Devkali Mandir Auraiya News: औरैया देवकली मन्दिर के इतिहास में छिपे अनेकों रहस्य, देखें पूरी रिपोर्ट

देवकली मंदिर औरैया

Devkali Mandir Auraiya: औरैया देवकली मन्दिर के इतिहास में छिपे अनेकों रहस्य, देखें पूरी रिपोर्ट

🔹भोलेश्वर बाबा के दर्शन से पूरी होती हैं मनोकामनाएं

🔹देवकली मंदिर ऐतिहासिक धरोहर और सांस्कृतिक भव्यता का जीवंत प्रतीक

रिपोर्ट – आकाश उर्फ अक्की भईया

औरैया (ब्यूरो)। औरैया शहर से तीन किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में द्वापर युग का भोले बाबा का देवकली मंदिर, यमुना नदी के तट के पास स्थित है। मंदिर मूल रूप से भगवान शिव को समर्पित है। यमुना नदी के किनारे शेरगढ़ घाट बना हुआ है, और बीहड़ क्षेत्र में महामाया मंगलाकाली देवी जी का एक भव्य मंदिर पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। राजा जयचंद द्वारा यमुना तट पर विश्राम हेतु विश्राम घाट का निर्माण कराया गया। औरैया के यमुना तट के समीप स्थित देवकली शिवमंदिर जनपद की प्राचीन धरोहर व आस्था का प्रतीक है। सावन माह में यँहा आसपास के कई जनपदों के शिवभक्त जलाभिषेक करने पहुँचते है। शिवरात्रि पर्व में भक्तों द्वारा शिवबरात के साथ जलाभिषेक किया जाता है। मंदिर के गर्भग्रह में विधमान शिवलिंग की स्थापना प्रतिहार वंश के राजा द्वारा 9 वीं शताब्दी में की गई थी। द्वापर युग में जब कौरव तथा पांडव आपसी विद्वेष भाव से हस्तिनापुर में निवास कर रहे थे, उसी समय कुंती पुत्र तथा पांडवों के बड़े भाई कर्ण यमुना के उस पार जालौन जिले में पड़ने वाले कनारगढ़ में अपना राज काज चला रहे थे जो अब करनखेड़ा नाम से जाना जाता है। इन्हीं दानवीर कर्ण की पीढ़ी में राजा कृष्णदेव का जन्म हुआ।

  • राजा कृष्णदेव द्वारा महाकालेश्वर की मूर्ति की स्थापना :

राजा कृष्णदेव ने लगभग संवत 202 ईसवी में यमुना के किनारे एक किले का निर्माण कराया जो नाम देवगढ़ नाम से जाना गया। यह वही जगह थी जहां पर आज देवकली का भव्य मंदिर बना हुआ है। यहीं पर कृष्णदेव ने एक मंदिर बनवाया जिसमें महाकालेश्वर की मूर्ति की स्थापना करवाई। राजा कृष्णदेव के बाद इनकी पीढ़ी धीरे धीरे आस्था से विमुख होती चली गयी और नास्तिक हो गई। तदुपरान्त राज्य की बर्बादी शुरू हो गई धीरे-धीरे महल खंडहर में तब्दील होता गया तथा महाकालेश्वर मंदिर भी विध्वंस हो गया और देवगढ़ का किला यमुना नदी में समा गया।

  • महमूद गजनबी का आक्रमण :

महमूद गजनवी द्वारा 1019 ईसवीं में इस धार्मिक स्थल देवकली, को नष्ट करने का प्रयास किया गया, परन्तु स्थानीय लोगो द्वारा पुनः शिवलिंग और मूर्तियां स्थापित कर दी गयी। कन्नौज राज्य के गहडवाड़ वंश के राजा चन्द्रदेव ने 1095 इसवीं में इस स्थान का जीर्णोद्धार करवाकर पुनः मंदिर की स्थापना की। राजा चन्द्रदेव ने कालांतर में मंदिर के समीप एक सैन्य छावनी विकसित करवायी, जिसके अवशेष मंदिर के आस पास आज भी देखे जा सकते है

  • पृथ्वीराज राज चौहान की बेटी देवकला का विवाह व मोहम्मद गौरी का आक्रमण :

महाराज कृष्णदेव की पीढ़ी में ही राजा विशोक देव का जन्म संवत 1182 ईस्वी में हुआ। इन्होंने अपने पूर्वजों की राजधानी करन खेड़ा को पुनः बसाया और वहां पर राज्य करने लगे। संवत 1210 ईस्वी में विशोक देव का विवाह कन्नौज के राजपूत राजा जयचंद की बहन देवकला के साथ हुआ, राजा विशाक देव की गैरमौजूदगी में आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी ने कनारगढ़ के किले पर संवत 1255 ईस्वी में हमला कर दिया। जिससे कनारगढ़ का किला धराशाई हो गया और हजारों की संख्या में राजा विशोक देव की फौज मारी गई। किसी तरह जान बचाकर भागे सेनापति ने जब राजा विशोकदेव व महारानी देवकला को इस समाचार को सुनाया तो वे बहुत दुःखी हुए और अपनी बची हुई फौज को साथ लेकर राजा विशोकदेव ने मोहम्मद गोरी पर आक्रमण कर दिया। जिससे मोहम्मद गोरी जान बचाकर भाग खड़ा हुआ। परंतु जाते जाते गौरी, कनारगढ़ किले को पूरी तरह नष्ट कर चुका था

Madhav Sandesh images शिवलिंग

  • शिवलिंग का उदय :

किले के नष्ट हो जाने पर विशोक देव ने पुनः महल के निर्माण के लिए देवगढ़ के बियाबान जंगलों में खुदवाई करवाई खुदाई करने पर महल के बीचो-बीच आंगन में एक शिवलिंग (पत्थर की लाट) मिली। जिसे देखकर राजा विशोक देव आश्चर्य चकित रह गये और मजदूरों को उस लाट को उखाड़ने का आदेश दिया। परंतु उस लाट का कोई अंत ही नहीं था। इस पर महाराज विशोकदेव व महारानी विचार मग्न हो गये।सुबह के समय जब रानी देवकला पूजा का थाल लेकर जैसे ही निकली तो रास्ते में जहां पर वर्तमान समय में मंगला काली का प्रवेश द्वार है, उसी जगह पर महारानी देवकला को कन्या स्वरूप में मंगला काली के दर्शन हुए। देवी जी ने महारानी से कहा कि महारानी तुम्हारे महल के बीचो-बीच आंगन में जो पत्थर की लाट है वह देवगढ़ महाराज कालेश्वर (शंकर जी) हैं।

  • महारानी देवकला की स्मृति में देवकली मंदिर का निर्माण :

देवकला ने वापस आकर यह बात विशोक देव को बताई। कहा की यह लाट देवगढ़ महाराज कालेश्वर की है। जिसकी स्थापना हमारे पूर्वजों ने की थी। इस वक्तव्य पर महाराज विशोकदेव ने उस जगह पर एक भव्य मंदिर-निर्माण का आश्वासन महारानी देवकला को दिया। लेकिन महारानी देव कला को शांति नहीं मिली और इसी लालसा को लेकर वह स्वर्गवाश हो गई। और महारानी के शिव मंदिर देखने की इच्छा अधूरी रह गई। देवकला की मृत्युपरान्त राजा विशोकदेव शोक में डूब गए और कनारगढ़ का राज्य उन्होंने अपने छोटे भाई गजेंद्र सिंह को सौंप दिया। महाराज विशोकदेव ने देवकला की इच्छा की पूर्ति के लिए महल के बीचो-बीच आंगन में शिव मंदिर का निर्माण संवत 1265 ईस्वी में प्रारंभ कर दिया। मंदिर बन जाने के बाद महाराज विशोकदेव ने अपनी प्रिय पत्नी देवकला के नाम से इस मंदिर का नाम देवकली मंदिर रखा। इसके बाद राजा विशोकदेव जंगलों में विचरण करते हुए यमुना किनारे एक टीले पर पहुंचे। वहीं पर अपनी तपस्थली बनाकर तपस्या करते हुए विलीन हो गये।

  • शेरशाह सूरी द्वारा मंदिर की पश्चिमी गुम्बद पर हमला :

इस भव्य देवकली मंदिर (Devkali Mandir) में आगे वाले भाग में दो ऊंचे-ऊंचे गुंबद बने थे। शेरशाह सूरी, चौसा के युद्ध में हुमायूं को परास्त करके इस क्षेत्र में आया और मंदिर पर आक्रमण करके पश्चिमी गुम्मद को गिरा दिया। इस घटना से व्यथित होकर महाराज विशोकदेव ने शेरशाह को श्राप देकर अंधा कर दिया। शेरशाह सूरी ने श्राप से मुक्ति के लिए यमुना किनारे विसरात बनवाई जो आज भी देखी जा सकती है। शेरशाह सूरी ने एक गुंबद गिराने के बदले में उसने यमुना किनारे एक मंदिर भी बनवाया जिसमें भगवान राम, लक्ष्मण तथा सीता की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा की गई। तभी से इस कालेश्वर महादेव जी के मंदिर में भक्तों द्वारा पूजा अर्चना की जा रही है, और असंख्य भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो रही हैं।

Madhav Sandesh images पूजा करते भक्त

  • आधुनिक इतिहास : मंदिर में मराठा शैली का समावेश व गुरिल्ला युद्ध का बिगुल

1772 इसवीं में मराठा छत्रपति सदाजी राव भाऊ द्वारा उत्कृष्ट कलाकृतियों समेत मराठा शैली में मंदिर का पुनर्निमाण कराया गया तथा मंदिर का उपयोग सैन्य छावनी के रूप में भी हुआ। देवकली मंदिर क्षेत्र में 52 कुएँ थे जिनमें से कुछ आज भी विधमान है। स्वाधीनता संग्राम के समय क्रांतिकारियों द्वारा मंदिर को शरणस्थली के रूप में उपयोग किया गया। 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में इटावा के क्रांतिवीर रामप्रसाद पाठक, अंग्रेज कलेक्टर एओ ह्युम के लश्कर से लोहा लेते हुए पने 17 साथियों के साथ शहीद हुए। मंदिर के समीप इनका स्मारक स्थल बनवाया गया है। क्रन्तिकारी कुंवर रूप सिंह, जूदेव, राजा निरंजन सिंह आदि ने भी 1857 में देवकली मंदिर से अंग्रेजो के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध का बिगुल फूंका।

  • जिलाधिकारी सुनील कुमार वर्मा (IAS) द्वारा ट्रस्ट निर्माण :

सन 2021 में तत्कालीन जिलाधिकारी सुनील कुमार वर्मा द्वारा महाकालेश्वर देवकली व मंगलाकाली देवस्थान एवं गोवंश संवर्धन / संरक्षण ट्रस्ट का गठन किया। इस ट्रस्ट द्वारा मंदिर का प्रबंधन एवं अनुरक्षण किया जाता है।

Madhav sandesh images त्रिशूल

  • संवेदना ग्रुप न्यास (रजि) द्वारा मंदिर परिसर में लगाया गया विशाल त्रिशूल

युवा सम्राट एवं जिले के प्रमुख समाज सेवी नगर के आस्थावान, जाने माने समाज सेवी एवं युवाओं के दिल की भावना समूह के प्रमुख सक्षम सेंगर जोकि नगर के समाजसेवियों में प्रथम स्थान रखते है! उनके प्रयासों से संवेदना ग्रुप द्वारा देवकली धाम पर पुरुषोत्तम श्रावण मास में विराट त्रिशूल लगवाने का कार्य सकुशल किया गया।

देवकली चौराहा पर लगा बोर्ड

  • खानपुर चौराहे का नाम बदलकर हुआ देवकली चौराहा:

ऐतिहासिक देवकली मंदिर जाने वाले मार्ग पर पड़ने वाले खानपुर चौराहे का नाम बदलकर देवकली चौराहा कर दिया गया। जिलाधिकारी सुनील कुमार वर्मा ने ट्रस्ट के लोगों की रुचि को देखते हुए देवकली मंदिर जाने वाले मार्ग व इसी मार्ग पर पड़ने वाले खानपुर चौराहे को पालिका ईओ बलवीर सिंह के सहयोग से देवकली चौराहा कर दिया साथ ही देवकली मंदिर जाने वाले मार्ग का नाम भी देवकली मार्ग कर दिया।

  • कई थानों के फोर्स तैनात :

सावन में देवकली मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. औरैया एसपी चारू निगम के निर्देशन में जनपद के कई थानों की फोर्स सुरक्षा के लिए मंदिर में तैनात है. वहीं, कुछ पुलिसकर्मियों की ड्यूटी सादी वर्दी में लगाई गई है।

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