जसवंतनगर में लंकाधिपति रावण के 37 फुट ऊंचे पुतले की पूजा -पाठ के साथ की गई “प्राणप्रतिष्ठा”

*प्रबंधक राजीव गुप्ता बबलू, संयोजक अजेंद्र सिंह गौर ने की विशेष पूजा *लंका में गूंजे जय लंकेश के नारे

फोटो:- दशानन रावण के पुतले की प्राण प्रतिष्ठा के लिए पूजा करते राजीव गुप्ता बबलू अजेंद्र सिंह गौर, ऊंचाई पर लगा रावण का पुतला
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जसवंतनगर (इटावा)। यहां के रामलीला महोत्सव में लीलाओं के दौरान निभायी जाने वाली अनेक परंपराएं अजब-गजब हैं। इनमें कई तो धार्मिकता से ओतप्रोत है, तो कई दांतों तले उंगली दवाने को मजबूर कर देने वाली हैं।
     सोमवार को रामलीला मैदान में बनी भव्य लंका में लंकाधिपति रावण का विशालकाय पुतला रामलीला कमेटी द्वारा लगवाया गया। इस पुतले को स्थानीय कारीगर “पिंटू पेंटर” निवासी गुलाब बाड़ी द्वारा बनाया गया है।

पिंटू पिछले  लगभग10- 15 वर्षों से पुतला बना रहा है, वह ही मारीच, जयंत, जटायु आदि के कागज और बांस से बने चेहरे बनाता है। बाबू पेंटर के खानदान का होने के कारण मुखोटों की पेंटिंग का काम  उनसे ही उसने सीखा था। और  फिर रावण के पुतले भी बनाने लगा। उससे पूर्व आधी शताब्दी से ज्यादा वर्षों तक एक मुस्लिम जातीय “बाबू खां”और उसके परिवार द्वारा जैन मोहल्ला और लाल जी बगिया में यह काम किया जाता था।

रावण के 15 फुट ऊंचे चेहरा नुमा पुतला को बनाने में पिंटू को कोई 20 दिन लगे हैं।बांस की खपच्चों, काले कपड़े, काले कागज तथा साज सज्जा के अनेक सामान उसमें प्रयुक्त किए गए हैं।

     रावण के इस पुतलानुमा दस शीश धारी पुतले को लंका भवन की तीसरी मंजिल पर चढ़ाए जाने से पूर्व उसकी  विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की गई।इस प्राण प्रतिष्ठा को देखकर लोग दांतों तले उंगली दबा गए और उनका सवाल था कि रावण की भी प्राण प्रतिष्ठा होती है?..
       मगर रामलीला समिति के प्रबंधक राजीव गुप्ता “बबलू” ने बताया कि प्रत्येक वर्ष रावण का विशालकाय  पुतला जब लंका में लगाया जाता है ,तो उसकी हम रामलीला कमेटी के लोग वाकायदा चौक पूरकर , तिलक वंदन, आरती आदि करके उसकी आरती करते है।  प्राण प्रतिष्ठा के मंत्रों का जाप भी करते हैं।
     उन्होंने बताया कि उन्हें करीब 40  वर्ष के लगभग रामलीला मेले की व्यवस्था संभालते हो गया है। मेरे बाबा गंगा चरण गुप्ता भी रावण के पुतले की बकायदा प्राण प्रतिष्ठा करते थे। उन्हीं से मैंने यह रस्म सीखी थी।
     रावण महा विद्वान था। भले ही उसने सीता का हरण किया हो, मगर जसवंत नगर की रामलीला में रावण को महा विद्वान के रूप में पूजे जाने की भी परंपरा है। यहां रावण का पुतला फूंका नहीं जाता है। इस प्राण प्रतिष्ठित पुतले की खपच्चो  को, इसीलिए लोग दशहरा के दिन रावण वध के बाद भूत प्रेत बाधा मिटाने के लिए अपने घरों को ले जाते हैं।
     इस वर्ष रावण का विशालकाय पुतला पिछले वर्ष की तुलना में 2 फुट ज्यादा ऊंचा बनाया गया है। उसके दोनों ओर चार-चार  बड़े बड़े शीश लगाये गए हैं । मध्य में उसका विशालकाय चेहरा है तथा चेहरे के ऊपर एक गधे का चेहरा भी लगाया गया है, यह इसलिए लगाया जाता है कि महान विद्वान होने के बावजूद सीता हरण के दौरान रावण की बुद्धि एक गधे की  भांति बिल्कुल भ्रष्ट हो गई थी।
      जसवंतनगर की रामलीला का यह पुतला 22 फीट ऊंची दूसरी मंजिल पर एक बड़े घेरे में लगाए जाने से पूर्व करीब 20 लोगों ने बड़े-बड़े  रस्सों से  पुतले को ऊपर खींचा और ऊपर बने घेरे में उसको ठीक से बैठाया, ताकि रावण का चेहरा स्पष्ट रूप से रामलीला मैदान और मेले में आने वाले  लोगों को  दिख सके।
       रावण की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान रामलीला समिति के कार्यकारी अध्यक्ष हीरालाल गुप्ता, विधायक प्रतिनिधि और रामलीला समिति के संयोजक ठाकुर अजेंद्र सिंह गौर के अलावा व्यवस्थापक राजेंद्र गुप्ता एडवोकेट, रामनरेश यादव पप्पू,विवेक रतन पांडे, शुभ गुप्ता, प्रभाकर दुबे आदि भी मौजूद थे। जिस समय रावण का पुतला लगाया जा रहा था, लोग लंकेश की जयकार के नारे  गूंजा रहे थे।
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*वेदव्रत गुप्ता

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