कौन किसके बिना रुकता है सब स्वार्थ के संबंध हैं
कौन किसके बिना रुकता है सब स्वार्थ के संबंध है
मैंने एक कहानी पढ़ी मुझे प्रीत कर लगी किसी फकीर के पास एक युवक आता था। वह कहता था, “मुझे
भी संन्यास की यात्रा करनी है। सूफियों के रंग-ढंग मेरे मन को भाते हैं।
लेकिन क्या करूँ-पत्नी है और उसका बड़ा प्रेम है! क्या करूँ-बच्चे हैं
और उनका मुझसे बड़ा लगाव है। मेरे बिना वे न जी सकेंगे। मैं सच कहता
हूँ, वे मर जाएँगे। अगर मैं पत्नी से संन्यास की बात भी करता हूँ, तो
वह कहती है कि फाँसी लगा लूंगी।”
उस फकीर ने कहा, “तू ऐसा कर…। कल सुबह मैं आता हूँ। एक
छोटा-सा प्रयोग तुझे देता हूँ। तू रात भर साँस को साधने का अभ्यास कर
और सुबह साँस साधकर पड़ जाना। लोग समझेंगे कि मर गया। फिर बाकी
मैं सँभाल लूँगा।”
उसने कहा, “क्या हर्ज है…? देख लें करके। क्या होगा इससे?”
फकीर बोला, “इससे तुझे दिखाई पड़ जाएगा कि कौन-कौन तेरे साथ
मरता है। पत्नी मरती है, बच्चे मरते हैं, पिता मरते हैं, माँ मरती है, भाई
मरते हैं, मित्र मरते हैं-कौन-कौन मरता है, पता चल जाएगा। बस दस
मिनट तक साँस साधकर पड़े रहना है। सब जाहिर हो जाएगा। तुम देख
लेना, फिर दिल खोलकर साँस लेना और तुझे जो करना हो, कर लेना।”
युवक मर गया सुबह। साँस साध ली। पत्नी छाती पीटने लगी, बच्चे
रोने लगे, माँ-बाप चिल्लाने-चीखने लगे, पड़ोसी इकट्ठे हो गए। वह फकीर
भी आ गया इसी भीड़ में भीतर। फकीर को देखकर परिवार के लोगों ने
कहा, “आपकी बड़ी कृपा, इस मौके पर आ गए। परमात्मा से प्रार्थना करो,
नहीं तो हम सब मर जाएँगे? बचा लो किसी तरह! यही हम सबका सहारा
फकीर ने कहा, “घबराओ मत। यह बच सकता है। लेकिन जब मौत
आ गई, तो किसी को जाना पड़ेगा। तुममें से जो भी जाने को राजी हो,
वह हाथ उठा दे। वह चला जाएगा और यह बच जाएगा। इसमें देर न
करो।”
एक-एक से पूछा। पिता से पूछा। पिता ने कहा, “अभी तो बहुत
मुश्किल है। मेरे और भी बच्चे हैं। कोई यह एक ही मेरा बेटा नहीं है।
उनमें कई अभी अविवाहित हैं। कोई अभी स्कूल में पढ़ रहा है। मेरा होना
तो बहुत जरूरी है, मैं कैसे जा सकता हूँ?”
माँ ने भी कुछ बहाना बताया। बेटों ने कहा, “हमने तो अभी जीवन
देखा ही नहीं।” पत्नी से पूछा। पत्नी के आँसू एकदम रुक गए। उसने
कहा, “अब ये तो मर ही गए, हम किसी तरह चला लेंगे। अब आप झंझट
न करो।”
फकीर ने कहा, “अब उठ!”
वह युवक आँख खोलकर उठ आया। फकीर ने पूछा, “अब तेरा क्या
इरादा है?”
युवक ने कहा, “अब क्या इरादा है, आपके साथ चलता हूँ। हम तो
मर ही गए। ये लोग सब चला लेंगे। देख लिया राज । समझ गए, सब बातों
की बात थी। कहने की बातें थीं।
कौन किसके बिना रुकता है। कौन कब रुका है! कौन किसको रोक
सका है। दृष्टि आ जाए, तो वैराग्य उत्पन्न होता है। उस घड़ी युवक ने
देखा। इसके पहले सोचा था बहुत । उस घड़ी दर्शन हुआ। इससे पहले विचार
किया था बहुत । लेकिन वे विचार विचार न थे, विवेक न था; क्योंकि उनसे
वैराग्य नहीं फलित होता था, उलटा राग फलित होता था।
तो कसौटी है-जिसमें राग लगे, वह विचार नहीं; वह भीड़-भाड़ है
विचारों की। थोथा है सब, असार है, राख है। उसमें अंगार नहीं है। जिसमें
वैराग्य की लपटें उठे-वह अंगार है, जीवन है, विचार है, विवेक है।
जिंदगी एक हादसा है और ऐसा हादसा,
मौत से भी खत्म जिसका सिलसिला होता नहीं।
मौत आती है, जाती है, लेकिन सम्मोहन चलता रहता है। जीवेषणा
को मौत नहीं मार पाती। शरीर छूट जाता है, हम नया शरीर ग्रहण कर
लेते हैं। तुम शरीर में इसलिए नहीं हो कि शरीर ने तुम्हें चुना है
शरीर में इसलिए हो कि तुमने शरीर को चुना है। तुम दुख में इसलिए नहीं
हो कि दुख तुम पर आया है। तुम दुख में इसलिए हो कि तुमने दुख को
बुलाया है।
संकलन कर्ता
राम नरेश यादव
राष्ट्रीय अध्यक्ष
दिव्य जीवन जागृति मिशन इटावा
(उत्तर प्रदेश)
मोबाइल नंबर 8218141639
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