बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के सिद्धांतों को जीवन में आत्मसात करना जरूरी: कुलपति
* 67वें परिनिर्वाण दिवस पर भावपूर्ण स्मरण *उनके सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक
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फोटो:- सैफई पीजीआई में आयोजित भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर संबोधित करते कुलपति विश्वविद्यालय
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सैफई/ जसवंत नगर (इटावा), 06 दिसम्बर। एकऑफ उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय (यूपीयूएमएस) के प्रशासनिक भवन में बाबा साहब डा0 भीमराव अम्बेडकर के 67वें परिनिर्वाण दिवस पर उन्हें स्मरण किया गया। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 (डा0) प्रभात कुमार सिंह ने बाबा साहेब के जीवन मूल्यों के बारे में विस्तार से बताया तथा उनके बताये रास्तों पर चलने के लिए प्रेरित किया। प्रतिकुलपति डा रमाकान्त यादव, संकायाध्यक्ष डा आदेश कुमार, कुलसचिव डा चन्द्रवीर सिंह, चिकित्सा अधीक्षक डा एसपी सिंह, वित्त निदेशक जगरोपन राम, विभागाध्यक्ष कम्युनिटी मेडिसिन डा पीके जैन, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी केबी अग्रवाल, प्रशासनिक अधिकारी उमाशंकर के अलावा विश्वविद्यालय के फैकेल्टी मेम्बर, चिकित्सा अधिकारी एवं कर्मचारियों ने बाबा साहब को श्रद्धापूर्वक याद किया।
इस अवसर पर बोलते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 (डा0) प्रभात कुमार सिंह ने कहा कि संविधान के जनक बाबा साहब डा0 भीम राव अंबेडकर का देहावसान 06 दिसम्बर 1956 को हुआ। उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर मनाया जाता है। संविधान निर्माता बाबा साहब डा0 भीमराव अंबेडकर बडे समाज सुधारक और विद्वान थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन जातिवाद को खत्म करने के साथ सामाजिक समरसता के लिए अर्पित किया।
बाबा साहेब ने वर्ष 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया। परिनिर्वाण बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्तों और लक्ष्यों में से एक है। जिसका अर्थ ‘मृत्यु के बाद निर्वाण‘ होता है। बौद्ध धर्म के मुताबिक जो व्यक्ति निर्वाण प्राप्त करता है वह संसारिक इच्छाओं, मोह-माया से मुक्त हो जाता है। बाबा साहब के सिद्धान्तों तथा उनके जीवन मूल्यों से सीख लेने के साथ उसे आत्मसात् करना आज बेहद जरूरी है।
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फोटो:- सैफई पीजीआई में आयोजित भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर संबोधित करते कुलपति विश्वविद्यालय
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