भगवान को समर्पित पुष्प भी हीरा से भी ज्यादा बेशकीमती: प्रतीक सागर

* हमारे भगवान, गुरु व माता पिता ही हमारे असली हीरो

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फोटो:- प्रवचन देते प्रतीक सागर जी महाराज 
जसवंतनगर( इटावा)मुनि श्री108 प्रतीक सागर जी महाराज ने मंगलवार को अपने प्रवचनों में कहा है कि भगवान को समर्पित पुष्प भी एक हीरे से भी ज्यादा वेशकीमती होता है। गुरु या भगवान की भक्ति में कभी अहंकार का समावेश नही होना चाहिए। परमात्मा तक पहुँचने का जो भी माध्यम सार्थक साबित हो,उसी से अनुराग करना चाहिए।
     महाराज जी इन दिनों जसवंतनगर के जैन मोहल्ला स्थित पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में विराजमान हैं और नित्य प्रति अपने प्रवचनों से श्रद्धालु जनों को भक्ति और ज्ञान की गंगा में ओतप्रोत कर रहे हैं
   उन्होंने कहा कि परम ब्रह्म की भक्ति से ही सुंदर रूप व उत्तम भोग सामग्री हासिल होती है।कितना भी दिखावा कर लो, धर्म की सात्विकता का तो सिर्फ अंतिम समय मे ही पता चलता है। किसने कितना धर्म किया है?..जीवन ,की इस परीक्षा का परिणाम,मरण समय ही पता पड़ता है। यदि उत्तम मरण होगा,तो निश्चित तौर पर उतनी अच्छी गति का अधिकारी वह मनुष्य होगा।
     उन्होंने कहा कि मृत्यु के समय सगे संबंधियों को स्मृति करना व्यर्थ है।भगवान और णमोकार महा मंत्र को याद करेंगे, तो जीवन से तर जाओगे। हर पल, हर क्षण  हमे अपने जीवन का मूलयांकन करना चाहिए। हम क्या सही कर रहे और क्या गलत  कर रहे,इस पर भी हमारा ध्यान रहना चाहिए।
तृष्णा, लेस्या न रखे, धर्म और धर्मात्मा को गिराने का भाव नरक गति का मुख्य कारण है। कभी किसी पर गिद्ध दृष्टि नहीं, सिद्ध दृस्टि रखो। प्रत्येक जीव में भगवान की आत्मा विराजमान है।
          अगर किसी नास्तिक को आस्तिक नही बना सकते, तो किसी आस्तिक को नास्तिक बनाने का प्रयत्न कदापि न करे।
    संत कबीर दास के सुप्रसिद्ध दोहे-‘बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय।जो दिल खोजा आपना मुझ से बुरा न कोय।’ का उदाहरण देते उन्होंने कहा कि अपने जीवन को सार्थक बनाने पर हमें सबसे ज्यादा जोर देना चाहिये।            ।प्रवचनों के अंत में उन्होंने कहा कि आचरण से कोई अप्रभावना नहीं होनी चाहिए।धर्म कार्य हमेशा विवेक पूर्वक किए जाने चाहिए।जिसका नरक बंध हो जाता है, वहीं मुनिराज को आहार नहीं दे सकते। इसलिए पुण्यशाली बनो ओर गुरुजनों को आहार दो। साथ ही उन्होंने संदेश देते कहा कि जैसे फूल को खिलने के लिए सूर्य की तेज किरणों की जरूरत होती है, उसी प्रकार गुरु के कठोर वचन भी शिष्य के लिए लाभ कारी होते है।
    प्रवचनों के दौरान अध्यक्ष राजेश जैन, राजकमल जैन, विनोद जैन,अतुल बजाज,आशीष जैन,रोहित जैन,विवेक जैन,चेतन जैन, रवि जैन,अंकित जैन,राजकुमार जैन,एकांश जैन,अंकुर जैन,मणिकांत जैन,सचिन जैन,विनीत जैन नितिन जैन, मोहित जैन, अनुभव जैन ,संजय जैन ,प्रखर जैन, मनोज जैन के अलावा संख्या में जैन महिलाएं भी उपस्थित थीं।
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*वेदव्रत गुप्ता

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