“आजादी की उड़ान”ने 5 हजार से ज्यादा महिला और किशोरियों के लगाये पंख

*साइकिल नहीं चलाना जानती थी, अब दौड़ रही हैं,स्कूटी पर   *नारी सशक्तिकरण के लिए "दीपा गुप्ता" की एक सशक्त कोशिश _________

 फोटो:-स्कूटी/स्कूटर ट्रेंनिंग देने वाली ट्रेनर्स के साथ तथा अपने प्रोजेक्ट की जानकारी देती दीपा गुप्ता
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जसवंतनगर(इटावा)। नारी सशक्तिकरण को लेकर सब तरफ जोर-शोर से अभियान चल रहे है, क्योंकि वर्तमान परिवेश में महिलाओं का हर क्षेत्र में सशक्त होना राष्ट्र के सशक्तिकरण का  प्रमाण  माना जा रहा है।

नारी सशक्तिकरण की दिशा में यहां जसवंतनगर कस्बा की एक बेटी ने “आजादी की उड़ान” बैनर तले एक अभियान चलाया है। महिलाओं व किशोरियों को तेज  दौड़ के इस युग में सशक्त बनाने और उनके पैरों में पंख लगाने का अभियान छेड़ा है, जिसमे स्कूटी व स्कूटर चलाना सिखाया जाता है।
 “आजादी की उड़ान” के इस अभियान के जरिए वह प्रदेश के कई बड़े जिलों की महिलाओं और किशोरियों को स्कूटी/स्कूटर चलाने की ट्रेनिंग दिलवा रही है। मात्र10 दिन की ट्रेनिंग में ही महिलाएं और किशोरियों फर्राटा भर रही हैं। इनमें बहुत तो ऐसी है, जिन्होंने पहले कभी साइकिल भी चलाना नहीं सीखा था।
     “आजादी की उड़ान” को आरंभ करने वाली दीपा गुप्ता जसवंतनगर जैसे छोटे कस्बे की भले ही निवासिन है, मगर गूगल, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपने “आजादी की उड़ान” के जरिए उनके हजारों फोलोवर्स हैं। आज वह इतनी फेमस हो गई है कि उनके फोन की घंटी दिन भर बजती रहती है। वैसे वह स्वयं आगरा के दयालबाग कॉलेज की छात्रा रही है। आगरा को ही केंद्र बनाकर उड़ान में फर्राटा भर रही हैं।     बैठे-बैठे क्या करें?.. शुरू करो कुछ काम वाली तर्ज पर उन्होंने उड़ान प्रोफेशन की शुरुआत की और 2019 में यह काम आरंभ किया। बीच में कोरोना महामारी बाधा बनी। मगर वर्तमान में अब तक वह आगरा, कानपुर, बरेली, नोएडा, और नई दिल्ली सहित 8 बड़े शहरों में “आजादी की उड़ान” बैनर तले  5000 से ज्यादा किशोरियों/महिलाओं को स्कूटी/ बाइक चलाना सिखा चुकी हैं। साथ ही सभी ट्रेनी महिलाओं में ट्रैफिक नियमों की जानकारी भी भर चुकी है।
     खुद दीपा गुप्ता बताती हैं कि  अब से 5-6 वर्ष पूर्व वह जब खुद कोई वाहन नहीं चला पाती थी, तो दूसरों या किराए के वाहनों पर आश्रित रहती थी। आज 8 शहरों में उनकी 50 से ज्यादा ट्रेनर महिलाएं उनके साथ काम करतीं है और महिलाओं को स्कूटी चलाने की ट्रेनिंग देती है। 
   उन्होंने गर्व के साथ बताया कि उनकी सभी ‘ट्रेनर्स’ कहीं न कहीं समय की मारी परतियकता महिलाएं है, जो 21 से 30 उम्र तक की हैं। वह या तो तलाकशुदा अथवा विधवा हैं अथवा किसी  किसी के तो माता-पिता या साथ देने वाला कोई भी नही हैं। महिलाओं और किशोरियों की ट्रेनिंग से जो कुछ खुशी खुशी उन्हे पारिश्रमिक हासिल होता है, उससे वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करती है।  रोजाना सुबह शाम ये 4 – 4 और5 – 5 घंटे ट्रेनिंग देती है. और 10 दिन में ही सीखने वाली को परफेक्ट बना देती हैं।
    उन्होंने बताया कि गूगल, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और फेसबुक पर “आजादी की उड़ान”सर्च करके  महिलाएं और किशोरिया उनसे संपर्क कर सकती हैं, वह सुबह 8 से रात नौ बजे तक फोन पर उपलब्ध रहती हैं।
-वेदव्रत गुप्त
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