पंचनद धाम पर कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का अद्भुत समागम
पंचनद धाम पर कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का अद्भुत समागम
◾चंबल परिवार ने इस पहल के लिए संविधान की उद्देशिका देकर आयोजकों को किया सम्मानित
रिपोर्ट – आकाश उर्फ अक्की भईया संवाददाता
औरैया। हिंदी उर्दू सभा द्वारा आयोजित ऐतिहासिक पाँच नदियों के महासंगम पचनदा धाम पर एक शानदार कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जिसमें 2 दर्जन कलमकारों ने काव्यपाठ कर साहित्यसभा के मूल उद्देश्यों को आम जनमानस तक इंसानियत प्रेमभाव का संदेश गीत गज़लों मुक्तकों के जरिए पहुंचाया इस दौरान चंबल के बीहड़ों में तमाम ऐतिहासिक चीजों की खोज करने वाले चंबल परिवार के कमांडर डॉ. शाह आलम राना ने साहित्यसभा के संयोजक शफीकुर्रहमान कशफ़ी,हिंदी सभा अध्यक्ष डॉ. अनुज भदौरिया उर्दू सभा अध्यक्ष फरीद अली बशर को चंबल परिवार की ओर से स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया पचनदा धाम के महंत सुनीलवन की अध्यक्षता में अनुज भदौरिया की सरस्वती वंदना से शुरू हुआ गीत गज़लों का दौर फ़राज़ खान ने पढ़ा,शरीफ़ आदमी से ज़माना है लेकिन,शरीफ आदमी का ज़माना नहीं है,दिव्यांशु दिव्य ने सुनाया,रोना धोना खुद को खोना बेकार की बातें है,नहीं अगर कोई साथ तो भगवान होता ही है,कवियत्री इंदु विवेक ने पढ़ा,इंसान नही रहता जीवित लेखन ज़िंदा रह जाता है,इंसान स्वयं न कह पाए लेखन वो वो कह जाता है,शायर जावेद कसीम ने पढ़ा,जेब की बुसअतों से जो बाहर हुई,भूख तकती रही रोटियाँ देर तक, शिखा गर्ग ने पढ़ा,पाँव रख दो कठौते में धोलूं प्रभु,गांठें तकदीर की अपनी खोलूँ प्रभु,नईम ज़िया ने सुनाया,दिलों में इतनी तो गुंजाइशें रहें बाक़ी,कि फासला भी अगर हो तो फासला न लगे,प्रोग्राम का संचालन कर रहे अभिषेक सरल ने पढ़ा,हाथ आया और फिसल गया,एक ख्वाब नींद को ही निगल गया,ज़िले की मशहूर कवियत्री प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम ने पढा,हृदय उदगार कविता है प्रखर उदगार कविता है,हृदय की ताल पर झूमे वो हर झंकार कविता है,महासचिव राघवेन्द्र कनकने ने पढ़ा,बारिश के मौसम में छत पर छप छप करना भूल गए,जाने कैसे बचपन हैं ये घर से निकलना भूल गए,सभा के अध्यक्ष डॉक्टर अनुज भदौरिया ने पढ़ा,बहुत दिनों के बाद मिली वो शीत लिखेंगे,कहां हार के दिल जीता था प्रीत लिखेंगे उर्दू सभा अध्यक्ष फरीद अली बशर ने पढ़ा,जान देकर खरीद पाए हम,लोग कहते हैं मौत सस्ती है,साहित्यसभा के ज़िला संयोजक कशफ़ी ने पढ़ा,इस दौर के काबिल से इक बात पूछनी है,बाक़ी भी कुछ बची है औक़ात पूछनी है,ब्रह्मप्रकाश ने पढ़ा,हो गई बहुत सी क्रांति बस एक क्रांति और लाना है,सहभाव से इंसान में चरित्र क्रांति को जगाना है,अतीक खान ने पढ़ा,सोच कर मुझको बताना यार क्या आसान है,इंतखाब दानिश ने पढ़ा,दिखाते दिखाते हर शख्स की सच्चाई दानिश,इक न इक दिन आखिर आईना टूट जाता है,वहीं बुंदेली कवि जगपाल सिंह जगम्मनपुर को संयोजक कशफ़ी ने माधौगढ़ तहसील साहित्यसभा का प्राभारी नियुक्त किया इस दौरान विजय दुवेदी, आदिल खान, श्रीमती कल्पना कनकने, कुलदीप परिहार सहित तमाम लोगों की मौजूदगी रही अंत में अध्यक्ष महंत जी ने सभी को आशीर्वाद दिया और ऐसे स्थान पर पहली बार एक अनूठे कार्यक्रम कराने के लिए बधाई दी और आइंदा भी और भव्य कार्यक्रम कराने के लिए हौसला अफजाई की।