नायब सूबेदार राम कला सिंह, वीर चक्र

 

जयंती पर विशेष

03 दिसंबर 1971 को शाम 05 बजकर 40 मिनट पर पाकिस्तानी वायु सेना ने भारतीय वायुसेना के 11 वायुसेना अड्डों पर हमला कर दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उसी समय रात को ही ऑल इंडिया रेडियो पर देश की जनता को संबोधित किया और हवाई हमलों की जानकारी देते हुए बताया कि “कुछ समय पहले पाकिस्तानी हवाई जहाजों ने हमारे वायुसेना के अड्डों श्रीनगर, अमृतसर, पठानकोट, हलवारा, अम्बाला, फरीदकोट, आगरा, जोधपुर, जामनगर, सिरसा पर आक्रमण किया है”।
सरकार ने 04 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और सेना को ढाका की तरफ कूच करने का आदेश दे दिया। भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पाकिस्तान के आयुध भंडारों और वायु सेना अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिए और थल सेना ने पूर्वी और पश्चिमी मोर्चों पर पाकिस्तानी सेना के पैर उखाड़ने शुरू कर दिए । उधर भारतीय नौसेना ने 04 दिसंबर 1971 को कराची बंदरगाह पर स्थित पाकिस्तानी नौसेना के हेडक्वार्टर को नेस्तनाबूद कर दिया। हमारे नौसैनिकों ने पाकिस्तान की गाजी, खायबर, मुहाफिज जैसे युद्ध पोतों को बर्बाद कर दिया।

1971 के भारत पाकिस्तान के इस युद्ध में नायब सूबेदार राम कला सिंह की यूनिट 9 गार्डस पूर्वी मोर्चे पर तैनात थी। इनकी बटालियन को शत्रु के एक ठिकाने पर हमला करने का आदेश मिला था । यह 05 जवानों के साथ अपनी बटालियन के कमान अधिकारी के दल में थे। इनका दल हमला करने के लिए आगे बढ़ ही रहा था कि पाकिस्तानी सैनिकों ने स्वचालित हथियारों से इनके दल पर भारी गोलाबारी कर दी । इस गोलीबारी में इनकी बटालियन का एक अफसर घायल हो गया और दल का आगे बढ़ना रूक गया। पाकिस्तानी सेना के जिस बंकर से इनके दल के ऊपर मशीनगन से भीषण फायरिंग हो रही थी . नायब सूबेदार राम कला सिंह ने अपनी सुरक्षा के चिन्ता न करते हुए, रेंगते हुए शत्रु के बंकर के नजदीक जा पहुंचे। इन्होंने बंकर के एक झरोखे से ग्रेनेड बंकर के अन्दर डाल दिया। इसी दौरान बंकर में मौजूद पाकिस्तानी सैनिक ने मशीनगन से गोलियों की बौछार कर दी । कई गोलियां इनके दाहिने हाथ पर आ लगीं और इनकी तीन उंगलियां उड़ गयीं। हाथ के बुरी तरह जख्मी होने के बावजूद नायब सूबेदार राम कला सिंह दुश्मन से अकेले भिड़ गये। उन्होंने कई पाकिस्तानी सैनिकों को अपने बैनट से मार डाला।

नायब सूबेदार राम कला सिंह की वीरता और साहस को देखते हुए भारत सरकार द्वारा उन्हें 21 नवम्बर 1971 को युद्धकाल के तीसरे सबसे बड़े सम्मान “वीर चक्र” से सम्मानित किया गया। बाद में वह पदोन्नत होकर सूबेदार बने और इनकी उल्लेखनीय सेवाओं को देखते हुए इन्हें मानद कैप्टेन बना दिया गया । अपनी सेना की सेवा पूरी कर यह सेना से सेवानिवृत्त हो गए। 17 दिसम्बर 2022 को 82 वर्ष की उम्र में इनके पैतृक गाँव लछोई में इनका निधन हो गया।

नायब सूबेदार रामकला सिंह का जन्म जनपद बुलन्दशहर के गांव लछोई में 07 मई 1940 को श्रीमती पानो देवी और श्री इकराम सिंह के यहाँ हुआ था। इन्होने अपनी स्कूली शिक्षा अपने पड़ोस के गाँव के स्कूल से पूरी की और 16 नवम्बर 1957 को भारतीय सेना की ब्रिगेड आफ गार्डस में भर्ती हो गए। प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात 9 गार्डस में तैनात हुए। इनका विवाह श्रीमती राजपाली देवी से हुआ था । सेवानिवृत्त होने के पश्चात यह अपने गाँव लाछोई में अपने परिवार के साथ रहने लगे । नायब सूबेदार रामकला सिंह के परिवार में दो पुत्र जसवीर सिंह और धर्मेन्द्र सिंह हैं । इनके सबसे बड़े बेटे पुष्पेन्द्र सिंह कि मृत्यु हो चुकी है । दूसरे नंबर के बेटे जसवीर सिंह घर परिवार का काम देखते है और छोटे बेटे धर्मेन्द्र सिंह अपने पिता के पद चिन्हों पर चलते हुए वर्तमान समय में सूबेदार मेजर के पद पर देश की सेवा कर रहे हैं ।

नायब सूबेदार रामकला सिंह के साहस और वीरता को जीवंत बनाए रखने के लिए इनके परिवार द्वारा अपने गाँव में इनकी प्रतिमा स्थापित की गई है । इनके परिवार का कहना है कि यदि सरकार इनके गाँव को जाने वाली सड़क पर एक शौर्य द्वार बनवा दे और सड़क का नामकरण सूबेदार रामकला सिंह के नाम पर कर दे तो लछोई गाँव के लोग गर्व का अनुभव करेंगे और आसपास के गाँव के युवा इनकी वीरता और साहस से प्रेरणा लेकर देश की रक्षा के लिए उन्मुख होंगें ।

– हरी राम यादव

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