दशलक्षण महापर्व पर  भगवान सुपार्श्वनाथ के गर्भकल्याणक पर जैन मंदिर में विशेष पूजा- अर्चना 

 *नगर में दोनों जैन मंदिरों में चल रहे,अनेक कार्यक्रम * जैन नौनिहाल सवेरे सवेरे निकालते है, प्रभात फेरी

फोटो;- तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के गर्भकल्याणक पर  जैन मंदिर में दशलक्षण पर्व के अंतर्गत विशेष पूजा अर्चना करते लोग एवं जैन महिलाएं आराधना करती हुई
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जसवंतनगर(इटावा)!जैन धर्मानुयायियो के महापर्व दशलक्षण पर्व के अवसर पर नगर के पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर ,जैन मोहल्ला तथा दिगंबर जैन मंदिर लुधपुरा में इन दिनों विविध धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन जोर शोर से चल रहा है।
 गुरुवार को तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ भगवान के गर्भकल्याणक के अवसर पर जैन श्रद्धालुओं ने तीर्थंकर भगवान का अभिषेक करते उनकी विशेष कल्याणक पूजा की। 
     
दशलक्षण पर्व के तहत प्रतिदिन पृथक- पृथक पूजाएं व अर्चना व भक्ति की जाती है, जिसमें सैकड़ो की संख्या में जैन अनुयाई प्रतिदिन सुबह से लेकर शाम तक भाग लेकर एवं दशधर्म के प्रति आकर्षित होकर अपने जीवन की विकृतियों को दूर कर मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ते हैं।
   
जैन समाज के मीडिया प्रभारी आराध्य जैन ने दशलक्षण पर्व पर आयोजित हो रहे कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देते बताया है कि रोजाना प्रातः छोटे-छोटे जैन नोनिहालो द्वारा प्रभात फेरी निकाली जाती है, जिसमें बच्चे जैन धर्म के ध्वज को लेकर नगर में भ्रमण करते हैं। नगर भ्रमण की यह प्रथा यहां सैकड़ो वर्षों से चली आ रही है। रास्ते भर भगवान के जयकारे एवं भजन गीत आदि गुनगुनाते हुए बच्चे तथा बड़े लोग एवं युवा उनके साथ चलते हैं।  तीर्थंकर भगवान का जिनेंद्रअभिषेक शांति धारा एवं पर्व की विशेष पूजाएं इसके बाद आरंभ हो जाती हैं।
    तत्पश्चात स्वाध्याय में भी काफी संख्या में श्रावक धर्म के मर्म को जिनवाणी से सरल भाषा में लोग समझते हैं।शाम को जिनेंद्र भक्ति,आरती का आयोजन होता है, जिसमे बड़ी संख्याओं में महिलाएं पुरुष और बच्चे सम्मिलित होकर भगवान का गुणगान करते हैं।  पर्व के दिनों में स्वयं के परिणामों को शुद्ध बनाने का कार्य करते हैं।
    रात्रि में  सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है ,जिसमें उत्साह लोगों का देखते बनता है। 
     आराध्य जैन ने यह भी जानकारी दी कि उत्तम आर्जव धर्म में आर्जव का अर्थ सरलता है। मन, वचन, काय की कुटिलता का अभाव ही आर्जव है। यह धर्म पाप का खंडन करने वाला तथा सुख उत्पन्न करने वाला है, जो व्यक्ति दूसरे के साथ कपट करता है, वह स्वयं ही अपने आप को धोखा देता है। दूसरों की अपेक्षा स्वयं अपनी ही क्षति अधिक करता है। इसलिए हमें छल, कपट, धोखा, चोरी आदि को छोड़कर उत्तम आर्जव धर्म को अवश्य ही जीवन में पालन करना चाहिए।
*वेदव्रत गुप्ता
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