँव के लोग आ गए कि यह बात ठीक नहीं, अब अच्छा यही होगा कि
    आप इससे विवाह कर लो, क्योंकि इससे हमारे गाँव की बदनामी हो रही है।
    फर विवाह हो गया, बच्चे हुए। इस प्रकार उपद्रव फैलता चला गया, फैलता
    उस बूढ़े आदमी ने आगे कहा, “तुम्हारा गुरु ठीक कह गया है कि बिल्ली

मत पालना; यह उसकी जिंदगी भर का सार-निचोड़ है। एक बिल्ली से ही
उपद्रव शुरू हुआ था। उपद्रव तो कहीं से भी शुरू हो सकते हैं। गहराई में जाय
तो लँगोटी से शुरू हुआ। गुरु को असल में कहना था कि लँगोटी मत रख-
मगर कुछ तो रखोगे-लँगोटी, भिक्षापात्र । नहीं तो जिंदगी चलेगी कैसे? जिस
कैसे! कोई राजमहल ही नहीं बाँधते हैं, कोई भी चीज बाँध लेगी।

ओशो

सौजन्य से दिव्य जीवन जागृति मिशन इटावा

मोबाइल नंबर8218141639

 

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