*मत बेच जमीर मुफत पर*

*मत बेच जमीर मुफत पर*

कर ज्ञानार्जन तू मनुआ,
और पकड़ चेतना की राह।
बैठ निठल्ला चौराहों पर,
मत बन जा तू बेपरवाह।
देख सामने तेरे सब कुछ,
होता जा रहा है बरबाद।
कब तक ले भाड़े का झंडा,
करता फिरेगा तू जयनाद।
कब तक सुनेगा झूठे भाषण,
कब तक तू देगा झूठी दाद ।
जब तक हाथों में कलम न हो,
कोई नहीं सुनेगा फरियाद ।
बिन मेहनत के खाने पर,
कोई हुआ नहीं आबाद ।
मत बेच जमीर मुफत पर,
कर कर्तव्य पर तू संवाद।।

– हरी राम यादव
7087815074

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