बिलैया मठ के ‘भोलाभंडारी’ ने 1857 में की थी, क्रांतिकारियों की रक्षा

* कलेक्टर ह्यूम भागा था, साड़ी पहनकर * गाय की चर्बी लगे कारतूसों से भड़के थे पुलिस जवान *मेरठ से भागकर पहुंचे थे जसवंतनगर  

  फोटो – जसवंत नगर का ऐतिहासिक बिलैया मठ,जिसमे विराजित हैं नर्मदा नदी के किनारे से आए भोले भंडारी
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जसवंतनगर(इटावा)। भगवान भोलेनाथ को यूं ही भोला भंडारी नही कहा जाता। अपने भक्तों और आश्रितों पर वह  छप्पड़ फाड़ कृपा बरसाते हैं। इस कारण कभी कभी वह स्वयं भी संकट में फंस गए। भस्मासुर को वरदान देने और फिर उन्हें अपनी स्वयं की रक्षा के लिए तीनों लोकों में  दौड़ने की  कथा महा शिवपुराण की एक कथा है ही। 
 राष्ट्रीय स्वातंत्र्य आंदोलन के दौरान 1857 में क्रांतिकारियों पर भगवान  भोलेनाथ की कृपा का एक उदाहरण यहां नगर के पश्चिम कोने में स्थित  ‘बिलैया शिव मठ’ से जुड़ा है। यहां के शिवालय’बिलैया-मठ’ ने अंग्रेज सरकार से दो दो हाथ लिए थे। मठ पर अंग्रेजों ने जमकर  गोलियां बरसाईं थीं,जिन्हें मठ के प्राचीर पर आज भी निशानों के रूप में देखा जा सकता हैं। मगर शिवालय में आश्रय के लिए ठहरे क्रांतिकारियों का बाल बांका भी नही हुआ था। उल्टे अंग्रेज कलेक्टर को अपनी जान बचाने के लिए साड़ी पहनकर यहां से भागना पड़ा था।
भगवान भोलानाथ की कृपा से शरण में आए सभी क्रांतिकारी सुरक्षित निकलने में कामयाब हुए थे।
     पश्चिम कोने पर है बिलैया मठ
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    नगर के पश्चिमी कोने पर स्थित स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े इस बिलैया  मठ की स्थापना सन् 1720 ईस्वी के करीब स्वर्गीय शिवकुमार दादा के परिजनों ने कराया था।  मठ में अलौकिक शिवलिंग विराजित है।  मठ से 10 एकड़ का बाग भी लगा था।
     नर्मदा नदी से मिला था शिवलिंग
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    बताते हैं कि इस शिव मठ में विराजित शिवलिंग, नर्मदा नदी के तट की रेती से मंदिर के निर्माण कर्ताओं को स्वप्न में दर्शनों के बाद प्राप्त हुआ था। मठ के बगल से शेरशाह सूरी मार्ग गुजरता था, अब यह  नेशनल हाईवे का रूप ले गया है ।
 सन1857में गदर के वक्त कारतूसों में गाय की चर्बी के उपयोग को लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध पुलिस में  बगावत फैली थी। इसकी आग मेरठ तक जब फैली,तो कुछ हिंदू मताबलंबी पुलिस सिपाहियों ने अंग्रेज सरकार से विद्रोह कर दिया और ये क्रांतिकारी सिपाहियों की टोली सरकारी असलाहों के साथ मेरठ से भाग निकली।
ये क्रांतिकारी सिपाही भागते – भागते ओर अंग्रेजों  से बचते-बचाते जसवन्तनगर के इस बिलैया मठ के बाग में रात को आकर छिप गए थे।उन्होंने छिपने के दौरान मठ में विराजित शिव लिंग की रात भर आराधना की थी और अपनी सुरक्षा मांगी। रात काट ही पाए थे कि अंग्रेज अफसरों को इनके छिपे होने की खबर मिल गई।
   अंग्रेजों के समर्थक ने दी थी साड़ी
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     बताते हैं कि तत्कालीन अंग्रेज कलक्टर ए.ओ ह्यूम भारी फोर्स के साथ आ धमका और मठ को चारों तरफ से घेर लिया उन्होंने क्रांतिकारी सिपाहियों और मठ को निशाना बनाते गोलियां चलाईं और अंग्रेज फोर्स ने आत्मसमर्पण के लिए उन्हें ललकारा।
इस बीच जसवंतनगर के लोग भारी संख्या में मठ के चारों ओर आ जुटे। अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोलते पथराव शुरू कर दिया। अंग्रेज अफसरों के पांव उखड़ गए ।  कलक्टर ह्यूम को अपनी जान बचाने के लाले पड़ गए।भीड़ ने एक अंग्रेज सिपाही  की पथराव से जान ले ली। यह सब देख ह्यूम ने किसी गद्दार जसवंतनगर वासी के घर से साड़ी मंगाई और पहनी और  छुपता-छिपाता,जान-बचाता भाग खड़ा हुआ।
    अंग्रेज अफसरों के पांव उखड़ते ही मंदिर में छिपे क्रांतिकारी सकुशल इस मठ से आगे निकलने में कामयाब हो गए थे
   पत्रकार सच्चे ने शुरू कराया था जीर्णोद्धार
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    इस ऐतिहासिक घटना  की यादें सुनाते बुजुर्ग आज भी जोश से भर उठते हैं। इस मठ में विराजित शिव लिंग को लोग प्राणरक्षक के रूप में पूजते है।  लोगों का दर्शनों के लिए यहां आना जाना रहता है। अभी 15 वर्ष पूर्व स्व  शिवकुमार दादा के पुत्र  स्व सच्चिदानंद गुप्ता उर्फ सच्चे पत्रकार और रिटायर्ड प्राचार्य कमलेश तिवारी ने इस बिलैया मठ का जीर्णोद्धार कराया और इसमें और अनेक मूर्तियां स्थापित कर इसे भव्य रूप दिया है। मगर इस क्रांतिकारी स्थल के लिए सरकार ने कुछ भी नही सोचा।
मठ में एक 70 वर्षीय पुजारी निवास करते हैं , जो ज्ञान के अकूत भंडार बताए जाते हैं।- वेदव्रत गुप्ता
   

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