पहले देश सेवा और अब समाज सेवा कर रहा सेवानिवृत सैनिक

मनुष्य के जीवन में संगठन का बड़ा महत्व है अकेला मनुष्य शक्तिहीन है

संगठन में प्रत्येक मनुष्य को अपनी व्यक्तिगत भावनाओं पर नियंत्रण एवं संगठन में समर्पित होना 

माधव संदेश संवाददाता

रायबरेली – गरीब परिवार से निकल कर पहले देश सेवा और जन सेवा के माध्यम से समाज में अपनी अलग पहचान बनाने वाले जय सिंह यादव ने अपनी बेसिक शिक्षा अपने ननिहाल पूरे गुरुदीन, रसूलपुर धराँवा से की थी उसके बाद जूनियर स्तर की शिक्षा अपने पैतृक गांव घूरी, मेलथुआ से करने के दौरान मन में देश की सेवा करने का जज्बा जागा और 1999 में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सेना में भर्ती के लिए कठिन परिश्रम में किया | मेहनत का फल मिला 2002 में मिला जब उन्हें भारतीय थल सेना के इंजीनियर कोर में चयन हुआ | इसके पश्चात सेना में रहते देश सेवा के साथ साथ अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाया और इंटरमीडिएट, बीए, एमए, एमबीए एवं टेक्निकल व डिप्लोमा कोर्सज की शिक्षा ग्रहण की | 17 साल देश सेवा के पश्चात सकुशल सेवानिवृत होकर अपने परिवार के बीच शामिल हुए और इसके बाद इलाहाबाद स्टेट यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री हासिल की | सेना में रहते हुए सेवा करने का जो भाव जय सिंह यादव के अंदर जाग्रत हुआ उसे सेना से सेवा निवृत होने के बाद भी जारी रखने के लिए उन्होंने 01 नवम्बर 2022 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले से *सैनिक समाज सेवा संगठन* नाम के एक संगठन की शुरुआत की, आज संगठन सम्पूर्ण भारत में सक्रिय रूप से काम कर रहा है। और सैनिकों से जुड़ी हर समस्याओं का समाधान करने की कोशिश की जा रही है वह सैनिक चाहे किसी भी बेल्ट फोर्स का हो यह संगठन सभी फोर्स के सैनिकों के लिए बनाया गया। यह देखने में आया है कि हर दल सैनिकों, सेवानिवृत्त सैनिकों, वीरता पदक विजेताओं, वीरगति को प्राप्त परिजनों से सुशासन के नाम पर वोट तो ले लेता है लेकिन सरकारी मशीनरी द्वारा इनका शोषण होने पर कोई इनका साथ नहीं देता। आये दिन सैनिकों के प्रताड़ित होने की खबरें मीडिया में आती रहती हैं। सभी प्रान्त की ख़बरें पढ़कर और‌ देखकर ऐसा लगता है कि इन सैनिकों, सेवानिवृत्त सैनिकों, वीरगति को प्राप्त परिवारों की खबर लेने वाला कोई नहीं। इन्ही बातों को ध्यान में रखकर सैनिक समाज सेवा संगठन की नीव रखी गयी। हर दल ने सैनिकों का एक अनुषांगिक दल बनाया हुआ है लेकिन उसमें उस दल की विचारधारा को मानने वाले सैनिकों को ही जोड़ा जाता है जबकि एक सैनिक की विचारधारा सार्वभौमिक और बसुधैव कुटुम्बकम वाली होती है।संगठन व्यक्तियों का समूह है जो किसी निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्तियों को एकत्रित करना और उनके बीच कार्यों को बांटना ही संगठन कहलाता है।” उर्विक के अनुसार- “किसी कार्य को पूरा करने के लिए क्रियाओं को किया जाए तथा उन क्रियाओं को व्यक्तियों के बीच वितरित ही संगठन कहलाता।मनुष्य के जीवन में संगठन का बड़ा महत्व है। अकेला मनुष्य शक्तिहीन है, जबकि संगठित होने पर उसमें शक्ति आ जाती है। संगठन की शक्ति से मनुष्य बड़े-बड़े कार्य भी आसानी से कर सकता है। संगठन में ही मनुष्य की सभी समस्याओं का हल है। जो परिवार और समाज संगठित होता है वहां हमेशा खुशियां और शांति बनी रहती है और ऐसा देश तरक्की के नित नए सोपान तय करता है। ब्यक्तियों के बीच आए दिन किसी न किसी बात पर कलह होती रहती है जिससे वहां हमेशा अशांति का माहौल बना रखता है।संगठित परिवार, समाज और देश का कोई भी दुश्मन कुछ नहीं बिगाड़ सकता, जबकि असंगठित होने पर दुश्मन जब चाहे आप पर हावी हो सकता है। संगठन का प्रत्येक क्षेत्र में विशेष महत्व होता है, जबकि बिखराव किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं होता है। संगठन का मार्ग ही मनुष्य की विजय का मार्ग है। यदि मनुष्य किसी गलत उद्देश्य के लिए संगठित हो रहा है तो ऐसा संगठन अभिशाप है, जबकि किसी अच्छे कार्य के लिए संगठन वरदान साबित होता है। प्रत्येक धर्म ग्रंथ संगठन और एकता का संदेश देते हैं। कोई भी धर्म आपस में बैर करना नहीं सिखाता। सभी धर्मों में कहा गया है कि मनुष्य को परस्पर प्रेमपूर्वक वार्तालाप करना चाहिए। मनुष्य जब एकमत होकर कार्य करता है तो संपन्नता और प्रगति को प्राप्त करता है। संगठन में प्रत्येक व्यक्ति का विशेष महत्व होता है इसलिए जब मनुष्य संगठित होकर कोई कार्य करता है तो उसके परिणाम में विविधता देखने को मिलती है। जिस तरह प्रत्येक फूल अपनी-अपनी विशेषता और विविधता से किसी बगीचे को सुंदर व आकर्षित बना देते हैं उसी तरह मनुष्य भी अपनी-अपनी विशेषता और योग्यता से किसी भी कार्य को नया आयाम प्रदान कर सकते हैं।यह भी संभव नहीं है कि किसी विषय पर सभी व्यक्तियों का मत एक जैसा ही हो, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति किसी विषय या समस्या को अपने नजरिये से ही देखता है और इसी आधार पर उसका समाधान भी खोजता है, लेकिन जब बात संगठन की आती है तब मनुष्य को वही करना चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों का भला हो। संगठन में प्रत्येक मनुष्य को अपनी व्यक्तिगत भावनाओं पर नियंत्रण करना होता है इसलिए संगठन में व्यक्ति को शारीरिक तौर पर ही नहीं, बल्कि मानसिक व आर्थिक रूप से भी समर्पित होना पड़ता है।

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