जब मनुष्य रुप में काशी में जन्म लिया था नारद ने

रिपोर्ट – आकाश उर्फ अक्की भईया संवाददाता 

अछल्दा, औरैया। अछल्दा कस्बे के बोडेपुर नेविलगंज मे चल रही श्रीमद्भागवत कथा में तीसरे दिन आचार्य सुबोधानंद जी महाराज ने नारद की चरित्र कथा सुनाई।

कहते हैं कि जब मन में किसी वस्तु को पाने की तीव्र इच्छा हो जाती है तो वह चीज आत्मा में बस जाती है। व्यक्ति अगर जीते जी उस चीज को प्राप्त नहीं कर पाता है तो इसके लिए अगला जन्म भी लेता है। देवर्षि नारद जी के विषय में माना जाता है कि वह बाल ब्रह्मचारी हैं। लेकिन रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता है जो बताता है कि एक अनुपम सुन्दरी को देखकर नारद के मन में भी विवाह की प्रबल इच्छा जग उठी। भगवान विष्णु के समझाने पर नारद जी ने ऊपरी तौर पर विवाह की इच्छा त्याग दी लेकिन आंतरिक इच्छा वह मिटा न सके। अपनी इसी इच्छा को पूरी करने के लिए नारद जी को मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ा। इस जन्म में इनका नाम ‘संत श्रीसुरसुरानंद’ था। इनके विषय में कथा है कि इनके शुभ संस्कारों के समय एक व्यक्ति आता था जो खुद को इनका मामा और अपना नाम नारायण बताता था। यह व्यक्ति उत्सव समाप्त होने के बाद कहां चला जाता था किसी को पता नहीं चलता था। इसी व्यक्ति ने सुरसुरानंद जी को काशी जाकर श्री रामानंदाचार्य से शिक्षा ग्रहण करने की आज्ञा दी थी। श्री रामानंदाचार्य के शिष्यों में संत कबीर, रैदास, धन्ना, नाभादास का नाम भी शामिल है। एक दिन सत्संग के समय जब शंख की ध्वनि गूंजी तो सुरसुरानंद जी बेहोश हो गये। बेहोशी की अवस्था में इन्हें सुनाई दिया कि नारद रूप में तुम्हारी विवाह करने की प्रबल इच्छा थी। इसी इच्छा के कारण मनुष्य रूप में तुम्हारा जन्म हुआ है। इस जन्म में तुम्हारी यह इच्छा पूरी हो जाएगी। इसी अवस्था में इन्हें ज्ञात हुआ है मामा रूप में स्वयं भगवान विष्णु इनकी सहायता करने के लिए आते हैं।इस मौके पर परीक्षित सुनीता देवी व गोविंद बाथम,सत्यप्रकाश बाथम,रिंकू,विपिन व अन्य लोग मौजूद रहे।

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