सीता स्वयंवर में “परशुराम और लक्ष्मण” के मध्य चला कई घंटों तक “वाक-युद्ध”

    *ऐतिहासिक रामलीला महोत्सव का  आगाज    *रात भर डटे रहे श्रोता

 फोटो : लक्ष्मण परशुराम के मध्य संवाद चलता हुआ, भगवान राम शिव धनुष का भंजन करते हुए, सीता स्वयंवर के बाद राम सीता की आरती उतारते राजा जनक
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जसवन्त नगर(इटावा)।नगर की विश्व विख्यात रामलीला महोत्सव में मंगलवार रात्रि से लीलाएं आरंभ हो गईं। यहां की मैदानी राम लीला की एकमात्र मंचीय लीला “धनुष भंग, सीता स्वयंवर और लक्ष्मण परशुराम संवाद” के साथ लीलाओं का जब पहले दिन आगाज हुआ,तो रात भर श्रोता परशुराम – लक्ष्मण संवाद सुनने के लिए रामलीला मैदान में डटे रहे। दोनों के बीच संवाद कुल मिलाकर 6 घंटे तक चला बताया गया है।

प्रथम दिन की लीला की  शुरूआत परंपरागत रूप से  गणेश पूजन और भगवान राम लक्ष्मण सीता की आरती के साथ रामलीला कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष हीरालाल गुप्ता, प्रबंधक राजीव गुप्ता बबलू, संयोजक ठाकुर अजेंद्र  सिंह  गौर और समिति के अन्य सदस्यों  द्वारा की गई।

    राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता का विवाह करने के लिए स्वयंवर का आयोजन करने की घोषणा की, जिसमें भगवान शिव के धनुष को तोड़ा जाना लक्ष्य और प्रमुख शर्त थी।
    स्वयंवर में देश देशांतर के राजा पधारे, जिन्होंने धनुष उठाने का भरसक प्रयास किया।  सबको निराशा ही हाथ लगी। त्रिलोक विजेता दशानन लंकेश भी मौजूद था लेकिन जब उसे पता चलता है कि ये शिव जी का धनुष है तो वह अपने आराध्य देव के प्रिय धनुष को प्रणाम कर वापस लंकापुरी चला जाता है।
   अन्य राजाओं ने कहा “तजहु आस निज निज ग्रह जाहू, लिखा न विधि वैदेहि विवाहू।” इस पर जनक ने कहा कि “अब जनि कोऊ माखै भटमानी वीर विहीन मही मै जानी।”
    जनक के शब्द सुनकर लक्ष्मण उत्तेजित हो गए, तब प्रभू राम ने शांत कर अपने संमुख बैठाया। विश्वामित्र की आज्ञा पाकर श्री राम ने धनुष को हाथ ही लगाया कि शिव धनु खण्ड खण्ड हो गया।
 धनुष टूटने पर हुई घनघोर गर्जना सुन तपस्या लीन महातपस्वी परशुराम की तंद्रा भंग हो गई और वह मिथिला जा पहुंचकर राजा जनक से धनुष तोड़ने वाले के बारे में पूछते हैं। परशुराम कहते हैं कि “बेगि दिखाव मूढ न तो आजू ऊलटहुं महि जहंलौ युवराजू।”
   श्री राम जी परशुराम को शांत करने का प्रयास करते हैं, लेकिन उनके साथ ना होने पर लक्ष्मण कहते हैं_ बहु धनुही तोरी लरिकाई कबहु न असरिष कीन्ह गोसाईं, यहि धनु पर ममता केहि हेतू।
     लक्ष्मण के शब्द सुनकर परशुराम का क्रोध अधिक बढ़ जाता है। वह लक्ष्मण को मारने के लिए दौड़ते हैं, जिसे देख प्रभु राम शांत कराते हैं और उनसे क्षमा मांगते हैं।
   श्री राम व लक्ष्मण के स्वभाव को देखकर परशुराम जी विस्मय में पड़ जाते हैं। कई घण्टे चले संवाद के बाद परशुराम सीता को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देते हैं।
    कानपुर से आये व्यास पं. ध्रुव शुक्ला के साथ राम-लक्ष्मण का अभिनय बांदा जनपद से आये दो सगे भाई अवनीश पाण्डेय व प्रदीप पाण्डेय, परशुराम का अभिनय कानपुर निवासी राजू मिश्रा, जनक के रूप में पुखरायां के प्रद्युम्न तिवारी और रावण का अभिनय कानपुर से पधारे पं सुधांशु तिवारी एवं वाणासुर ठाकुर देवेंद्र सिंह गौर, कानपुर देहात ने मनमोहक प्रस्तुति देकर सभी के मन को मोह लिया।
इस कार्यक्रम में कार्यकारीअध्यक्ष हीरालाल गुप्त, प्रबंधक राजीव गुप्ता बबलू, उप प्रबंधक, विधायक प्रतिनिधि ठाकुर अजेंद्र सिंह गौर,अनिल कुमार अन्नू, राजेंद्र गुप्ता एडवोकेट, किशन सिंह यादव मेंबर साहब, रामनरेश यादव पप्पू, राजीव गुप्ता माथुर,विवेक रतन पांडे,डॉक्टर पुष्पेंद्र पुरवार, राहुल शाक्य राजकमल गुप्ता कोयला वाले , तरुण मिश्रा, प्रशांत गोलू यादव ,निखिल गुप्ता,शुभ गुप्ता प्रभाकर दुबे, प्रण उर्फ टीटू दुबे, धर्मेंद्र कुमार चक  बूटी  आदि मौजूद रहे
_____वेदव्रत गुप्ता

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