आचार्य ने सुनाया आत्म देव धुंधली व धुंधकारी की कथा

इकदिल, इटावा। हरिवंश विहार कालौनी पक्काबाग में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस के अवसर पर वृंदावन धाम से पधारे आचार्य डॉ ब्रह्म कुमार मिश्र ने आत्म देव धुंधली और धुंधकारी की कथा को विस्तार से सुनाया। जिसमें उन्होंने बताया आत्मदेव जो कि एक वेद पाठी ब्राह्मण थे बड़े ही विद्वान थे, लेकिन उनके यहां कोई पुत्र नहीं था। वह ग्लानि से भरे हुए एक दिन जंगल में जा पहुंचे जहाँ उन्हें एक साधु के दर्शन हुए साधु ने उन्हें एक फल दिया आत्म देव की पत्नी धुंधली ने वह फल अपनी गाय को खिला दिया कुछ समय बाद गाय ने एक बच्चे को जन्म दिया। जिसका पूरा शरीर मनुष्य का था केवल कान गाय के थे जिसका नाम गोकर्ण रखा गया। धुंधली का एक पुत्र जो कि उसकी बहन का था उसका नाम धुंधकारी रखा गया। आचार्य श्री मिश्र ने बताया साधु के आशीर्वाद से जो पुत्र हुआ वह ज्ञानी धर्मात्मा हुआ और धुंधकारी दुराचारी व्यभिचारी मदिरा चारी और दुरात्मा निकला व्यसन में पडकर चोरी करने लगा वेश्याओं को घर में रखने लगा एक दिन वेश्याओं ने लोभ में आकर इसकी हत्या कर दी। बाद में यह प्रेत बना। जिसकी मुक्ति के लिए गोकर्ण महाराज जी ने भागवत कथा का आयोजन किया। भागवत कथा सुनकर धुंधकारी को मोक्ष की प्राप्ति और प्रेत योनि से मुक्ति मिली। आगे की कथा में सुखदेव जी के जन्म की कथा का वर्णन किया नारद जी के कहने पर पार्वती जी ने भगवान शिव से पूछा उनके गले में जो मुंडमाला है वह किसकी है भोलेनाथ ने बताया वह मुंड किसी और के नहीं बल्कि स्वयं पार्वती जी के हैं हर जन्म में पार्वती जी विभिन्न रूपों में शिव की पत्नी के रूप में जब भी देह त्याग करती है तब शंकर जी उनके मुंड को अपने गले में धारण कर लेते पार्वती ने हंसते हुए कहा हर जन्म में क्या मैं ही मरती रही आप क्यों नहीं शंकर जी ने कहा हमने अमर कथा सुन रखी है पार्वती जी ने कहा मुझे भी वह अमर कथा सुनाइए शंकर जी पार्वती जी को अमर कथा सुनाने लगे। शिव-पार्वती के अलावा सिर्फ एक तोते का अंडा था जो कथा के प्रभाव से फूट गया उसमें से सुखदेव का प्राकट्य हुआ कथा सुनते सुनते पार्वती जी सो गई वह पूरी कथा श्री शुकदेव जी ने सुनी और अमर हो गए शंकर जी सुखदेव जी के पीछे उन्हें मृत्युदंड देने के लिए दौड़े। शुकदेव जी भागते भागते व्यास जी के आश्रम में पहुंचे और उनकी पत्नी के मुंह से गर्भ में प्रविष्ट हो गए। इस अवसर पर आचार्य हरिकान्त मिश्र छुन्ना पन्डित, नितिन चौवै, शिक्षक नेता भानुप्रकाश अवस्थी, श्यामू चौबे, विपिन दुवे, राघवेंद्र दुवे, बलराज चतुर्वेदी, रविकान्त दुवे, पप्पू यादव, अवनीश अवस्थी, अतुल पाठक,आदि लोगों का सक्रिय सहयोग रहा।

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